छाया के बीए के इम्तिहान का आज आखिरी पर्चा था।उसने मेज पर से पेंसिलबाॅक्स उठाया और दुपट्टा डालती हुई बोली,” माँ..मैं जा रही हूँ…।”वो बाहर निकलने लगी तभी उसकी दादी ने आकर उसके माथे पर तिलक लगाकर उसे आशीर्वाद दिया और चाची चम्मच से दही-चीनी खिलाने लगीं तो वो चिढ़ गई,” क्या चाची..आप लोगों की नौटंकी फिर से शुरु हो गई..।” कहते हुए उसने अपनी चाची का हाथ रोकना चाहा तभी उसकी माँ आ गई और उसे समझाते हुए बोली,” खा ले बेटी..ये तेरे बड़ों का आशीर्वाद है..।” बेमन-से वो दही-चीनी खाकर काॅलेज़ चली गई।
अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी की पहली संतान थी छाया।उसने होश संभाला तो खुद को दादा-दादी, चाचा-चाची और छोटी बुआ से घिरे पाया।कोई उसकी मालिश करता तो कोई उसे खाना खिलाता।अपनी माँ की गोद में तो वो बहुत कम ही रह पाती थी।स्कूल जाने लगी तब उसकी चाची को बेटी हुई।फिर उसका भाई और फिर एक और चचेरा भाई..।स्कूल से घर आती तो बच्चों की फ़ौज़ उसे दीदी-दीदी कहकर घेर लेते थे।कुछ समय बाद बुआ की शादी हो गई।जब कभी वो मायके आतीं तो उनके बच्चे भी साथ आते और फिर घर में खूब हो-हल्ला मचता।घर में कोई भी चीज़ आती तो उसे लेने के लिये सारे भाई-बहन झगड़ पड़ते.. टेलीविज़न के रिमोट के लिये चचेरे भाई एक-दूसरे का हाथ काट लेते।
ये सब देखकर उसे बहुत चिढ़ होती थी।जब कभी वो अपनी सहेली के घर जाती..वहाँ पर दो-तीन सदस्य ही होते..घर में शांति देखकर उसे बहुत अच्छा लगता।वहाँ से वापस आती तो उसे अपना घर एक अज़ायबखाना लगता।एक दिन उसने अपनी माँ से पूछ लिया कि हमारे घर में इतने सारे लोग क्यों रहते हैं?
तब उसकी माँ उसे समझाते हुए बोली,” बिटिया..हम #संयुक्त परिवार में रहते हैं। जिंदगी के सभी सुख-दुख को हम आपस में बाँट लेते हैं।एक को भी तकलीफ़ होती है तो सभी की आँखों से आँसू निकल पड़ते हैं।तू जितनी मेरी लाडली है, उतनी ही अपनी दादी की..तेरी चाची तो..।” उसे माँ की बात अच्छी नहीं लगी, इसलिए उनकी पूरी बात सुने बिना ही वो उठकर चली गई थी।जैसे-जैसे वो बड़ी होती गई, अपने परिवार से उसका लगाव कम होता गया।इसीलिये आज उसे चाची का दही-चीनी खिलाना अच्छा नहीं लगा था।
अब घर में छाया के विवाह की बातें होने लगी।उसने तय कर लिया कि यदि इसी तरह के परिवार में उसकी शादी हुई तो वो कुछ ही महीनों के बाद अपने पति के साथ अलग हो जायेगी।एक दिन उसने सुना कि दादाजी उसके पिता से कह रहे थें कि दामाद जी(फूफाजी) ने अपनी छाया के लिये एक अच्छा रिश्ता बताया है।लड़के का नाम सिद्धार्थ है..एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर है।घर में विधवा माँ हैं..दो बड़े भाई-भाभियाँ हैं और एक विवाहित बहन है।अच्छी बात ये है कि वो सब हमारी तरह ही एक साथ रहते हैं।हमारी छाया तुरंत उनके साथ घुल-मिल जाएगी।समय निकालकर अपने भाई के साथ वहाँ चले जाना और घर-वर देख लेना।
कुछ दिनों के बाद छाया के पिता-चाचा सिद्धार्थ से मिल आये..दोनों परिवारों के बीच बातचीत हुई और फिर उसके और सिद्धार्थ की सहमति से एक शुभ-मुहूर्त में दोनों का विवाह हो गया।विदाई के समय उसकी दादी ने उससे कहा कि बिटिया.. सब के साथ मिलकर रहना..किसी से भूल-चूक हो जाये तो माफ़ कर देना।उसकी माँ ने भी उसे सीख दी कि सच्चा सुख परिवार के साथ रहने से ही मिलता है।सबसे गले मिलकर वो पति संग अपने घर से विदा हो गई।
