बस नंबर पच्चीस ग्यारह  – अंकित शर्मा

वह एक अंधेरी रात थी । काले बादलों ने आसमान के ऊपर अपना घर बनाया हुआ था कि मानो बस अभी बरसने ही वाले हों । दूर – दूर तक कोई आवाज़ नहीं , सिवाय झींगुरों के । वह एक घना सुनसान जंगल था ,  जिसके बीचों-बीच से निकली एक कच्ची सड़क आसपास के गांवों को जोड़ती थी । जंगल के किसी जानवर का शोर भी नहीं था ।

माहौल में आज कुछ अलग ही बात थी , जैसे हज़ारों प्रेत एक साथ जाग गए हों , या जैसे एक कब्रिस्तान के सारे मुर्दे बाहर आकर अपनी आज़ादी का शोर उस सनाटे में घोल रहे हों। 

ऐसे ही माहौल में उस कच्ची सड़क पर एक पुरानी खटारा बस दनदनाती हुई दौड़ी चली जा रही थी । उसके अंदर फिलहाल कोई सवारी तो मौजूद नहीं थी लेकिन बस ड्राइवर और कंडक्टर अपनी सीट पर मस्त पीठ टिकाकर बैठे हुए थे । बस ड्राइवर जहां कुछ पैंतीस वर्ष का दुबला – पतला एक युवक था जिसकी लंबी घनी दाढ़ी थी और उसने एक सफेद रंग की गंदी सी कमीज़ पहनी हुई थी वहीं बस कंडक्टर कुछ चालिस साल का प्रतीत हो रहा था। उसका बाहर को निकला हुआ उदर बस के हिचकोलों के साथ साथ ही उछल रहा था । चेहरे पर मोटे फ्रेम का चश्मा और सर पर कुछ ही बाल थे । कंडक्टर ने एक भूरे रंग की शर्ट और काले रंग की पतलून पहन रखी थी ।  दोनों ही हल्के नशे की हालत में थे । दोनों की सीट के बीच में एक पुराना सा रेडियो रखा हुआ था जिसमें हल्की- हल्की आवाज़ में गाना चल रहा था :

आजा सनम , मधुर चांदनी में हम-तुम मिले तो वीराने में भी आ जायेगी बहार ।

झूमने लगेगा आसमान……

तभी बस ड्राइवर बोला , ” भैया , आज आखिर मेरे दोस्त की शादी हो ही गयी । बचपन से उसे देखता आ रहा हूं । इतना खुश वो पहले कभी नहीं लगा। ” बोलते समय उसके चेहरे पर संतुष्टि एवं खुशी दोनों थी ।

कंडक्टर ने भी एक लंबी अंगड़ाई लेकर कहा ” हाँ वो सब तो ठीक है लेकिन आज थकान भी कुछ ज्यादा ही हो गयी । यह लड़के वालों के घर से बारात घर की दूरी इतनी ज़्यादा थी कि पूरे दिन बैठे- बैठे कमर अकड़ गयी। “

ड्राइवर ने हल्का सा मुँह बिचका कर कहा ” एक बात कहूँ रमन भैया ? आप थोड़ा मोटा गए हो , वरना इतनी भी कुछ ज्यादा दूर नही था बारात घर । वैसे भी इतनी सारी बसें गयीं थी सभी बारातियों को लेकर , हम ही सबसे जल्दी घर जा रहे हैं , बाकी तो कल ही आएंगे ।

उसकी बात सुनकर रमन ने बस ड्राइवर की तरफ़ गुस्से में नज़र घुमाई और कहा ” ऐ विनोद , तुम हमारे वजन के बारे में अगर एक बार और कुछ बोले ना तो बजरंग बली की कसम यहीं पटक के मारेंगे । अच्छा वो सब छोड़ो , यह बताओ यह जंगल वाले रास्ते से क्यों ले जा रहे हो ? आज से पहले तो हम कभी नहीं आये इधर से । “


” अरे भैया यह छोटा रास्ता है , घर जल्दी पहुँचेंगे इससे । वैसे भी आपकी पीठ अकड़ गयी है ना । ” विनोद ने चुटकी लेते हुए कहा जिसपर रमन ने गुस्से से उसे घूरा। 

” हमको यह रास्ता ठीक नहीं लग रहा है विनोद । देख रहा है , कैसे यहाँ आस पास बिल्कुल घुप अंधेरा है । किसी जानवर की भी आवाज़ नहीं आ रही । ” रमन ने यहाँ वहाँ देखते हुए कहा। 

