संतोष – अनुज सारस्वत : Short Stories in Hindi

Short Stories in Hindi : “अरे संतोष शाम को आजाना ड्यूटी के बाद, घर में कुछ काम है “

मैनें संतोष को कहा फोन पर

संतोष-“जी बाबू जी आजाऊंगा “

संतोष आफिस का प्लंबर, पेंटर था उससे मैं घर के छोटे मोटे काम करवाता रहता था आफिस के बाद क्योंकि दिहाड़ी नही कटे उसकी ,करीब चार साल से किसी वही करता था ,नियत भी बहुत साफ थी ,घर पर अकेला छोड़ने पर भी दिक्कत नहीं थी,मेरी पत्नी और बिटिया भी सहज थी उसके साथ ,मेरी बिटिया उसे पकाती रहती थी

“अंकल यह क्या कर रहे हो ?”

“पापा अंकल को घर छोड़कर आओ इनका बेबी इंतजार कर रहा होगा”

संतोष की बिटिया थी 6साल की मेरी पत्नी उसे और उसके परिवार को कुछ न कुछ देती रहती थी कपड़े ,बर्तन इस तरह से वो एक फैमिली मेंबर बन गया था ,एक रात को पत्नी ने मुझसे कहा

“सुनो हम संतोष की बिटिया का पढाई का खर्च उठा लें क्या?”

मुझे आइडिया बिल्कुल भा गया शुरू में संतोष ने आनाकानी करी लेकिन बाद में मान गया ।

“अरे बाबू जी कहां खो गये “

संतोष की आवाज ने झकझोरा मुझे उम्र काफी हो जाने से नजर भी कमजोर हो गयी थी ,चश्मा लगाकर देखा तो संतोष शादी का कार्ड लेकर मेरे पास बैठा था ।


उसे देखकर मैं पुरानी यादों में खो गया था

“हां संतोष कैसा है और यह किसका कार्ड है”

संतोष “-बाबू सब आपकी कृपादृष्टि रही है बिटिया सयानी हो गयी है उसकी शादी का कार्ड है मेमसाहब और बच्चों के साथ आना है,और हां अब यह बहुत बढ़िया नौकरी भी कर रही ,आपने इसकी पढ़ाई का जिम्मा जो लिया था”

संतोष की आंखो में चमक थी यह सब कहते हुए

मैने कहा-

“देखो सब ऊपर वाला कराता है मै तो निमित्त हूं ,सबका हिसाब किताब उसने लिख रखा है ,मैं तो जरूर आऊंगा तू चिंता न कर”

इतना कहकर मैने उसे विदा किया शादी का दिन नजदीक आ गया ,धर्मपत्नी पहले से ही एक नेकलेस ले आयीं देने को और बोली

“यह आपने हमें दिया था शादी की पहली सालगिरह पर ,अब हम बुढढे, बुढ़िया क्या करेंगे इस सोने चांदी का ,एक यही बचा था बाकी भी तो मैंने सब अपने बच्चों को दे ही दिया ,संतोष की बिटिया भी मेरी बिटिया है “

पत्नी का भाव देखकर मैं निरूत्तर हो गया

हम लोग शादी में पहुंचे संतोष भागकर मुझे साहरा देने आया और सोफे पर बैठाया और फेरों के बाद ही मुझे जाने को बोला ।


जयमाला ,खाना हो चुका था फेरों की तैयारी शुरू हो चुकी थी तभी पंडित जी ने कहा बिटिया के माँ बाप आयें और कन्यादान लें संतोष तुरंत मेरे पास आया और सहारा देकर उठाता हुआ बोला चलो बाबू जी और मेमसाहब आपका दायित्व है

यह आपकी ही बिटिया है ,हम दोनों लोग मंडप में पहुंचे कांपते हुए हाथों से कन्या लिया आंसुओ की धारा हमारे दोनों और बिटिया की हाथों पर गिरती रही थी ,कार्य संपन्न होने के बाद संतोष ने सबके सामने सारी बात बतायी मैने उसे रोका और कहा मैनें कुछ नही किया है संतोष तेरे कारण मैं तर गया हूँ, तूने अपनी सेवा का मौका देकर इस नाटकीय जीवन में कुछ असली उद्देश्य पूरक काम करवाया तेरे लाखों धन्य वाद ।

शादी के बाद संतोष घर छोड़कर चला गया था ।

उस रात हम दोनों पति पत्नी को इतनी संतोष भरी नींद आयी कि हम फिर कभी नही उठे हमारी आत्मा परमात्मा में मिल गयी।

-अनुज सारस्वत की कलम से

(स्वरचित)

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