ससुराल में उसका शानदार स्वागत हुआ।चाची- मामी कहकर बच्चे उसके इर्द-गिर्द ही घूमते रहते थे।पहली रसोई के दिन जब उसने खीर बनाई थी तो चीनी डालना ही भूल गई थी..फिर भी सभी ने स्वाद ले-लेकर खीर खाई तो वो चकित रह गई।तब सास ने उसे बताया कि तेरी बड़ी जेठानी ने एक चम्मच से चख लिया था, फिर चीनी मिलाकर सभी को सर्व किया था।वो अपनी जेठानी को थैंक्स बोलने लगी, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद दिया।उसने देखा कि सास पालक साफ़ कर रही होती हैं तो जेठानी की बेटी उनके साथ बैठ जाती है।छोटी जेठानी के बेटे को लाने के बड़ी चलीं जातीं हैं।उसके कपड़े बाथरूम में रह जाते हैं तो जेठानी की बेटी छत पर डाल आती है।परिवार में इतना सहयोग और अपनापन देखकर अलग रहने की बात उसके मन से कब निकल गई, उसे पता ही नहीं चला।
पहली होली पर छाया अपने मायके गई।सिद्धार्थ तो दो दिन बाद वापस चले गये पर वो रह गई।उसके चेहरे की चमक देखकर घर वाले समझ गये कि छाया अपने घर में बहुत खुश है।वो हँस-हँसकर सबको अपने ससुराल की बातें बता रही थी।कुछ दिनों के बाद वो अपनी सहेली कामिनी से मिलने उसके घर गई जहाँ उसकी सहेली स्नेहा भी आई हुई थी।उनके सामने भी उसने अपनी जेठानियों की खूब प्रशंसा की जिसे सुनकर स्नेहा तो खुश हुई लेकिन कामिनी नाक-भौं सिकोड़ते हुए बोली ,” तू बहुत बड़ी बेवकूफ़ है जो अपने ससुराल वालों की चाल को नहीं समझ पाई।”
“चाल..कैसी चाल?” छाया ने हैरानी-से पूछा तब कामिनी उसे ज्ञान देने लगी,” तेरी सास-जेठानियाँ तेरे साथ प्यार दिखाने का नाटक कर रहीं हैं।महीने-दो महीने बाद तेरे पति से किसी-किसी बहाने पैसा ऐंठने लगेंगी और तुझे घर का पूरा काम थमा कर वो मज़े-से शाॅपिंग करेंगी…आराम करेंगी।”
” नहीं-नहीं..वो ऐसी नहीं हैं..उनका दिल तो…।” छाया की बात पूरी होने से पहले ही कामिनी बोल पड़ी,” ये सब गेम है डियर.. तुझ पर अपना इंम्प्रेशन जमाने के लिये।देख लेना..ये तुझे साँस भी न लेने देंगी।आज हर कोई अपनी अलग दुनिया बसाना चाहता है..पता नहीं तू कैसे…।” कामिनी बोलती जा रही थी और अब छाया को अपना परिवार जेलखाना दिखाई दे रहा था। ज्ञान देने के बाद कामिनी बोली,” मेरा काम था समझाना..आगे तेरी मर्ज़ी।” तब तक तो छाया पर उसकी बात का असर हो चुका था।
कुछ दिनों के बाद सिद्धार्थ आये और छाया उनके साथ ससुराल चली गई।अब वो सबके कामों में कमियाँ निकालने लगी।जिन बच्चों का साथ उसे अच्छा लगता, अब उनके कुछ पूछने पर वो उन्हें दुत्कार देती।उसके बदले व्यवहार से सभी चिंतित थे।सिद्धार्थ उससे कुछ पूछते, उससे पहले ही उसने कह दिया,” मुझे यहाँ नहीं रहना..आप अलग एक घर देख लीजिये।” इस पर सिद्धार्थ ने उसे साफ़ कह दिया कि मैं अपने परिवार से अलग रहने की कल्पना भी नहीं कर सकता।इस बात पर दोनों में रोज बहस होने लगी।बात सास तक पहुँची, तो उन्होंने बड़े बेटे से सारी बात की।
एक दिन मौका देखकर बड़े बेटे ने सिद्धार्थ से पूछ लिया,” क्या बात है सिद्ध..तू बड़ा परेशान दिखाई दे रहा है।ऑफ़िस में कोई प्राॅब्लम है या..।” कहते हुए उन्होंने भाई की आँखों में देखा तो वो सकपका गया।जी..वो..” उसकी आवाज़ लड़खड़ाने लगी तब बड़े भाई बोले,” सिद्ध..हम सब तुझे और छोटी बहू(छाया) को खुश देखना चाहते हैं।तू कल ही जाकर छोटी बहू की पसंद का घर देख ले..फ़िक्र मत कर..हम लोग तो आते-जाते ही रहेंगे।माँ ने कुछ रुपये दिये हैं..।” कहते हुए उन्होंने सिद्धार्थ की हथेली पर रुपयों की एक गड्डी रखी तो उसकी आँख से आँसू निकल पड़े।पिता के गुज़र जाने के बाद उसके दोनों भाइयों ने ही उसे पढ़ा-लिखा कर इतना काबिल बनाया था और आज उन्हें ही…।तब माँ उसके कंधे पर हाथ रखकर बोली,”छोटी बहू को खुश रखना हम सब की ज़िम्मेदारी है।”