” यह तो हमारे लिए अच्छी बात है ना की आस पास कोई जानवर नहीं है । वैसे भी जानवर सब जंगल के भीतरी इलाकों में मौजूद होते हैं । यहां बाहरी सड़क पर उन्हें कम ही देखा जाता है । आप भी भैया , ऐसे डर रहे हो जैसे हम कोई भूत से मिलने जा रहे हैं । ” विनोद बोला ।

रमन भूत का नाम सुनकर झुंझला गया और बोला ” ए विनोद , यह भूत वगैरह का नाम मत लो इस टाइम और चुप चाप गाड़ी चलाने पर ध्यान दो । “

उसने इतना कहा ही था कि विनोद ने एक झटके से बस को रोक दिया ।

” बस क्यों रोक दी विनोद ? क्या हुआ , तेरी तबियत ठीक है ना? ” रमन ने फिक्र जताते हुए पूछा। 

विनोद ने सामने की तरफ इशारा किया । बस की हेडलाइट्स ज़्यादा दूर तक नहीं पहुँच रही थी लेकिन इतनी थी कि सामने का दृश्य उन्हें साफ़ दिख रहा था। वहाँ लगभग ग्यारह औरतें खड़ी थी । सभी ने लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी और घूंघट से अपने चेहरे को ढक रखा था।

विनोद ने आश्चर्यचकित होकर कहा ” अरे ! इतनी रात गए यह सब औरतें इतना सज धज के कहाँ जा रहीं हैं ? “

रमन ने कुछ सोचते हुए कहा ” देखने में तो ऐसा लग रहा है कि कहीं किसी शादी से वापस लौट रही हों।  एक काम करो भैया , इन सब से पूछ लो कि कौन से गांव से हैं। हम आगे ही जा रहे हैं तो इन्हें भी छोड़ ही देते हैं । “

” लेकिन इतनी रात गए ऐसे किसी को बस में बिठाना ठीक नहीं है विनोद । क्या पता क्या मुसीबत आ जाये । ” रमन ने ना में गर्दन हिलाते हुए कहा । उसकी आंखें अभी भी सामने खड़ी उन औरतों को ही घूर रही थी जोकि अब धीरे-धीरे इन्हीं की तरफ़ बढ़ रही थीं ।

उन सब में सब से आगे खड़ी एक हट्टी कट्टी और कद में औसत औरत ने बस के दरवाजे के करीब आकर पूछा ” हम सभी आगे वाले गांव जा रहे हैं। छोड़ दोगे ? “

उस औरत की आवाज़ एकदम भारी थी , साथ ही में उसके बात करने का लहजा भी काफी सख्त था। 

रमन कुछ कहता इससे पहले विनोद ने अजीब ढंग से मुस्कुराते हुए कहा ” हाँ हाँ क्यों नहीं । आइए बैठ जाइए।  “

एक एक करके वह सारी औरतें बस में चढ़ीं और बैठती चली गईं । अभी तक जो बस एकदम शांत थी वह अब सवारियों से भर गई । लेकिन एक बात अज़ीब थी , की बस में पहले भी वही शांति थी और अब भी ।


” क्या ज़रूरत थी इन्हें बस में बैठाने की । हम चुप चाप अपने घर भी तो जा सकते थे।  ” रमन ने विनोद के पेट में कोहनी से मारते हुए कहा ।

” भैया आप इन औरतों को बीच जंगल में छोड़कर चले जाओगे ? वो भी इतनी रात को ? अच्छा चलो , ऐसे सोचो कि ये ग्यारह औरतें हैं अगर दस-दस रुपये भी देंगी तो अपना पीने का जुगाड़ तो हो ही जायेगा।” विनोद अपनी सीट पर तन के बैठते हुए बोला ।

पीने का नाम सुनकर रमन शांत हो गया । उसने मन ही मन कुछ सोचा और बोला ” विनोद , मैं पीछे उनके पास जाता हूँ यह पूछने की कहाँ उतरेंगे वो लोग । “

उसके निकलते ही विनोद मुस्कुरा दिया और रेडियो की आवाज़ हल्की तेज़ कर ली ।

रमन पीछे की तरफ़ आकर उसी औरत के सामने खड़ा हो गया।

” वैसे इतनी रात को जंगल में आप सब क्या कर रही थी ? डर नहीं लगता क्या ? ” रमन कंडक्टर वाली सीट पर हाथ टिकाए खड़ा होकर बोला। 

उसके इतने कहने पर उस आगे बैठी औरत के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी जोकि उसके घूँघट में होने के बावजूद साफ पता चल रही थी। लेकिन उसकी वह मुस्कुराहट कुछ अजीब थी। चेहरे पर सख्ती और गुस्से के भाव के साथ मिश्रित वो मुस्कुराहट काफी डरावनी थी । वह बोली ” डर ? हमे क्यों किसी से डर लगेगा ? ” उसकी आवाज़ इतनी सर्द थी कि रमन की दिल की धड़कन हल्की सी बढ़ गयी थी । उसको वहां कुछ गड़बड़ तो लग रही थी लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था ।

