“समझौते से बंधी,जीवन की डोर” – कविता भड़ाना

“जीवन की डगर तो होती ही है उतार चढ़ाव और समझौते से भरी हुई। मैने भी अपने जीवन में एक समझौता किया है” l

यह मेरे जीवन की सच्ची घटना है, जिसे आज में आप लोगो के साथ सांझा कर रही हूं।….

मेरी बड़ी बेटी के जन्म के 2 महीने बाद ही दुर्घटनावश मैं घर की पहली मंजिल की  सीढ़ियों से गिर पड़ी थीं, जिसकी वजह से मेरी कमर और पैरों में चोट आ गई और 15 दिन बिलकुल बिस्तर पर ही रही, इलाज के दौरान ही पता चला कि “स्लिप डिस्क” हो गई है। खैर कुछ महीने के इलाज और कुछ सावधानियों को ध्यान में रखकर मैं जल्दी ही स्वस्थ हो गई।

  इस घटना के 3 साल बाद मुझे दोबारा मां बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। में, मेरे पति, सास ससुर सब बहुत खुश थे। मेरे मायके में भी ये बात मेरे मम्मी पापा को बता दी गई तो सब बहुत खुश हुए। अब पहले बेटी थी तो सब को दूसरे बच्चे के रूप में “लड़का”होने की ही उम्मीद थी। इधर मेरी तबियत अब खराब रहने लगी, मेरा कमर दर्द बहुत बढ़ गया था । अब क्योंकि में गर्भवती थी तो दिक्कत भी बढ़ गई।

  एक दिन दर्द इतना बढ़ गया की में खड़ी भी नही हो पा रही थी, तब किसी तरह मुझे डॉक्टर के पास ले जाया गया, उन्होंने x_ray किया तो पता चला स्लिप डिस्क हो गई है।  तीन सालों में दो तीन बार ये दिक्कत पहले जब भी होती थी तो मुझे एक इंजेक्शन दिया जाता, जिसका नाम “एपिडयूरल स्टेराइड इंजेक्शन” था।जिससे खिसकी हुई हड्डी वापस अपनी जगह आ जाती,”लेकिन अब परिस्थिति बदली हुई थी, ये इंजेक्शन मेरे बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए  बिल्कुल ठीक नही था।

  डॉक्टर ने कहा भी की अभी तो हम ये इंजेक्शन दे देते है क्योंकि दर्द की अधिकता के कारण में चलना तो दूर की बात सीधी लेट भी नही पा रही थी, लेकिन साथ ही ये भी कहा की ये इंजेक्शन बच्चे के दिमाग पर असर डाल सकता है और बच्चा एबनॉर्मल भी हो सकता है। अभी चौथा महीना है तो आप अबॉर्शन करा सकती है, लेकिन यही दिक्कत आपको अगर सातवे या आठवें महीने में हुई तो बच्चे के साथ मेरा भी जीवन खतरे में आ जायेगा,और ऐसी स्थिति में दोनो का बचना ही मुश्किल होगा। …. मेरी डॉक्टर ने बच्चे की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड किया और मेरी खतरनाक स्थिति देखते हुए बताया कि आपका दूसरा बच्चा भी “बेबी गर्ल” है। अगर आप चाहे तो हम अबॉर्ट कर देते है।



  में और मेरे पति ने अल्ट्रासाउंड में वो नन्हा सा जीव देखा तो हमारी  आंखें भर आई। उसी समय मैने एक फैसला ले लिया की में अपनी बच्ची को जन्म जरूर दूंगी और सब उस प्रभु पर छोड़ दिया ।

  मेरे ससुराल वाले और मेरे मम्मी पापा सब ने समझाया की इस में तुम्हारी और बच्चे दोनो की जान दोनो को खतरा है, तो तुम ये रिस्क मत लो । मैने कहा, अगर ये शिशु लड़की ना होकर लड़का होता तब भी क्या आप लोग ये ही सलाह देते नहीं ना? फिर अभी आशंका ही है तो व्यक्त की है डॉक्टर ने,  क्या पता कुछ भी गलत ना हो, तो क्यों में इस नन्ही सी जान के साथ खिलवाड़ करू? अपने जीवन के साथ समझौता करना मंजूर पर अपनी अजन्मी बेटी के साथ नही। मरना जीना उप्पर वाले के हाथ है। अब जो होगा देखा जायेगा।

  मैने ये बात इतनी कड़ाई के साथ कही की फिर दुबारा कोई कुछ नही कह सका और हां मेरे पति भी मेरे इस फैसले में मेरे साथ थे। धीरे धीरे समय गुजरता गया और भगवान की ऐसे कृपा हुई की समय पूरा होने पर मैने एक सुंदर से बेटी को जन्म दिया। हालाकि जन्म के समय भी दिक्कत हो गई थी और तत्काल ऑपरेशन किया गया।

  

   मेरी बच्ची पूरी तरह स्वस्थ थी। इस बात को 17  अक्टूबर को 11 साल हो जायेंगे। आज मेरी बेटी छठी कक्षा की होनहार छात्रा है, खेलकूद से लेकर हर काम में आगे।….

  गर्व है मुझे अपने “मां” होने और अपने “फैसले” पर ।…

   अपने जीवन के साथ समझोता किया भी और अपनी बेटी के रूप में ईश्वर का आशीर्वाद भी मिला। मेरे घर की शान मेरी जान है मेरी दोनो बेटियां।

   

  आने वाली 17 तारीख को मेरी बेटी “अरायेना” का 11 वा जन्मदिवस है। आप सभी अपना आशीर्वाद अवश्य दे।

  धन्यवाद🙏

  

  कविता भड़ाना

  स्वरचित , सच्ची कहानी

  धन्यवाद….

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