सुनिता नगर महा पालिका में एक सरकारी सफाई कर्मचारी थी और अपने परिवार के पालन पोषण के लिए वो बड़ी इमानदारी से काम करती थी। उसके दो बेटे थे, कभी – कभी वो भी उसके साथ आ जाते थे।
एक बार बड़े बेटे राजू ने मां की मदद के लिए झाड़ू उठा लिया तो सुनिता ने झट से हांथ से छीन लिया और बोली कि,” चलो मेरे साथ” और अपने बड़े अफसर के कमरे के बाहर ले गई और दूर से उनका कमरा दिखाते हुए कहा कि,” वादा करो की तुम दोनों खूब पढ़ाई-लिखाई करोगे और एक दिन बड़े साहब बनोगे।”
राजू और संजू की आंखें चकाचौंध हो गई थी बड़े साहब का कमरा देख कर और दोनों ने मां से कहा कि,” मां मैं इससे भी बड़ा अफसर बनूंगा, तुमसे वादा करता हूं “और नन्हें से मन में मां की बातें घर कर गई थी। सुनिता दिन रात मेहनत करती और बच्चों की पढ़ाई में कभी कोई भी कमी नहीं आने देती थी दोनों बच्चों की मेहनत रंग लाई थी और दोनों उच्च पद पर कार्यरत थे।
इस बात वक्त गुजर गया था, पर सुनिता आज भी अपना काम ईमानदारी से करती थी। बच्चे बहुत मना करते की मां अब आराम करो, तुम्हें कोई जरूरत नहीं है काम करने की। किसी बात की कोई कमी नहीं है,पर सुनिता बोलती की आज इसी नौकरी की बदौलत तुम लोग इस काबिल हुए हो नौकरी नहीं पूजा है मेरे लिए।
आज नगर महा पालिका में उद्घाटन था और एक बड़े अधिकारी आने वाले थे।खूब सजाया गया था। तभी एक गाड़ी आईं और वो आफिसर आए। उनका माला पहनाकर स्वागत हुआ। बड़े साहब उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। कार्यक्रम के बाद उनको सभी को संबोधित करना था।जब वो मंच पर आए तो जोरदार स्वागत किया गया उनका।
अपने संबोधन के बीच में उन्होंने सुनिता को मंच पर बुलाया और अपने गले के हार को पहना कर उसके पैर छुए। सभी बड़े अधिकारी की सज्जनता और सौम्यता की तारीफ कर रहे थे कि उनके मन में छोटे – बड़े सभी के लिए सम्मान है। तभी उन्होंने कहा कि, ” किसी ने मुझे यहां बड़े साहब की कुर्सी दिखा कर कहा था एक दिन कि बेटा इससे भी ऊंचे पद पर काम करना वो कोई और नहीं मेरी मां सुनिता जी हैं,
जिन्होंने अपने काम को पूजा की तरह किया और अपने बच्चों को हमेशा प्रोत्साहित करतीं रहीं।” सब आश्चर्यचकित थे की इतने बड़े अधिकारी की मां होते हुए भी सुनिता कितनी विनम्र है और आज भी अपने काम को उसी लगन से कर रही है। कभी भी उसने हम सब को कुछ नहीं बताया। सभी के दिल में सुनिता के लिए आदर सम्मान बढ़ गया था और चारों तरफ सिर्फ तालियों की गूंज थी।
सुनिता का सीना चौड़ा हो गया था उसके बेटों ने उसका सम्मान बढ़ाया था और सभी के लिए एक उदाहरण बन गए थे की पैसा रुपया सब कुछ नहीं होता है अगर कुछ करने की चाहत है तो ऊपर वाला भी सौ दरवाजा खोलता है खुशियों की तरफ। सुनिता को भी सम्मानित किया गया था और सुनिता ने अब रिटायरमेंट ले लिया था अपने काम से। उसकी मेहनत सफल हुई थी।
सारे सपने पूरे हो गए थे जो उसने अपने बच्चों के लिए देखें थे। सही बात तो है की काम बड़ा छोटा नहीं होता है,बस सोच का फर्क होता है। जो इंसान अपने काम को पूजा समझ कर ईमानदारी से करता है
ईश्वर भी उसकी मदद करते हैं।एक सफाई कर्मचारी होते हुए सुनिता ने अपने बच्चों को बड़े ख्वाब दिखाकर उन्हें मेहनत और लगन से पढ़ाई करने की सीख दी साथ ही अच्छे संस्कार भी दिया। इंसान अपने कर्मों से बड़ा होता है क्या कर रहा है ये बात मायने नहीं रखती है। सुनिता ने साबित कर दिया था।
प्रतिमा श्रीवास्तव