उसने अपने माथे पर आए पसीने को पोंछते हुए कहा , ” अच्छा यह बताओ आप सब कहाँ उतरोगे ? ताकि में टिकट काट…..। “

उस औरत ने अपनी नज़र रमन की ओर डाली तो रमन अचानक ही चुप हो गया । उस औरत ने फिर उसी सर्द आवाज़ में कहा ” जब उतरना होगा , तुम्हे अपने आप ही पता चल जाएगा । “

रमन कुछ बोल नहीं पाया और वापस से विनोद के बगल में आकर बैठ गया। विनोद ने जब उसकी तरफ़ नज़र डाली तो देखा कि रमन पूरी तरह से पसीने से भीग चुका था । उसने कहा ” क्या हुआ भैया , इतना पसीना क्यों आ रहा है । “

रमन ने एक नज़र पीछे की ओर डाली फिर सामने विनोद से बोला ” यह आगे बैठी औरत कुछ अज़ीब है। इसके बात करने का तरीका बहुत विचित्र है। “

” लो अब इस बात से भी समस्या है आपको की किसी औरत का बात करने का तरीका कुछ अलग है। रुको , घर पहुँचकर भाभी को बताने दो यह बात।” विनोद गर्दन को हिलाते हुए बोला ।

” अरे तुम्हारी भाभी से तो कम ही अजीब है । चलो अब सीधे , वैसे भी यह बता तो रही नही है कि इन्हें उतरना कहाँ है। मैंने जब पूछा तो बोली कि जब उतरना होगा तो खुद पता चल जाएगा । ” रमन के शरीर में थकान देखी जा सकती थी।

अगले दो तीन गांव अब पीछे छूट चुके थे और बस वैसे ही चले जा रही थी। तभी रमन ने एक बार फिर पीछे मुड़कर ज़ोर से पूछा , ” अरे अब तो बता दो कहाँ पर उतरना है ? “

उसके ऐसा पूछते ही सारी औरतों की गर्दन एक साथ उसकी और घूमी । रमन को कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था । वो उनकी आंखों में सीधे नही देख पा रहा था कि तभी उस औरत ने वापस से उसी सर्द आवाज़ में कहा ” एक बार बोल दिया ना , जब उतरना होगा तब पता चल जाएगा । “

उसके इतना बोलते ही रमन वापस सामने की ओर मुड़ा । रमन और विनोद दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा । रमन विनोद को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था । विनोद सकपका गया और सामने देख कर बस चलाने लगा ।

अगले आधे घंटे तक बस वैसे ही जंगल में दौड़ती रही । बस के अंदर इतनी शांति थी कि अगर उधर सुई भी गिरती तो उसकी भी आवाज़ आती । रमन विनोद भी एक दूसरे की तरफ़ नहीं देख रहे थे । दोनों का दिल कुछ अनहोनी की ओर इशारा कर रहा था । तभी दोनों को बस के अंदर का तापमान हल्का गिरता हुआ प्रतीत हुआ । अचानक से ही जंगल के अंदर से जानवरों के रोने की हल्की हल्की आवाज़ आने लगी। वो आवाज़ रेडियो पर बज रहे गाने के साथ और भी डरावनी सुनाई दे रही थी । उन दोनों का मस्तिष्क इस घटना का अवलोकन कर ही रहा था कि तभी बस एक झटके से रुकी । उस झटके की वजह से रमन और विनोद अपनी अपनी जगह से आगे की तरह झुक गए । विनोद ने पीछे की ओर देखा तो वह हैरान रह गया। वह सारी औरतें जैसे कि तैसे बैठी हुई थी मानो उनपर उस झटके का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा हो । तभी वह सारी औरतें एक साथ उठी और अपनी सीट पर खड़ी हो गयी । उन औरतों में सबसे आगे की ओर बैठी औरत ने वापस अपनी उसी सर्द आवाज़ में कहा ” बस यहीं उतरना है । “


रमन और विनोद दोनों यह सुनकर हैरान हो गए क्योंकि ब्रेक्स विनोद ने नहीं लगाए थे । शायद बस खराब हो गयी थी । तो ऐसा कैसे संभव है कि बस उसी जगह खराब हुई जहां उन औरतों को पहले से उतरना था।

