पूरी रात बीत गई थी मिलन को हस्पताल के बरामदे में चहलकदमी करते हुए, नर्स ने कई बार आते जाते उसे बैठने को भी कहा, और आशवासन भी दिया कि घबराने की कोई बात नहीं, सब ठीक है, आप आराम से बैठिए। मगर मिलन को चैन कहां। उसका बस चलता तो सुरभि के पास बैठा रहता, लेकिन इसकी इज़ाजत नहीं थी। शाम से डिनर करना तो दूर, वो तो चाय तक पीने नहीं गया, यह सोचकर कि शायद उसकी जरूरत पड़ जाए। आखिर सुबह लगभग सात बजे उसे खुशखबरी मिली कि सुरभि ने प्यारे से बेटे को जन्म दिया है।और मां बेटा दोनों ठीक है।
यह सुनते ही मिलन की जान में जान आई, उसे कुछ देर के लिए अंदर जाने की आज्ञा भी मिल गई थी। डिलीवरी साईजेरियन से हुई थी तो सुरभि अभी बहुत कमजोर और लगभग बेहोशी की हालत में थी। जब वो अंदर गया तो सुरभि उसे देखकर हल्के से मुस्कराई और फिर अपनी आंखे बंद कर ली। तभी नर्स बच्चे को लेकर आ गई, पालने में लिटाने से पहले उसने उसे मिलन के हाथों में दे दिया। मिलन ने जिंदगी में इतना छोटा बच्चा पहली बार देखा। वो तो जैसे आंखें झपकाना ही भूल गया।
रूई के फाहे से भी कोमल, गोरा चिट्टा , स्वस्थ, गोलमटोल सा, जैसे उसका प्रतिरूप, उसे अपनी बचपन की फोटो याद हो आई। लेकिन उसकी नाक सुरभि जैसी लगी। दो मिंट बाद ही नर्स ने उससे बच्चा वापिस लेते हुए कहा कि अगर आपके साथ कोई बड़ा यानि कि बच्चे की दादी, नानी जो कोई भी है तो बुला लो, अगर कोई रस्म वगैरह करनी है तो , नहीं तो बच्चे को मां का दूध पिलाना है।
एक तो मिलन को किसी रस्म वगैरह का पता नहीं था, दूसरा वो बुलाता भी तो किसे। आज से तीन साल पहले उन दोनों की कोर्ट मैरिज हुई थी। बहुत चाहने पर भी दोनों के घर वाले इस शादी में शामिल नहीं हुए। मिलन के मां बाप मान भी जाते परतुं उसकी एक पांच साल बड़ी बहन सरकारी नौकरी में थी, जिसकी शादी नहीं हो पा रही थी, पढ़ी लिखी थी बस बचपन में एक दुर्घटना में उसका एक हाथ कोहनी से कुछ आगे तक जल गया था।काम सब कर लेती , पूरी बाजू की कमीज पहन कर कुछ नजर नहीं आता था,
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लेकिन सच्चाई जानकर कोई राजी न हुआ।मिलन के मां बाप पहले बेटी पल्लवी की शादी करना चाहते थे, हालाकिं भाई की शादी से पल्लवी को कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन मां बाप को समाज का डर था, और मिलन के मां बाप गैर जाति में शादी के विरूद्ध थे, लेकिन आखिर उन दोनों के प्यार की जीत हुई और उन्होंने किसी की परवाह न करते हुए अपना अलग आशियाना बना लिया।दोनों इकटठे शादी के बाद दोनों घरों मे आशीर्वाद लेने गए, लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला।
सब सुख सुविधाओं के होते हुए भी दोनों के मनों में सुनापन था, लेकिन कोई किसी से कुछ न कहता। नन्हें मंयक के जन्म की खुशी में दो महीने बाद मिलन और सुरभि ने अपने खास दोस्तों के लिए एक पार्टी रखी। पार्टी हंसी खुशी चल रही थी, सब मौज मस्ती कर रहे थे। सुरभि अभी कमजोर थी।
वह एक तरफ आराम कुर्सी पर बैठी थी, पास ही फूलों से सजे पालने में मंयक लेटा हुआ था। उसकी हैरानी की सीमा न रही जब उसके माता पिता बहन और मिलन के घर वाले एकदम आ पहुचें। किसी के मुंह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा था। सुरभि ने उठ कर सास ससुर के पैर छूने चाहे तो सास ने उसे गले लगाते हुए अंक में भींच लिया।
“ अभी आराम से बैठो बहूरानी, कमजोरी है, और उसके हाथों में कंगन पहना दिए। और पल्लवी ने प्यारे से भतीजे को पालने से उठा कर गोद में लेते हुए कहा” वाह , भाभी, यह तो बिल्कुल नन्हा मिलन लग रहा है”। सुरभि के मां बाप भी गले मिले, सबकी आंखों में आसूं थे लेकिन खुशी के। दूर एक नौजवान अकेला खड़ा ये सब देख रहा था। तभी मिलन की मां ने उसे पास बुलाया और कहा” ये है सौरभ, पल्लवी का होने वाला पति और तुम्हारा ननदोई”। सौरभ ने दोनों हाथ जोड़कर कहा” नमस्ते भाभी”। सुरभि हाथ जोड़ते हुए सोच रही थी कि” पत्नी तो वो कब की बन गई लेकिन बहू और भाभी आज बनी है”।
नन्हें मंयक के आने से सब के गिले शिकवे दूर हो चुके थे और शायद गल्ती का अहसास भी।बाद में मिलन को पता चला कि उसके दोस्त सुवीर ने चुपचाप मिलन के माता पिता को मंयक के जन्म की खबर दी थी और उन्होंने सुरभि के घर वालों को। तड़फ तो सभी रहे थे लेकिन मौका अब मिला।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़।
#पत्नी तो कब की बन गई थी पर और बहू और भाभी तो आज बनी है-