गोवा का जादुई जिन्न – पूजा मनोज अग्रवाल

पिछ्ले हफ्ते हम अपने पति के साथ गोवा घूमने आये थे ,, ट्रिप के लास्ट डे का प्लान था पानी मे कैंडोलिम बीच पर मस्तीखोरी करना । मुझे वैसे भी ताल – तैलैया , नदियां – झीलें , झरने  व  समुद्र मतलब जलीय स्थान बहुत पसंद है,,,, इसके बाद शाम सात बजे हमारी गोवा से दिल्ली वापसी की फ्लाइट थी,,,,,।

कैंडोलिम बीच पहुंचकर मैं और मेरे पतिदेव तो जैसे 4 – 6 वर्ष के शरारती व उपद्रवी बालको के समान हो गए थे ,,,,हम दोनों दुड़की लगा कर जाते ,,और तेजी से आती लहरों पर बैठ जाते । समुद्र की लहरों पर उठापटक के बखूबी मजे लिये थे हमने ।  

पतिदेव हमारे बारे में जानते ही हैं कि हम बड़े धुरंधर, खतरों के खिलाड़ी हैं,,, हमारे जलपरी जैसे पानी में तैरने के शौक के चलते ,, पतिदेव अपने सब इंतजाम पुख्ता रखते हैं,,,, सो कई वर्षों पूर्व ही ये हम दोनो के बचाव के उददेश्य से स्विमिंग सीख चुके हैं ।

 पानी मे हमारी अठखेलियां निरंतर जारी थीं , कि एक भयानक लहर आई उससे हमारा बैलेंस बिगड़ गया,,,,और हम यहां – वहां  ,लुढ़कते- पुढ़कते पानी में ओन्धे  मूँह जा गिरे ।  समुद्र के तेज लहरो मे हम ऊपर- नीचे गोते खा रहे थे ,,,तभी अनायास मेरी बांह से एक काँच की बोतल आ टकराई,,, अब होशियार भी हम इतने हैं की ,,,इतनी असहज परिस्थितियों मे भी वह बोतल हमने कसकर अपने हाथ में पकड़ ली,,,  ।  कुछ सेकंड की देरी में जब पतिदेव बचाने न आये ,,, तो हमारे मन मस्तिष्क में यह विचार आया,,, शायद हमारे पतिदेव मौके का फायदा उठाकर हमें ( यानि इनकी जिन्दगी की सबसे बडी बला को ) यहीं छोडे  गये है,,।



,,,पर यहाँ तो हम सरासर गलत थे ,,,अगले ही पल हमारे प्राणनाथ हमे अपने बलिष्ठ बाहुबल के दम पर पानी से बाहर खींच रहे थे ,,,, नाक , मूँह और कान सब मे पानी भर गया था,,,,पतिदेव से प्रेम आशा की ,,,, पर वे चार-छ बात हमे सुना दिये थे ,,, ।

खैर,,,  ट्रिप पूरा हुआ और हम वापस दिल्ली आ गए पर उस काँच की बोतल का आकर्षण उसे हमारे साथ घर ले आया,,,,उस खूबसूरत बोतल को हमने अपने बेडरूम मे सामने वाली टेबल पर सजा दिया था ।

पानी मे की गई मस्ती से अब अंग- प्रत्यंग मे भयंकर पीडा  हो रही थी  ,,,अब  ज्यों ही रात हुई  हम बिस्तर पर जा लोटे  ,,,,मारे थकान के दोनो मियां बीवी जल्द ही गधे, घोड़े , गाय, भैंस सब बेच-बाच कर सो गये थे  ।

अगले दिन सुबह उठकर हम बाहर की ताजा हवा  खाने के लिये ज्यों ही दरवाजा खोला,,और वहाँ का आलौकिक नजारा देख कर दंग रह गए थे  ,,,,हमारा छोटा सा आशियाना तो महल जैसा बड़ा बनकर आसमान में बादलों के बीच लटक रहा था ,,, पास से एक कल -कल करती दुग्ध की नदी बह रही थी ,,,आसमां मे प्यारी प्यारी चिडियाँ तोते विचरण कर रहे थे।

