“ब्याह और ज्वाइंट फैमिली में?
ना बाबा ना मुझे नहीं ब्याहनी अपनी बेटी इतने बड़े से टब्बर में”
मीना जी झुंझलाकर अपने पति नरेंद्र जी से बोली!
“देखो जी कहे देती हूं मेरी बेटी के लिए कोई ऐसा लड़का देखो जो मां-बाप का इकलौता हो !हो भी तो बस ज्यादा से ज्यादा एक बहन!
हां एक बात और मां-बाप साथ ना रहते हों ऐसा ध्यान जरूर रखना!
मीना का बड़बड़ाना कम नहीं हुआ!मुंह सिकोड़कर कर बोली “मेरी बहन नीना का हाल तो तुमसे छुपा नहीं है!कैसे पापा ने उसकी मर्ज़ी के खिलाफ ज्वाइंट फैमिली में ब्याह कर दिया!बेचारी दादी,बुआ,चचिया सासों की खिदमत करती उनकी बेटियों और बहुओं की जचगी कराती कराती अपनी उम्र से भी दस साल बड़ी दिखकर बुढ़ा सी गई है!
आज भी जब मैंं और नीना साथ निकलती हैं तो लोग मुझे छोटी और उसे बड़ी बहन बताते हैं!जबकि वह मुझसे पूरे तीन साल छोटी है!”
परदे के पीछे खड़ी उनकी बेटी निया को ज्वाइंट फैमिली का किस्सा सुनकर अपनी पक्की सहेली मीता के घर की याद आ गई !जब भी वह उसके घर जाती कैसे उसकी चाचियां दोनो वक्त के खाना पकाने को लेकर बहस करती और उसकी चचेरी बहनें एक दूसरे से खुखियाई बिल्ली सी झगड़ती! निया का मीता के घर जाकर कुछ देर में ही दम घुटने लगता!वह मीता से कहती “तू कैसे इस गंदे घुटनभरे माहौल में रहती है!मेरे जैसी हो तो अब तक भाग जाती!मैं तो एक दिन भी ना रहूं इतने सारे लोगों के साथ, हर वक्त की चिल्ल्पों से मेरा तो जी घबराता है!”
नरेंद्र जी मीना से बोले “भागवान!पहले सुन तो लो !तुम तो सुनने से पहले ही एक्स्प्रेस ट्रेन की तरह भड़भड़ाकर अपने दिमाग के हवाई घोड़े दौड़ाने लगती हो!”
सुनो! ये रिश्ता बड़ी कोठी वाली बुआ ने बताया है !उनके पड़ोसी हैं!”बड़ी बुआ का नाम सुनते ही मीना थोड़ी शांत हो गई! क्योंकि वह जानती थी कि वे बहुत सुलझी हुई और सौम्य स्वभाव की हैं वे कोई ऐसा वैसा रिश्ता बता ही नहीं सकती!
नरेंद्र जी ने बताया देवेन्द्र जी शहर के जाने माने बिज़नेस मैन है!
देवेन्द्र जी के दो बेटे सुधीर और सुरेश हैं!
सुधीर की पत्नि सीमा और सुरेश की पत्नि मीरा है!दोनों गृहणियां हैं!
सुधीर के एक बेटा शलभ और दो बेटियां शीना और टीना हैं!
सुरेश के दो बेटे मयंक और मनु हैं जो अभी पढ़ाई कर रहे हैं!एक बेटी मानवी है!
अभी किसी बच्चे का ब्याह नहीं हुआ है!
बहुत बड़ी सी हवेली नुमा कोठी है!जिसमें सब एकसाथ रहते हैं!
बड़ी बुआ ने निया के लिए शलभ का रिश्ता सुझाया है!
“इतनेऽऽऽऽ सारे लोग?मीना ने चटक-पटक अंगुलियों पर गिनने शुरू कर दिये !कम से कम दस बारह तो होंगे?ना भई ना कैसे रहेगी हमारी निया इतने सारे लोगों के साथ?आप बड़ी बुआ को मना कर दें बस!”
नरेंद्र जी ने मीना जी को समझाया एक बार मिलने में क्या हर्ज है !कौन सा वे निया को देखते ही हाथ पकड़कर फेरे फिरवा देंगे ,समझ नहीं आऐ तो मै वायदा करता हूं मैं खुद मना कर दूंगा!