सिद्धार्थ ने छाया को बताया कि एक-दो दिन मैं घर देखकर फ़ाइनल कर लेता हूँ, तब हम शिफ़्ट हो जायेंगे।अब तो खुश..।
” बहुत खुश!..।” छाया सिद्धार्थ के गले लग गई।उसने अपनी पैकिंग शुरु कर दी।उसकी माँ ने फ़ोन करके उसे अलग घर में जाने से मना किया।उसके दादाजी ने भी उसे समझाने की कोशिश की लेकिन…।
एक सुबह ऑफ़िस जाने से पहले सिद्धार्थ बोला,” छाया…बेड पर बैग छूट गया है..ज़रा ला दो..जाते समय ब्रोकर को रुपये देता जाऊँगा ताकि घर का फ़ाइनल हो जाए।” सुनते ही छाया के शरीर में फ़ुर्ती आ गई।वो दौड़कर अपने कमरे में जाने लगी।फ़र्श पर पानी गिरा था..वो फ़िसल गई..सिर सामने की दीवार से टकरा गया और दाहिना पैर मुचक गया।वो दर्द-से कराह उठी।सिद्धार्थ अपना बैग फेंक कर उसकी तरफ़ लपका..रसोई से उसकी छोटी भाभी भागी आईं और दोनों छाया को सहारा देकर कमरे तक ले गये।
सिद्धार्थ के भतीजे ने तुरंत डाॅक्टर को फ़ोन कर दिया।डाॅक्टर बोले कि सिर पर हल्की चोट है..दो-तीन दिनों में ठीक हो जायेगी लेकिन मोच गहरी है..।दवा के साथ-साथ इन्हें पूरा आराम करना है।
छाया सोचने लगी कि अब सब कैसे होगा, तभी छोटी जेठानी उसके लिये चाय ले आईं।बड़ी आकर पूछने लगी कि आलू की सब्ज़ी रसेदार बना दूँ? सास आकर उसके बालों को सहलाने लगी।यह सब देखकर वो दंग रह गई।सिद्धार्थ लंचबाॅक्स लेकर टाइम पर ऑफ़िस चले जाते…उसकी जेठानी की एक बेटी उसके कपड़े बदल देती तो दूसरी उसके लिये नाश्ता ले आती।दो दिन बाद उसकी ननद और माँ आ गईं।माँ गईं तो चाचा-चाची आ गयें।इतनी भीड़ में भी उसकी जेठानियाँ मुस्कुराते हुए सबका ख्याल रख रहीं थीं।
उसे अपनी माँ और दादी की कही हुई बात याद आने लगी।अनजाने में उसने सबका दिल दुखाया है, यह सोचकर उसे आत्मग्लानि होने लगी।एक दिन उसने अपनी जेठानियों का हाथ पकड़कर कह दिया,” मैं कितनी गलत थी दीदी..#संयुक्त परिवार को बोझ और बंधन समझती थी लेकिन आज समझ आया कि जिंदगी का सच्चा सुख तो अपनों के साथ ही है।आज आपलोग न होते तो…।” उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
” बस-बस..हमें इमोशनल मत करो…तुम चलने लगोगी तब हम सब वसूल लेंगे…।” उसके आँसू पोंछते हुए दोनों जेठानियाँ मुस्कुराईं।
छाया का पैर ठीक हो गया तब सिद्धार्थ बोला,” छाया..तुम पैकिंग कर लो..आज जाकर मैं घर फ़ाइनल कर आता हूँ।तुम्हारे पैर की वजह से…।”
” मेरी आँखें खुल गई।”
” क्या मतलब?” अब अलग नहीं रहना..।”सिद्धार्थ ने आश्चर्य-से पूछा तो वो नज़रें झुकाती हुई बोली,” मुझे कहीं नहीं जाना है..यहीं सबके साथ रहना है।मैंने सबसे माफ़ी माँग ली है..प्लीज़, आप भी मुझे माफ़ कर दीजिए।”
” कर दिया..।” हँसते हुए उसने छाया को अपने गले लगा लिया।तभी सिद्धार्थ का भतीजा उससे मजाक करने लगा,” ओफ़्फ चाची..मैंने तो आपके कमरे को स्टडी रूम बनाने का प्लान कर लिया था।”
” वो तो अब भी बन जायेगा..आधे में मेरा बेड है..आधे में तुम अपनी स्टडी टेबल लगा लेना।” हँसते हुए छाया बोली तब वो बोला,” और चाचा…।” तभी उसकी ननद की पाँच वर्षीय बेटी ताली बजाते हुए बोली,” आहा..छोटे मामाजी हमारे साथ रहेंगे…।” फिर तो बड़े-छोटे सभी हा-हा करके हँसने लगे।
कुछ दिनों से घर का माहौल उदास हो गया था जो अब खुशियों में तब्दील हो गया था। दुख के बादल छँट चुके थे।सबको हँसते-मुस्कुराते देख बड़े भाईसाहब माँ से बोले,” अब तो खुश हो ना..।”
” हाँ बेटा..फ़ोन करके समधिन जी को भी खुशखबरी सुना देती हूँ।” कहते वो छाया की माँ को फ़ोन करने लगीं।
विभा गुप्ता
# संयुक्त परिवार स्वरचित, बैंगलुरु