आडू ,लीची और अंगूर के बड़े -बड़े बगीचे थे,,,,बगीचो मे बड़े – बड़े फल लटक रह थे । महंगाई के इस दौर में हम अपने घर मे फलों का बाग देख कर अति उत्साहित हो गए थे।

हम भागे भागे अंदर गए और खर्राटे भरते पतिदेव को झंझोड़ कर जगाया, ” उठिए ना ,,,काहे अभी तक बिस्तर तोड़ रहे हैं,,,, बाहर आइए देखिए हम कौन से फ्रूटलोक मे आ पहुंचे हैं । “

 पतिदेव भी हमारे साथ बाहर आये ,,,वहाँ के नजारे देख ये आश्चर्यचकित रह गए थे,,,। तभी हाहा हाहा करता हुआ एक विशालकाय जिन्न हमारे सामने आ खडा हुआ ,,,वह पतिदेव से  बोला, ” मै पिछ्ले पांच सौ साल से इस बोतल में बंद था ,,,,आपने मुझे इस बोतल से बाहर निकाला है तो आप ही मेरे मालिक हुए ,,,, आप जो कहेंगे मैं वही करूंगा मेरे आका ” ।



हमने अपना सर पीट लिया और बोले ,,” अरे भाई जिन्न हो ,,,,वह सब तो ठीक है,,,,,पर यह बताओ तुम्हें इन्होने खोला कब,,, ?  हम तो बंद बोतल मे लाए थे ना ,,,, ये बाहर कहाँ से आ टपके तुम  ? ”  

फिर अट्टहास करते हुए उस जिन्न्न ने कहा ,” रात में हमारे मालिक को पानी की प्यास लगी ,,,,तो वे गलती से पानी पीने के लिये हमारी वाली  बोतल खोल गए,,,, और वही से प्रवेश हुआ हमारा आपकी इस दुनिया में,,,। 

और हम सैड थे,,,,काहे ये बोतल हमने ना खोली,,,, बोतल हमारी मेहनत से आई ,,,,पर जिन्न पतिदेव को अपना मालिक समझ बैठा था ,,अब तो वह इनकी सभी परेशानियों को दूर करने में लग गया ,,,, बिजनेस के सभी देनदारो के पास अटकी हुई पेमेंट कलेक्ट कर ले आया । पतिदेव के सभी बिजनेस राइवल्स को धुआंदार दे पटका उसने ,,,, अब तक पतिदेव भी उसकी ईमानदारी से अत्यधिक प्रसन्न हो चुके थे,, ।



अब तो वे बात -बात पर उसके लिये मुझसे बहस किया करते ।  आये दिन वह कलमुंहा जिन्न हमसे नये- नये पकवान बनवा कर खाता और पतिदेव के साथ बैठ कर नेटफ्लिक्स पर नित नई वेब सीरीज देखा करता ।

अब तो इस जिन्न से हम तंग आ गये थे,,,,पतिदेव के साथ टाईम स्पेन्ड करना सपना बन चुका था,,,,मरा चालाक इतना था  की वापस बोतल मे डालना भी टेढी खीर था ,,,इस मुए जिन्न से डरते हम इन्हे कुछ ना कह पाते ,,।  जिन्न पतिदेव की समस्त परेशानियों का अंत करने पर तुला था ,,,और हमारी जान यूं अधर में अटकी थी ,,,,कहीं पतिदेव अगली परेशानी मे हमारी तरफ उंगली ना दिखा दें ,,,,, सो हमने पतिदेव के सामने मुंह सील कर रहने की कसम खा ली थी ,,,।

हमने विचार किया जब भगवान ने इस जिन्न को भेज ही दिया है,,, तो क्यों ना हम इसके सहारे दुनिया की कुछ सैर ही कर लें ,,,,,।

 हमें फूलों का बहुत शौक है , तो हमने अपने पतिदेव से कह कर जिन्न को धरती की सबसे खूबसूरत फूलों की जगह,,, पर ले जाने के लिए कहा,,, । उसने “जो हुक्म मेरे आका ” कह कर हमे कालीन पर बिठाया और ले आया इस जगत की सबसे सुंदर फूलों की घाटी में,,,घाटी मे ट्यूलिप , गुलाब , लिली , डेज़ी , कनेर और गेंदा जैसे कई रंग -बिरंगे , हजारो फूल खिले हुए थे ,,,, मदमस्त हवाऐ फूलों की खुशबू को  हर ओर बिखरा रही थी,, इतना सुरम्य , मनभावन दृश्य मैंने अपनी जिंदगी में आज तक नहीं देखा था । 

