संस्कार : सोमा शर्मा : Moral Stories in Hindi

छोटे से गांव में रहने वाला अर्जुन अब एक नामी कंपनी में मैनेजर बन चुका था। 

अच्छी सैलरी, बड़ा फ्लैट, और हर सुविधा से भरपूर जीवन — सब कुछ था उसके पास, सिवाय एक चीज़ के… अपनों की मौजूदगी। पिता के गुजर जाने के बाद माँ अकेली गाँव में रह गई थीं। 

अर्जुन ने कई बार कहा, “माँ, शहर चलो मेरे साथ”, लेकिन माँ ने साफ़ मना कर दिया। उन्हें मिट्टी की खुशबू, सुबह का मंदिर, और आँगन की तुलसी छोड़कर जाना कभी मंज़ूर नहीं था।

अर्जुन हर महीने पैसे भेज देता, हर त्योहार पर कपड़े और मिठाइयाँ भी, लेकिन पिछले दो सालों में वह माँ से मिलने नहीं गया था। फोन पर कभी-कभी बात हो जाती, पर माँ के मन की तसल्ली केवल बेटे के साथ बैठकर दो रोटी खाने से मिलती थी।

एक शाम ऑफिस से लौटते वक़्त अर्जुन को दरवाज़े पर एक पुरानी चिट्ठी मिली — माँ की लिखी हुई। कांपते हाथों की लिखावट में लिखा था:

“बेटा, शहर की भीड़ में मैने तुझे खो दिया हैं क्या? मां की याद भी नहीं आती हैं तुझे बेटा। ये मन, ये आँखें अब थकने लगी हैं। अब तेरे पापा की तस्वीर से भी कहती हूँ — ‘कब आएगा अर्जुन?’ बस एक बार आ जा बेटा, फिर पता नहीं कब यह आँखें मेरी बंद हो जाएगी,तुझे देखने के इच्छा लेकर ही क्या दुनियां से चले जाना होगा तेरी इस बूढ़ी मां को? जवाब अगर देना है तो बेटा आ जा अपनी मां के पास

चिट्ठी पढ़ते ही अर्जुन की आँखें भर आईं। वो देर रात तक सो नहीं पाया। उसे एहसास हुआ कि जिस माँ ने उसे चलना सिखाया, उसका चेहरा देखे कितने दिन हो गए हैं। अगले दिन ऑफिस में छुट्टी की अर्जी डाली और सुबह पहली ट्रेन से गाँव के लिए निकल पड़ा।

गाँव पहुंचते ही वह सीधे अपने पुराने मिट्टी के घर के सामने खड़ा हो गया। घर वैसा ही था — टूटा फूटा, पर माँ की ममता से भरा। आँगन में माँ तुलसी में जल दे रही थीं। बाल सफेद हो गए थे, कमर थोड़ी झुक गई थी, लेकिन ममता वही थी। अर्जुन ने आवाज़ दी, “माँ…” और माँ ने बिना देखे पहचान लिया। वो दौड़कर उसे गले लग गईं।

“तू आ गया बेटा… अब मेरी चाय में मिठास आ जाएगी,” माँ की आँखों से खुशी के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

उस शाम अर्जुन ने माँ के लिए चाय बनाई और पहली बार माँ के साथ बैठकर पी। माँ ने कहा, “ये चाय नहीं, मेरी सारी थकान का इलाज है।” फिर माँ ने मिट्टी के चूल्हे पर खिचड़ी बनाई और अर्जुन को अपने हाथ से खिलाया। अर्जुन को लगा, जैसे दुनिया की सबसे स्वादिष्ट दावत उसने खा ली हो।

रात को माँ ने लकड़ी की पुरानी पेटी खोली। उसमें अर्जुन की बचपन की तस्वीरें, उसकी स्कूल की डायरी, और वो छोटा-सा खिलौना हाथी निकाला, जिसे वह कभी अपनी बहन मानता था। माँ ने कहा, “तू बड़ा हो गया, पर मेरी नजर में अब भी वही नन्हा अर्जुन है जो हर सुबह मेरे आँचल में मुंह छुपाकर सोता था।”

अर्जुन ने दो दिन माँ के साथ बिताए — खेतों में गया, तालाब के किनारे बैठा, और अपने बचपन की गलियों में घूमता रहा। हर शाम माँ के हाथों की बनी रोटियाँ और मूँग की दाल उसे ऐसा सुकून देतीं, जो बड़े-बड़े रेस्टोरेंट की थाली में नहीं मिल सकती थी।

अर्जुन ने माँ को गले लगाकर कहा ,”मां अब आप भी मेरे साथ चलो क्योंकि मुझे भी आपके साथ रहना है क्या आप मेरी खुशी के लिए मेरे साथ नहीं चलेंगी”?

