सफर – अनुपमा

मां का फोन आते ही शिवानी ने कुछ कपड़े  बैग मैं रखे और सीधे स्टेशन आ गई , मौसम बहुत खराब था , तेज बारिश हो रही थी , स्टेशन पर भी इक्का दुक्का लोग ही थे , और उसके शहर की ओर जाने वाली गाड़ी मैं तो वैसे भी कम ही सवारियां होती है और आधे रास्ते तक वो भी उतर जाती है , अनजानी आशंका से शिवानी के बदन मैं झुरझुरी दौड़ गई , पर वो क्या करती जाना तो था ही उसे … बरसात की वजह से गाड़ी और दो घंटा देरी से ही आई  बहुत रात हो गई थी , 

स्टेशन पर कुछ चहल पहल हुई और कुछ सवारियां गाड़ी मैं अपनी अपनी जगह जा कर बैठ गई , कुछ ने चादर तानी और सो गए । शिवानी एक अकेले वाली सीट पर जाकर बैठ गई , दोहरी चिंता मैं और ठंड मैं वो सिकुड़ी चली जा रही थी … जितनी बार ट्रेन रुकती और यात्री नीचे उतरते उतनी बार उसका दिल हलक मैं आ जाता , अभी उसके स्टेशन आने मैं कुछ और स्टेशन का अंतराल था , वो मन ही मन भगवान का नाम ले रही थी जल्दी से स्टेशन आ जाए और वो घर पहुंचे । उसने इधर उधर नजरें घुमा कर देखा तो उसे कुछ लोग साथ बैठे नजर आए बाकी किसी और के होने का एहसास न हुआ ।

वो अपनी जगह पर और सिकुड़ कर बैठ गई … इतने मैं उसे कुछ पदचापें अपनी ओर आते सुनाई दी साथ मैं कुछ भद्दी आवाजे भी , कुछ लोगो का झुंड उसके आस पास ही आकर बैठ गया , वो बुरी तरह घबरा गई ,जान हलक मैं आ गई उसकी वो वहां से उठने ही लगी थी की उसके ठीक सामने आकर एक व्यक्ति खड़ा हुआ और उसने उसका हाथ पकड़ लिया ,उसके मुंह से चीख निकलती इससे पहले ही बोल पड़ा अरे रिया तुम यहां कैसे , घर जा रही हो ,अच्छा हुआ तुम मिल गई वरना अकेली ट्रेन मै मैं तो बोर ही हो गया था , शिवानी उसे अचरज से देखती रह गई … उसने देखा बाकी लोग जो कुछ देर पहले वहां आ कर बैठे थे सभी उठ कर जाने लगे तो उसकी सांस मैं सांस आई ,उसने झट से अपना हाथ अजनबी के हाथ से छुड़ाया और धम्म से अपनी सीट पर बैठ गई , मगर वो बदमाश जाते जाते ट्रेन की चैन खींच गए , गाड़ी रात के अंधेरे मैं बियाबान जंगल मैं बीचों बीच रुकी हुई थी , शिवानी ने कतार निगाहों से उस अजनबी की तरफ देखा , उस अजनबी ने भी उसे आंखों से ही आश्वासन सा दे दिया और वो सुरक्षित महसूस करने लगी ।



अब उस कंपार्टमेंट मैं वो दोनो अकेले ही थे ,बारिश तेज होने की वजह से बहुत ठंड हो गई थी , शिवानी को उस अजनबी ने अपनी जैकेट उतार कर दे दी और उसके बगल से ही आकर बैठ गया जिससे खिड़की की झिर्रियों से आती हवा से उसे बचा सके । कुछ पलों की कमजोरी कहिए , या मौसम का असर या कृतज्ञता , शिवानी और अजनबी के बीच ऐसा रिश्ता बना जो कभी शिवानी ने सोचा भी नही था  ….घर पहुंची तब तक बहुत देर हो चुकी थी उसके पिता जी का देहांत हो चुका था ।

आज भी बहुत तेज बारिश हो रही है ,शिवानी की आंखों के सामने आज वही 25 साल पहले की रात घूम रही है उस रात का एक एक पल उसकी आंखों के सामने से किसी फिल्म की तरह घूम रहा है , जैसे सब कल ही घटित हुआ हो .. इतने सालों बाद इस तरह आमना सामना होगा कभी सोचा नहीं था उसने , आज मोहित और शिवानी अतुल के घर गए थे , अतुल की बेटी पीहू और मोहित शादी करना चाहते थे दोनो साथ पढ़ते थे , साथ ही जॉब थी दोनो की , शिवानी ने जब मोहित को शादी के लिए बोला तो उसने उसे पीहू से मिलवा दिया , वहां अतुल को देख कर वो अपनी सुधबुध ही खो बैठी ,आज उसका अतीत 25 साल बाद उसके सामने खड़ा था , शिवानी को जब पता चला था की वो पेट से है तो वो शहर मैं ही बस गई थी सबको यही बोल कर की उसकी शादी हो चुकी थी पर असमय पति की मृत्यु हो गई , उसने मोहित को अकेले ही पाला पोसा .. बड़ा किया ।

आज अतुल को यूं सामने पाया खुद के , कैसे बताए उसे की जिस लड़के से उसकी बेटी शादी करना चाहती है वो उसका खुद का बेटा है ,जिंदगी भी अजीब कशमकश दिखाती है , जो भी है जैसा भी है अतुल को सच बताना तो पड़ेगा ही न , मोहित और पीहू से क्या कहेंगे वो दोनो , शिवानी बहुत ही विचित्र परिस्थिति मैं फस चुकी थी । 

शिवानी ने अतुल से बात की ओर उससे मिलने के लिए कहा … शिवानी जब कैफे पहुंची तो अतुल वहां पहले से ही उसका इंतजार कर रहा था … सारा सच जानकार अतुल भी हैरान रह गया , उसने भी कभी भी उस दिन के बाद शिवानी को ढूंढने की कोशिश नही की थी और उसे अंदाजा भी नहीं था की उसका बेटा भी होगा और शिवानी इस तरह अपनी पूरी जिंदगी उसके लिए त्याग कर देगी । अतुल अतुल,,,, कुछ बोलते क्यों नही तुम …. शिवानी ने उससे पूछा तो जैसे वो अपनी सोच से बाहर आया ।

शिवानी तुम फिक्र मत करो , मेरी शादी हुई थी काजल से पर शादी के 10 साल भी वो मां नही बन सकी तब हमने पीहू को गोद लिया था और पीहू से हमने कुछ भी छुपाया नही है वो सब जानती है , काजल के बाद मैने उसकी परवरिश अकेले की है और वो बहुत समझदार है ,मोहित से उसकी शादी मैं कोई अड़चन नहीं है ,,, शिवानी मन ही मन सोचती है ,, नियति के आगे किसका जोर चला है ,, किस्मत को मोहित और अतुल को मिलाना था उसने भी कैसा खेल रचा

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