भला उसकी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे – सारिका चौरसिया

कामिनी जी बड़ी बेबाक महिला थी उन्हें न तो किसी से डर लगता और न ही वे किसी का अदब करना ही जानती थीं। उन्हें हर हमेशा अपनी ही बात सही लगती। और अक्सर बिना किसी भी बात की तह तक पहुँचे वे प्रथम दृष्टया धारणा बना लिया करती थीं। यहां तक कि ज्यादातर उन्हें यही लगता कि सब गलत हैं और एक मात्र वे ही सही हैं ,,या फिर उनकी राय,उनका अवलोकन ही मायने रखता है।अपनी चीज को सर्वश्रेष्ठ बताना और ठीक उसी प्रकार के दूसरे के समान में कमी बात देना भले ही एक सूत का फ़र्क क्यों न दिखा दें मगर अंतर जताती जरूर थी और अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर के ही मानती थीं।अपनी इस आदत की वजह से वे अक्सर ही किसी न किसी से उलझ पड़ती थीं। कभी रिश्तेदारों से तो कभी अपने ही बच्चों से और तो और पड़ोसियों तथा दुकानदारों तक से उलझती रहती रहीं। उनकी इस आदत की वजह से पहले तो काफी क्लेश हो जाया करता रहा। लेकिन धीरे-धीरे सबने समझौते करने शुरू कर दिए और उनको ही गुरु मान सब किनारे हो जाया करने लगें।धीरे-धीरे उम्र बढ़ रही थी कामनी जी की कमनीय कायां भी अब डब्बाकार रूप ले रही थी और कई बीमारियां मसलन घुटने का दर्द, सांस उभरना, कम दिखना आदि-आदि की शुरुआत हो रही थी। घर में बहू भी आगयी थी जो इनकी तुलना करने की आदत से वाकिफ भी हो चुकी थी।वह बिचारी बचा ही करती की कौन इनको सामान दिखाए और नुक्स निकलवाये। क्योंकि बकौल कामिनी जी, बहू ने कौन से पचास वसंत देखें हैं जो उसे दुनियादारी,नातेदारी, शॉपिंग आदि की समझ होगी।




उनके पड़ोसी के घर बेटे का ब्याह हुआ था।सो नई बहू के आगमन की खुशी में मुंह दिखाई की रस्म और संगीत संध्या रखी गयी।कामिनी जी को भी न्योता मिला था सो उन्होंने अपनी बहू को पहले से ही रखी हुई एक साड़ी निकाल कर उपहार हेतु गिफ्ट पैक करने को दे दी थी। लेकिन बहू को वह साड़ी थोड़ी कम जमी। पर सास को बता कर चार बात सुनने की जगह उसने अपने ही पास रखी एक नई साड़ी जो उसे बुआसास ने चुपके से यह कह कर दी थी कि बहू यह साड़ी अपनी सास को मत दिखाना न ही उनके सामने पहनना। और न ही बताना कि यह साड़ी मैंने दी है नहीं तो उन्हें बुरा लगेगा कि बुआ ने इतनी महंगी साड़ी बहू को उपहार में दे दी। बुआ भी कम न थी आगे बोलीं की अब महंगी है तो क्या हुआ बहू यह मैं ख़ास तुम्हारे लिये लायी हूँ, भाभी देखेंगी तो सौ सवाल भी पूछेंगी और ले भी लेंगी तुमसे।इस लिये अपनी सास के सामने मत पहनना। तो बहू ने सोचा सास को न पता चले?इसे ऐसे कैसे और कहां पहनूँगी। तो कौन एक साड़ी के झमेले में पड़े यह सोच कर कभी निकाली ही नहीं और आज वही साड़ी निकाल श्रृंगार सामग्री और लिफाफे आदि साथ लगा गिफ्ट पैक कर दिए जिसकी जानकारी सास को देना जरूरी नहीं समझा….या फिर यूं कहें कि जानबूझ कर गोल कर गयी।

ऐन इस दिन कामिनी जी को किसी जरूरी कारणवश शहर बाहर जाना पड़ गया।अब कामिनी जी जो कि घुटने के दर्द से परेशान ब्याह बारात में भी नहीं जा पायी थी और अब संगीत के भी नहीं जा पाएंगी यह सोच पड़ोसी के होने वाले समारोह की तुलना अपने घर के हालिया कार्यकम से करती हुई मन ही मन अफसोस करती अपनी बहू को समारोह में जाने को कह ढेर सारे निर्देशों के साथ शहर बाहर चली गईं।




