समय के साथ परिवर्तन –    किरण केशरे

 

आज कमलाजी ओर परमजी पूना जा रहे थे बेटे के घर।उधर बहू को एक ही चिंता थी कि , मम्मीजी रोटी बनाने वाली के हाथों का खाना भी नहीं खाती और उन्हें बाहर के खानें से भी परहेज  रहता है । रत्ना और आलोक दोनों ही जॉब में थे ,इसलिए घर में सुबह से लेकर शाम तक के लिए देखी परखी एक बाई रख ली थी  ,जो खाना बनाने के अलावा घर की साफ सफाई और देखरेख भी करती ,जब तक वो घर नहीं आ जाते । उनकी एक साल की शादी के बाद सास -ससुर ,उनके घर पहली बार आ रहे थे ।

कमलाजी ओर परमजी घर  आ गए थे । घर व्यवस्थित और साफ सुथरा था। रत्ना चाय और नाश्ता लेकर आई ।थोड़ी देर सास ओर ससुरजी से उनकी यात्रा और स्वास्थ  सम्बंधित बातें कर रत्ना उनसे थोड़ा आराम करने का कहकर  , अपना लेपटॉप लेकर बैठ गई ।रत्ना काम पूरा कर कमलाजी से पूछने के लिए  ड्रॉइंग रूम में आई , की खाने में क्या बनाना है। कमलाजी मुस्कुरा कर बोली , आज तुम्हारी खाना बनाने वाली नहीं आएगी क्या ? रत्ना आश्चर्य से कमलाजी को देख रही थी , उसने ऑफिस से छुट्टी लेकर घर से ही काम करने का मन बना लिया था ।कमलाजी की  बातों से उसे हैरानी हो रही थी । “कमलाजी बोली मैं जानती हूँ  तुम दोनों जॉब करते हो ,समय कम रहता है ,ऐसे में अगर घर के काम के लिए किसी की मदद ले रही हो ,तो कोई गलत बात नही है”।और रही बात मेरी ,तो तुम्हारे ससुरजी ने मुझे पहले ही समझा दिया था कि, हम बच्चों के साथ अच्छा समय बिताने जा रहे हैं , ना कि , तुम  दोनों के सुगमता पूर्वक चल रहे जीवन में कोई परेशानी पैदा करने ।समय की माँग ये है कि , तुम दोनों की व्यस्त दिनचर्या में हमारे कारण कोई अड़चन न हो ।उसके मन में जो अनजाना डर था ,वह कमलाजी की बातों से दूर हो गया , उसको  लगा कि ,जैसे उसे माता -पिता ही मिल गए हों । और रत्ना का मन अपने सास -ससुर के प्रति आदर और श्रद्धा से भर गया  ! 

 

        किरण केशरे  

 

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