समय का पहिया  – ज्योति सिंघल

मेरी बुआ की शादी करीब 30 साल पहले हुई थी तब मैँ करीब 8 वर्ष की थी।

मेरे फूफाजी के तीन छोटे भाई हैं ओर सबसे छोटी एक बहिन है घर मे वो सबसे बड़े हैं।

जब से में समझने लगी थी तब से मैंने उन्हें अलग ही रहते देखा था।मेरी मम्मी बताया करती थी कि उनकी सास ओर तीनो भाई और बहिन बहुत सीधे थे।

मेरी बुआ तेज किस्म की थी पीहर में दादी बुआ पापा ओर मम्मी सिर्फ एकलौती भाभी थी जो भी उन्हें पसंद नही थी ओर ना ही पसंद था उनके काम मे हाथ बंटाना।

यही हाल उनका ससुराल में था उनके पति के अलावा घर मे ओर किसी का रहना और अन्य का काम करना उनको पसंद नही था और वहां तो उन दोनों सहित परिवार में 7 जने थे।

फूफाजी की BSNL में सरकारी नोकरी थी पर थे बहुत सीधे। बुआ ने छह माह में ही अपना रंग बताना शुरू कर दिया बात बात में झगड़ा करना क्लेश करना काम मे आनाकानी करना लापरवाही करना।

अंत मे तंग आकर उनकी सास ने ही अपने बेटे को समझा बुझाकर घर की शांति का वास्ता देकर उनको अलग कर दिया।

अलग होते ही बुआ को तो जैसे मजा आ गया घर मे सिर्फ दो जने ओर उस समय की फूफाजी की सरकारी तनखा करीब 20000 रुपये महीना। उन्होंने तो उस नशे में ससुराल में करीब करीब सबसे नाता तोड़ लिया देवरों की देवरानी की शादी में भी शामिल हुई तो मेहमानों की तरह।

एक दिन उनकी सास को अचानक लकवा मार गया छह माह बिस्तर पर पड़ी रही पर बुआ मात्र उनको हॉस्पिटल में मिलकर आ गई बाद में एक बार उनके घर जाकर हालचाल पूछा पूछने भी गयी तो दूर के रिश्तेदारों जैसा व्यवहार किया कुल मिला के सास को कभी लगा ही नही की वो उनके बेटे की बहू है जिसको उन्होंने 25 साल पाला पोसा ओर जिसकी बहु की उन्होंने आशा की होगी। छह माह बाद उनकी सास बिस्तर पर पड़ी पड़ी ही स्वर्गवासी हो गई।


समय का पहिया घूमता गया बुआ के एक बेटा एक बेटी फिर एक बेटा हुआ मतलब दो बेटों के बीच में एक बेटी।

पहले बेटी की शादी की फिर बेटे की।

समय का खेल देखिए वही बड़े बेटे की पत्नी ने आते ही छह माह भी नही निकाले घर से अलग होने के लिए नाटक करने चालू कर दिए घर मे क्लेश करना चालू कर दिया। इस बार एक बात उल्टी हुई बहु नोकरी पेशा थी सरकारी हॉस्पिटल में नर्स थी।

बुआ ओर फूफाजी ने जैसे तैसे एक साल निकाला और दूसरे बेटे की शादी की की काश दूसरी वाली सही आएगी पर दूसरी वाली पहली वाली से भी तेज निकली।

बड़ी वाली तो सास ससुर से लड़ती ही थी अब दूसरी वाली भी तैयार थी साथ साथ वो आपस मे भी लड़ने से नही चूकती थी।

अंत मे तंग आकर बुआजी फूफाजी ने अपने दोनों मकान दोनों बेटों को दे दिए और खुद किराए के मकान में जाकर अलग रहने लगे।

उन्हें अलग रहते साल भर ही हुआ था कि बुआ को लकवा मार गया लकवे से उनके मुंह एक हाथ एक पैर ने काम करना बंद कर दिया। बहुओं ने इलाज के समय अस्पताल में थोड़ी सेवा पानी की पर सास ससुर को कोई भी अपने घर नही ले गई।

धीरे धीरे बुआ की हालत में कुछ सुधार हुआ थोड़ी बहुत बोल लेती हैं चल फिर लेती हैं पर बुआ काम करने लायक नही बची। आज इस बात को 10 साल हो गए आज भी बुआ ओर फूफाजी दोनों अलग रहते हैं उन दोनों का खाना बनाने से लेकर सारे काम फूफाजी करते हैं।

आज भी में जब भी उनसे मिलती हूँ कहीं दया आती है कहीं उनके पिछले किये हुए कर्मो पर गुस्सा आता है बहुत कुछ उनको कहना चाहती हूं फिर रुक जाती हूँ….

शायद भगवान की दुनिया मे अपने कर्मों की सजा भी यहीं है ऊपर कुछ नही….

ज्योति सिंघल

सुकेत कोटा राजस्थान

 

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