फूलों की सुन्दरता देखकर हमें याद आया कि चलो फूलों मे एक खूबसूरत पोज़ बनाया जाए । फ्लिप हेयर पोज बना कर जैसे ही हमने अपने कैमरामैन,,,, मतलब पतिदेव को फोटौ क्लिक कराने के लिए ढूंढा तो वह तो नदारद थे । 

हमने जिन्न से फोटो क्लिक का आग्रह किया ,,,परंतु हम उसके मालिक ना थे,,,,सो उसने  हमारी आज्ञा मानने से इंकार कर दिया । अब बढ़िया लोकेशन में फोटो ना खिच पाने के कारण हम थोड़ा तनाव मे थे , और फ्लिप हेयर पोज़ से जो गर्दन मे बल पड़ गया था सो अलग ,,,,।  पतिदेव कहीं ना दिखने पर हम जिन्न पर खीज उठे थे , ” कहां है हमारे पतिदेव,,,,? इनके बिना हम रुआंसे से हो चले थे ।

जिन्न तुरंत बोला,  “आपके पतिदेव ने सिर्फ आपको ही फूलों की घाटी में भिजवाने के लिए कहा था,,,,वो तो घर पर ही रह गये हैंं ” ।

क्या ,,,सिर्फ हमें भिजवाने को कहा था ,,,??

अच्छा ! चलो कोई बात नहीं वह बहुत बिजी मैन है ,,,,, किसी जरूरी कार्य के चलते व्यस्त रहें होंगे ,, पर अब तुम हमें हमारे घर वापस ले चलो ,, बहुत हो गया एंजॉयमेंट ,,,, गर्दन भी दुख रही है हमारी ।

जिन्न ने कहा , ” नहीं ऐसा नहीं हो सकता ,,,, आका ने कहा था जब तक मैं ना कहूँ,,, इन्हें वापस मत लाना ,,,,हमारे तो होश फाख्ता थे ,,,फूलों की खुशबू अब हार्ड परफ्यूम की भांति हमारा सर दर्द कर रही थी ।

 हम गुस्से मे धड़ाधड़ जिन्न के मुंह पर मुक्के, लात घूंसे बरसाने लगे थे,,,  इतने हमारे पतिदेव को शायद हम पर तरस आ गया था,,  और वे दौड़कर हमारे पास आए और बोले ,,,,अरे काहे लात बांह चला रही हो,,?  और इनकी प्रेमभरी आवाज सुनकर हम हडबड़ा कर उठ बैठे ।

अरे यह क्या ,,,, ? ये तो एक सपना था ,,,।

देखो  तो !  बौरा गई हो तुम ,,,? नई परफ्यूम की शीशी लाये थे वो भी गिरा कर तोड़ दी तुमने ,,,, सुबह-सुबह नुक्सान ,,, । जाओ,,,,जा कर चाय बना कर लाओ ,,,मस्त बारिश का मौसम है बाहर,,,। 

हमारा खूबसूरत जादुई सपना छन से टूट गया  था ,,,और हम उस प्यारे जिन्न को ढूंढ रहे थे,,, जो भले ही हमे फूलों के बाग ना ले जाए पर,,, हमारे लिए चाय जरूर बना लाए ।

कल्मुँहा जिन्न बहुत याद आ रहा था हमे,,,, स्वप्न का इतना भयंकर असर था हम पर ,,,,की गोवा से लाई उस काँच की बोतल को खोल कर उसमे  से जिन्न निकालने की इच्छा बलवती हो गई थी हमारी ।

अब हम पतिदेव के ऑफ़िस जाने के इन्तजार मे बैठे है ,,,, क्योकि इस बार तो जिन्न की मालकिन हमें ही बनना है ,,,,, पतिदेव क्या करेंगे जिन्न का,,,,,?

उनकी जिंदगी में तो हम हैं ना , उनकी जिन्नी उनके सभी काम परफ़ेक्टली करने को,,,।

स्वरचित मौलिक 

पूजा मनोज अग्रवाल

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