सहारा – अनुपमा

आभा का फोन बार बार बजता ही जा रहा था , मीटिंग मे  थी और फोन साइलेंट पर , उसे कुछ पता ही नही चला । मीटिंग के बाद जैसे ही आभा ने अपना फोन चेक किया वो परेशान हो गई , इतने सारे मां के मिस कॉल आखिर क्या हो गया? मां को वापिस फोन किया तो फोन उठा ही नही अब तो आभा और भी ज्यादा परेशान हो गई थी 

आभा एक मल्टीनेशनल कंपनी मैं बैंगलोर मैं काम करती थी , अच्छी पोस्ट अच्छी सैलरी थी उसकी, साथ ही घर की एकमात्र कमाऊ सदस्य भी वही थी । पापा तो उसके बचपन में ही गुजर गए थे और बड़े भैया जिन्होंने आभा को बेटी की तरह पालपोस के बडा किया  पिछले साल कोरोना मैं चल बसे ।अब मां , भाभी और एक साल की बच्ची उसकी भतीजी की जिम्मेदारी उस पर ही थी ।

मां का फोन नही उठा तो उसने भाभी का फोन लगाया पर वहां से भी कोई जवाब नही आया । अब तो आभा और भी ज्यादा परेशान हो गई , भाभी के मायके से भी कोई नही था , दरअसल भैया ने लव मैरिज की थी और भाभी अनाथ थी । आभा ने अपनी टिकट बुक की ओर शाम को ही घर के लिए निकल गई ।



घर पहुंची तो पड़ोसियों से पता चला की भाभी और मां अस्पताल मैं भरती है उन्हे भी कोरोना हुआ है और बच्ची भी अस्पताल मैं ही है क्योंकि कोई भी कोरोना ग्रसित परिवार से संपर्क मैं नही आना चाहता था ।

डॉक्टर से बात करने पर पता चला की ऑक्सीजन लेबल बहुत कम है और काला बाजारी की वजह से ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध नहीं है अगर वो ऑक्सीजन सिलेंडर ले आए तो कोई परेशानी नहीं होगी , आभा तो इस शहर मैं किसी को ज्यादा जानती नही थी फिर भी जितना जानती थी उसने पूरी कोशिश की दौड़ भाग की पर मां और भाभी को वो बचा नही पाई ।

आभा की तो जैसे दुनिया ही खत्म हो गई थी इस त्रासदी ने उसका सबकुछ खत्म कर दिया था , बिलकुल टूट गई थी आभा ,छोटी आशु  बुआ की उंगली पकड़ कर के बस म म म बोले जा रही थी ,आशु की आवाज से आभा होश मैं आई और सारे नित्य कर्म निपटा कर वो घर आ गई और सोचने लगी की आगे क्या करना है ।

आशु को लेकर वो बैंगलोर आ गई ,उसे सबसे पहले अपने लिए एक घर देखना था जहां वो आशु के साथ रह सके , अकेली थी तो पीजी मैं रह लेती थी पर आशु के साथ ये संभव नहीं था , आभा मयंक को फोन लगाए जा रही थी पर उसका फोन भी अनरीचेबल बता रहा था , आभा के साथ हुई घटना ने और उसके ऊपर आई जिम्मेदारियों से मयंक घबरा गया था और आभा का नंबर उसने ब्लॉक कर दिया था ।

आभा जहां कहीं भी घर देखने जाती तो लोगो की नजरों मैं छिपे सवालों से वो खुद को बचा नही पाती और कोई भी इतनी छोटी बच्ची को देखकर उसपर विश्वास नही करता और घर देने को राजी भी नही होता । आभा थक चुकी थी और हार मान चुकी थी । 

अगले दिन किसी के बताए हुए कुछ और मकान आभा देखने निकली पर आज भी हताशा ही हाथ लगी और वो थक कर पास ही के पार्क मैं बैठ गई । अभी वो बैठी ही थी और आशु को बिस्कुट खिला ही रही थी की उसकी ही बेंच पर बैठी एक अंकल जिनकी उम्र लगभग पचास के आसपास होगी ,नीचे गिर पढ़ते है और आभा आशु को बैठा कर फौरन ही उन्हें संभालती है और पानी पिलाती है साथ ही डॉक्टर को फोन करती है तभी आसपास के लोग इकट्ठा होजाते है और पास ही उनके घर से उनकी पत्नी को बुला लेते है और सभी उन्हे उनके घर तक पहुंचा देते है । आभा भी उनके घर तक जाती है ,अंकल के थोड़ा संभालने तक वो वही रुकती है ,आंटी उसे चाय पूछती है और बातों ही बातों मैं उन्हे पता लगता है की आभा की क्या कहानी है ।



अंकल आंटी अकेले ही रहते है , उनका बेटा बाहर काम करता है , चूंकि कोरोना के कारण अभी वर्क फ्रॉम होम चल रहा है तो घर मैं ही है जब कंपनी बुलाएगी तब वापिस चला जायेगा ।

आंटी आभा को अपने घर मैं किराए से रूम देने को राजी हो जाती है । आभा की तो जैसे मुंहमांगी मुराद पूरी हो जाती है ,आभा अगले दिन ही अपना सामान लेकर आंटी के यहां रहने आ जाती है ।

आभा का भी वर्क फ्रॉम होम शुरू हो चुका था , मां वाला घर भी किराए का ही था तो उसने वहां से बैंगलोर रहना ही उचित समझा , आभा सुबह जल्दी उठ कर आशु का सारा काम निपटाती और फिर ऑफिस का काम करती बीच बीच मैं आभा आशु को खिलाती पिलाती रहती , अंकल आंटी भी चूंकि अकेले ही थे ,उनका बेटा यश दिनभर काम मैं ही बिजी रहता था तो आशु के साथ बहुत घुलमिल गए थे उनका भी अच्छा समय बीत जाता था बच्ची के साथ । कुछ दिनों मैं ही आभा और आशु पूरी तरह से घुलमिल गए थे आंटी और अंकल से ,अब तो आभा आंटी की भी कुकिंग कर दिया करती थी साथ ही और आंटी ने आभा को अपनी किचन अलाउ कर दी थी , और आंटी ने भी आशु की पूरी जिम्मेदारी उठा ली थी लगता था की आभा उनकी ही बेटी और नातिन है ।

पता ही नही चला आभा कब किरायेदार से परिवार बन गई ।

यश को भी ये सब देख कर अच्छा लगता था क्योंकि अब मां पापा आशु के साथ खुश रहते थे , और उसकी भी आभा से दोस्ती हो गई थी ,दोनो ही इंजीनियर है और काम मैं भी कभी कोई परेशानी होती तो एक दूसरे की मदद ले लिया करते थे ।

आंटी ने आज घर पर पूजा रखी थी उन्होंने आभा को बुला कर अपनी कांजीवरम साड़ी देकर कहा की आभा अगर तुम्हे दिक्कत न हो तो बेटा आज ये पहन कर रेडी हो जाना ।

आभा जब साड़ी पहन कर पूजा मैं शामिल हुई तो यश की नजरें उससे हट ही नहीं रही थी बस यही आंटी देखना चाहती थी । पूजा समाप्ति पर उन्होंने यश और आभा को अपने पास बुलाया और कहा की अगर तुम दोनो कोई आपत्ती नही तो हम तुम दोनो की शादी करा दे । आभा ये सुन कर ही गीली आंखों से आंटी के गले लग जाती है और यश वो तो पहले से ही हां कर चुका था ।

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