कामिनी जी की व्यवहारिक बहू पड़ोस में गयी भी और नई बहू से मिल कर उससे मित्रता भी कर ली तथा उपहार भी दे आयी। अगले ही दिन पड़ोसी की बहू पग फ़ेरे को भी चली गयी। करीब सप्ताह दिन बाद कामिनी जी आयी तो उनको न तो पड़ोस की बहू को देखने का अवसर मिला, ना ही बहू के घर से आये सामान आदि पर अपना मन्तव्य देने का ही कोई मौका हाथ लगा। बड़ी बेचैनी से दिन कटे और पता चला कि पड़ोसी की बहू आ गयी ससुराल। अब कामिनी जी शाम को बढिया बनारसी साड़ी निकाल सज-संवर कर चली पड़ोसी के घर। पड़ोसन बड़े प्रेम से लिवा ले गयी और नई बहू को आवाज लगाया। नई नवेली बहू चाय नाश्ते के साथ हाजिर हुई। कामनी जी किसी पारखी जौहरी की तरह सिर से पैर तक नवेली के सूक्ष्म अवलोकन में जुट गईं। हर इक बात पर अपनी बहू से तुलना शुरू हुई, हालांकि घर में अपनी बहू की तुलना बेटी से कर सौ-सौ बुराइयां भले ही निकालती रहीं हो मगर अभी तो इस नवेली के आगे अपनी बहू साक्षात लक्ष्मी नज़र आ रही थी।पड़ोसन ना ही स्वभाव से अनिभिज्ञ थी और ना ही उनकी बहू के प्रति उनके स्वयं के दृष्टिकोण से। इसलिये मंद-मंद मुस्कुराती रही। इधर कामिनी जी अब रह-रह कर नई बहू की पहनी साड़ी को घूरे जा रही थी, उनके इस तरह देखने से नई बहू सकुचा रही थी।अंततः कामनी जी जो उस साड़ी को बहुत देर से याद करने की कोशिश कर ही थी कि उन्हें याद आ ही गया कि ऐसी ही एक साड़ी उनके पास भी थी जो उन्होंने जल्दबाजी में खरीद ली थी और बाद में उन्हें खूब जँची नहीं तो अपने रिश्ते की ननद को व्यवहार में दे दी थी यह कह कर की ख़ास तुम्हारे लिये खरीद कर लायी हूँ अब मेरी पसन्द तो तुम जानती ही हो सबसे अलग है कोई टक्कर ही नहीं।




अभी उनके मुंह से निकल ही गया कि मेरे पास भी ऐसी ही साड़ी है मगर वह तो बड़ी महंगी है आजकल ये कम्पनी वाले भी न! सेम कलर प्रिंट में हर रेंज् की साड़ी निकाल मार्किट में उतार देते हैं!! अब हर कोई थोड़ी महंगी खरीद सकता है?तो भई डुप्लीकेट से ही शौक पूरे कर लेते हैं लोग।पड़ोसन ने इशारे से नई बहू को अंदर जाने को कहा और मुस्कुराते हुए बोली यह साड़ी आपके ही घर से उपहार में आयी थी, बहू को पसन्द आयी तो मैंने उसको पहनने को दे दी। और आज आप आयी तो मैंने खास इसलिये बहू को पहनने को बोला कि शायद आपको यह देख खुशी होती कि हमनें आपके उपहार को इतना सम्मान दिया। कामिनी जी का हाथ धीरे से दबा कर आंखों में आंखे डाल बोलीं…. आपकी पसन्द वाकई बहुत अच्छी है। अब कामिनी जी की तो बोलती बंद। साड़ी की रनिंग कमेंट्री का सारा माजरा समझ आ रहा था मतलब की ननद ने अन्य चीजों के साथ यही साड़ी मेरी बहू को व्यवहार में दे दी छिपा कर। और बहू ने मुझसे छिपा कर यहां दे दी उपहार में।

गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए किसी तरह क्षद्म मुस्कान बिखेरती… अरे!हाँ हाँ हाँ!! मुझे पता है मैं तो बस आपका मन टटोल रही थी कि मेरा दिया उपहार आपको पसन्द आया या नहीं। बड़ी महंगी थी ये साड़ी मैंने खास आपकी बहू के लिये ही खरीदी थी, भई आपकी बहू मेरी भी तो बहू है।अब घर लौटते वक्त कामिनी जी के दिमाग में बस एक ही बात घूम रही तो मेरी बहू से तो मैं निपट ही लूँगी…. मगर ननद रानी को देखो!….सीधा कह दी होती की साड़ी नहीं पसन्द….बताओ!मेरी ही बहू को ही पकड़ा दी।।

सारिका चौरसिया

मिर्जापुर उत्तरप्रदेश।।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!