ये भी तो हो सकता है हम ही उन्हें पसंद ना आऐं!
एक बात और तुम ये ज्वाइंट फैमली का भूत निया के दिमाग में मत घुसा देना”!कहकर नरेंद्र जी ने बड़ी बुआ को बात आगे बढ़ाने को कह दिया!
देवेन्द्र जी ने बड़ी बुआ के माध्यम से नरेंद्र जी को कहलवा दिया कि वे किसी तकल्लुफ में न पड़ें!हम अपनी बेटी से मिलने आ रहे हैं किसी दावत में नहीं!
नियत समय पर देवेन्द्र जी अपने दोनों बेटों,बहुओं,शलभ ,शीना टीना और मानवी के साथ आऐ!
शलभ एक स्मार्ट ,गोरा चिट्टा,संजीदा, सौम्य स्वभाव का लड़का था!
उन सबके हाव-भाव और व्यवहार से बिल्कुल नहीं लग रहा था कि वे लड़की देखने आए थे!
मीना और नरेंद्र जी देख कर दंग रह गए कि इतने बड़े आदमी होकर उन लोगों में कोई दिखावा कोई घमंड नाम की चीज नहीं है!
शीना टीना और मानवी तो निया से ऐसे घुल-मिल गई जैसे बरसों से पहचान हो!
बातों बातों में देवेन्द्र जी ने बताया कि उनके घर में किसी के ऊपर किसी तरह का बंधन नहीं है!
हमारा उसूल है “लिव ऐंड लेट लिव”यानि जीयो और जीने दो!
हमने बच्चों को ऐसे संस्कार दिये हैं जिसमें वे बड़ों का मान और छोटों के प्रति अपना बडप्पन रखना जानते हैं!सब अपने अपने दायरे में रहते हैं!चाहे वह सास-बहू हों पति पत्नि या बाप बेटा।
हम मैं,मेरा या तू तेरा में नहीं बल्कि हम हमारे में विश्वास रखते हैं!
हम आप से यह सब इसलिए कहरहे हैं क्योंकि आप सोचते होंगे इतने सारे लोग एक छत के नीचे रहें और कोई झगड़ा फसाद तू तू मैं मैं ना हो ऐसा कैसे हो सकता है?
वैसे तो ऐसी नौबत ही नहीं आती पर अगर कभी किसी को कोई शिकवा शिकायत हो भी जाऐ तो हम आपस में बात करके सुलझा लेते हैं!क्योंकि चार बर्तन होंगें तो खनकेंगे भी!हमारी कोशिश रहती है रिश्ते बर्तनों की तरह कभी टूटें नहीं!
अपने रिश्तों के बीच पैसे को नहीं आने देते क्योंकि पैसा ही झगड़े की जड़ है!
सुधीर जो शलभ के पिता थे बोले”हम दोनो भाई जब पढ़ाई खत्म करके आऐ और हमारा ब्याह हुआ तो पापा ने कहा तुम अलग अलग अपनी गृहस्थी बसाना चाहो तो वैसी व्यव्स्था कर दी जाए! पर हम दोनों और हमारी पत्नियों ने एकसाथ रहने का फैसला किया क्योंकि हम अपने बच्चों को दादा दादी बुआ चाचा चाची.नाना नानी मामा मामी मौसी सबके प्यार की छांव में बड़े होते देखना चाहते थे!
मुझमें और सुरेश में तो खैर खून का रिश्ता है पर हमारी पत्नियां तो पराऐ घरों से आई हैं उनमें देवरानी जेठानी न होकर सगी बहनों जैसा प्यार है!
इसीलिए बरसों से हम तीन पीढ़ियां बहुत चैन शांति और प्यार से साथ रह रहे हैं!
नरेंद्र जी के पूछने पर कि उनकी कोई डिमांड तो नहीं देवेन्द्र जी ने उनके दोनों हाथ पकड़कर कहा”आप अपना सबसे अनमोल रत्न अपनी बेटी दे रहे हैं!उससे ज्यादा और क्या चाहिए! भगवान का दिया हमारे पास सबकुछ है बाकी सब बेमानी हैं!हम यह दिखाने को नहीं बल्कि दिल से कह रहे हैं!”
नरेंद्र जी के पूछने पर कि क्या उन्हें बेटी निया और वे लोग पसंद हैं!