माँ मुस्कुराई, ” ठीक है बेटा अब तेरे सिवा कौन हैं मेरा ,ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि सभी मां का तेरे जैसा समझदार बेटा दे”।

उसी शाम अर्जुन अपनी मां को लेकर शहर आ गया।

फ्लैट को देखकर बोहोत खुश हुई और अपने बेटे की कामयाबी देखकर।

दिन गुजरने लगे मां ने हफ्ते भर में गैस पर खाना बनाना सिख चुकी थी ।अर्जुन ने एक मेड पूरा दिन रात के लिए रख दिया था जो मां की हर काम में मदद करती थीं।

मां ने फिर अर्जुन से एकदिन कहा ,” बेटा मैं चाहती थी कि तू अब शादी कर ले में भी मरने से पहले अपनी बहु देख लूं”।

अर्जुन ने बताया कि उसके ऑफिस में एक लड़की हैं उसको वो पसन्द करता हैं और उसका नाम रिया हैं लेकिन वो एक अनाथ लड़की हैं ।

मां ने कहा ,” उसे ले आ बेटा मुझे खुशी हुई कि तूने मेरे लिए बहु पसन्द कर रखी है ,कल तू रिया को लेकर आ”।

अगले दिन रिया अर्जुन के साथ आई और मां के पैर छूकर आशीर्वाद लिया तो मां ने उसे गले से लगा लिया और कहा,” बेटा तू तो लक्ष्मी हैं पैर नहीं छू बेटा”।

अगले महीने के शुभ मुहूर्त में अर्जुन और रिया की शादी हो जाती हैं।

एक हफ्ते बाद मां उन दोनों को गांव लेकर जाती है जहां उनका पुराना घर सब रिश्तेदार से मिलवाती हैं फिर रात को मां ने अर्जुन और रिया को पास बैठाकर कहा ,” बेटा अब मैं अपने अंतिम दिनों में यही रहना चाहती हूं यही मेरी डोली आई थी मेरी अर्थी भी यही से उठे यही इच्छा है मेरी”।

पहले तो रिया और अर्जुन तैयार नहीं थे फिर रिया ने कहा ,” मां आप रहना चाहती है तो ठीक हैं फिर आपको हमारी एक बात माननी होगी,” इस घर में आपकी पापाजी और अर्जुन की बोहोत सारी यादें बसी हैं इसलिए इस घर को हम अच्छे से बनवाकर साथ में रहेंगे अर्जुन और मैं हर महीने आयेंगे और आपको सिर्फ अब आराम करना होगा मेड रख देंगे सब काम के लिए।क्या आपको मंजूर है?”

मां यानि सबिता जी रिया को गले लगा कर रोने लगी,” मैने जरूर कोई पुण्य किया होगा जो बहु के रूप में बेटी भेज दिया भगवान जी ने”।

फिर अर्जुन और रिया ने अगले एक महीने में उस टूटे घर को एक सुंदर घर में तब्दील करवा दिया।

एक मेड गांव की ही औरत मिल गई थी जो सबिता जी को जानती थीं ईमानदार भी थी।

सबिता जी ने वोही घर पर लड़कियों को सिलाई सिखाने का काम शुरू कर देती हैं इससे आमदनी के साथ साथ उनका मन भी लगने लगता है।

एक महीने बाद जब रिया और अर्जुन गांव आते हैं तो आश्चर्य हो जाते है उनके घर पर बाहर बरामदे में औरतें और लड़कियां सिलाई कर रही हैं और सविता जी घूम घूम कर उनको बता रही हैं।

रिया को एक उपाय सूझता है और वो अर्जुन से कहती हैं तो अर्जुन भी खुश हो जाता है ।

सबिता जी अब इतनी ज्यादा खुश रहती हैं कि उनकी उम्र दस साल कम दिखने लगती हैं।

अगले दिन एक कार आकर रुकती है उनके घर के पास उसमें से एक औरत करीब चालीस साल की और उनके साथ एक आदमी पचास बर्ष के निकलते हैं।

रिया और अर्जुन गेट से उन्हें सम्मान पूर्वक अन्दर लेकर आए और सबिता जी से मिलवाते हैं। रिया बोली,” मां यह मिस्टर समर रावत और उनकी धर्मपत्नी मीना रावत जी हैं इनकी टेक्सटाइल कंपनी है शहर में और इनकी कंपनी औरतों के कपड़े डिजाइन करती है फिर देश विदेश में एक्सपोर्ट करती हैं”।

अर्जुन ने अब कहा कि रावत जी गांव के बिकास का काम करते रहते हैं तो वो चाहते है कि यहां की जो कला हैं सिलाई की उसको दुनियां में हर जगह पहुंचाया जाए।

सबिता जी खुश हुई क्योंकि उनके गांव में बहुत लड़कियां हैं जो सिलाई में अबल हैं पर आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हैं।

समर जी और मीना जी ने कुछ डिजाइन कलेक्शन को देखा और पसन्द किया फिर उन्होंने सबिता जी को हजार पिस डिजाइनर ब्लाउज का ऑर्डर दिया और एडवांस चेक दिया पांच लाख का।

सब लड़की और औरतों को जब बताया गया कि उन्हें अब हर सिलाई पर पैसे मिलेंगे तो वो सभी सविता जी के पैर छूने लगी।

देखते देखते दो साल में अर्जुन रिया और सविता जी एक टेक्सटाइल फैक्ट्री गांव में खोल चुके हैं और अर्जुन और रिया नौकरी छोड़कर अब अपनी मां के साथ गांव में ही रहने लगे हैं।

सबिता जी ने अपने पति के नाम से एक स्कूल बनवाया जहां गरीब बच्चों को निःशुल्क पढ़ाया जाएगा।

सब सुखी हो चुके थे हां तकलीफें आई संघर्ष आते थे पर परिवार एक साथ जब एक दूसरे के लिए खड़े होते है तो भगवान भी उनका साथ देते है।

लेखिका : सोमा शर्मा

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