अभी दो औरतें बस से उतरी ही थी कि तभी दो चीज़ें हुई । लेकिन काश वो दो चीजें अलग अलग समय पर होती । विनोद ने जैसे ही अपनी तरफ़ की खिड़की से बाहर देखा उसके होश ही उड़ गए । उसके मुँह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे । उसने देखा कि जहाँ अभी उनकी बस खराब हुई है उसके ठीक दायीं तरह ही एक कब्रिस्तान बना हुआ है । उसका लोहे का गेट हवा में झूल रहा था कि मानो अभी टूट के अलग हो जाएगा । विनोद अपना हाथ रमन के कंधे पर मार रहा था जैसे उससे कुछ कहना चाह रहा हो लेकिन मानो आज रमन का दिमाग उसका साथ नही दे रहा था । उसने विनोद की तरफ़ ना देखते हुए वो कहा जो उसे नहीं कहना चाहिए था , ” अम….वो…..पैसे तो देते जाओ । “

उसके मुंह से यह शब्द सुनते ही विनोद ने एकदम से चौंकते हुए सामने की तरफ़ देखा । उन औरतों की आँखे उनके घूँघट के अंदर से चमकने लगी थीं। सबसे ज़्यादा तो उस आगे खड़ी औरत की आँखे चमक रही थी । तभी वातावरण में तेज़ी से परिवर्तन हुआ । ज़ोर-ज़ोर से हवाएं चलने लगी तथा जानवरों का रुदन और भी तेज़ हो गया था । ढेर सारे कौए उनकी बस के ऊपर आकर ऐसी आवाज़ निकालने लगे मानो उन दोनों को चेतावनी दे रहे हों । बस के अंदर एक अजीब सी मांस के सड़ने की बदबू फैल गयी थी लेकिन उससे भी ज़्यादा भयानक तो वह चीज़ थी जिसको वह दोनों अपने सामने देख रहे थे। बस की खुली हुई खिड़कियों में से बाहर चल रही तेज़ हवाएं अंदर आ रही थीं जिससे उन सब औरतों के घूँघट बीच बीच में ऊपर उठ रहे थे । तभी एक तेज़ झोंका आया जिससे सबसे आगे खड़ी उस औरत का घूँघट उसके चेहरे पर से पूरी तरह हट गया। बिल्कुल किसी मुर्दे की तरह सफेद चेहरा , आँखे पूरी तरह लाल जैसे मानो पूरी आंखों में खून फैल रखा हो। चेहरे पर कहीं कहीं हल्का जलने के  निशान भी थे । पूरे गुस्से के भाव लिए वह रमन और विनोद को ही देखे जा रही थी । वह रमन के एकदम करीब आकर उसको ऊपर से नीचे तक देखने लगी फिर बोली , ” हम तेरे शुक्रगुजार थे क्योंकि तूने हमे हमारे घर तक पहुँचाया , लेकिन …..यह बात बोलकर तूने ठीक नहीं किया । लगता है तुझे तेरी जान प्यारी नहीं । “

उसके ऐसा बोलते ही पीछे खड़ी बाकी की दस औरतें भी ज़ोर से हसने लगी । उनकी हंसी बहुत भयानक थी । सभी के बाल भी अब खुल चुके थे और वह अपने सर को अजीब तरह से घुमा रही थी।

रमन और विनोद इतने सर्द महौल में भी पूरे पसीने से भीग चुके थे । उनकी आँखें बंद होने का नाम नहीं ले रही थी हालांकि वह कोशिश पूरी कर रहे थे । उनकी टांगे बुरी तरह काँप रही थी । तभी रमन ने अपनी गर्दन नीचे झुकाई तो देखा कि उस औरत के पांव उल्टे थे । उसने जैसे ही ऊपर की तरफ़ देखा तभी वह सब औरतें फिर से हँसने लगीं ।

धीरे-धीरे जानवरों का रुदन रुक गया।  हवाएं भी चलना एकदम से रुक गई थी । तभी उस बस के अंदर से वह ग्यारह औरतें एक एक करकर उतरने लगी और देखते देखते कब्रिस्तान में ओझल हो गई ।

 

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सुबह का वक़्त था । सूरज अपनी पूरी ताकत के साथ आसमान में चमक रहा था। जंगल के उस हिस्से में आज कुछ लोगों की भीड़ जमा थी । सबके सब शांति से उस भयानक दृश्य को देख रहे थे ।

रमन और विनोद की लाश पास के बरगद के पेड़ पर लटकी हुई थी । दोनों के चेहरे बिल्कुल सफेद पड़ चुके थे । और उनके गले में कुछ लटका हुआ था । वह एक बोर्ड था जिसके ऊपर खून से लिखा हुआ था , बस नंबर पच्चीस ग्यारह

 

 

समाप्त । 

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