तो जाते जाते देवेन्द्र जी बोले पहले आप निया बेटी से पूछें कि उन्हें हमारा शलभ और हम सब पसंद आए या नहीं!वह संयुक्त परिवार में रहना भी चाहेगी या नहीं?
यह उसकी ज़िन्दगी है फैसला भी उसी का होना चाहिए! हमारे यहां सबको अपने फैसले खुद लेने का हक है!अगर किसी बच्चे का कोई फैसला गलत लगता है हम तभी दखल देते है!
सबकुछ देख सुनकर आखिर में मीना ने भी इस रिश्ते के लिए हामी भर दी!
दो दिन बाद निया का जन्मदिन था!सुबह सुबह देवेन्द्र जी के पूरे परिवार को अपने घर आता देखकर मीना और नरेंद्र जी हक्के बक्के रह गए! उनकी समझ में नहीं आया इतने लोगों की खातिर दारी कैसे करें?
सबने बहुत सारे फूलों के बुके और छोटे बड़े तोहफ़ों से निया को लाद दिया ! जन्मदिन की सुबह की ऐसी शुरूआत होगी निया ने तो सपने में भी नहीं सोचा था!
निया को शुभकामनाऐं और आशीर्वाद देकर देवेन्द्र जी ने नरेंद्र जी के पूरे परिवार को अपनी फैक्ट्री के मंदिर में आने का न्यौता दिया!बताया कि आज हमारी होने वाली बहू के जन्मदिन के उपलक्ष्य में उन्होंने हवन और भंडारे का आयोजन किया है!जिसमें उनका पूरा स्टाफ और सड़क पर आने जाने वालों के लिए भोजन की व्यवस्था की गई है!
हमारे परिवार में सब सदस्यों का जन्मदिन ऐसे ही मनाया जाता है!
नियत समय पर नरेंद्र जी ,मीना और निया के साथ मंदिर पहुंचे तो शलभ की मां सीमा और चाची मीरा ने निया को बहुत प्यार के साथ हवन करने चौकी पर बैठाया! बेटी के ससुराल वालों का इतना मान और दुलार देखकर मीना और नरेंद्र जी की आँखें भर आई!
निया के हाथों हवन करा देवेन्द्र जी ने उसके हाथों से सबको प्रसाद बंटवाया!
फिर देवेन्द्र जी ने एक डिबिया खोलकर अंगूठी निकली और शलभ को बुलाकर उसके हाथ से निया को पहनवाई!
नरेंद्र जी कहने लगे अरे!हम तो किसी तैयारी से नहीं आऐ,आप पहले बता देते!देवेन्द्र जी ने उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा”ये कोई रस्म नहीं है ये तो शलभ की तरफ से निया के जन्मदिन का उपहार है!
देवेन्द्र जी ने निया के हाथ में एक आई फोन थमाया तो निया के मुँह से निकला “दादा जी ये तो बहुत मंहगा है तो देवेन्द्र जी ने उसके सर पर हाथ रखकर कहा पर हमारी बेटी की मुस्कराहट से मंहगा तो नहीं है!सुनते ही सबके चेहरे खुशी से खिल उठे!
नरेंद्र जी ने मीना को कोहनी से टहुंका मार कर पूछा “मना कर दूं क्या!तुम्हें नहीं ब्याहनी बेटी ज्वाइंट फैमली में”
आजकल एकल परिवार का चलन हो गया है !आज की युवा पीढ़ी को संयुक्त परिवार में रहना अपनी स्वतन्त्रता का हनन लगता है!क्योंकि शायद उनमें धैर्य बर्दाश्त और जिम्मेवारी की कमी है!बच्चों में भी मिल जुलकर रहना,सबके साथ खाना ,अपनी चीजें शेयर करने जैसी आदतों का अभाव रह जाता है!उनमें सहनशीलता जैसे गुण ना के बराबर रह जाते हैं!जो संस्कार दादा दादी या नाना नानी या संयुक्त परिवार में रहकर मिल सकते हैं वे वंचित रह जाते हैं!अधिकांशतः बच्चे अपने रीति-रिवाज,तीज-त्यौहार और अपनी जड़ों से भी जुड़ नहीं पाते!
उनके लिए रिश्तों की अहमियत भी मायने नहीं रखती!उनकी सोच का दायरा अपने ही घर में सिमट कर रह जाता है!
क्या पाठकगण सहमत हैं?
कुमुद मोहन
स्वरचित-मौलिक