रिश्तों का बंधन – डाॅ संजु झा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : एक माँ और बच्चों के रिश्तों का बंधन अटूट  होता है। बच्चे पास रहें या दूर ,उनका आपसी  बंधन कभी भी नहीं टूट सकता है।एक माँ अपने विदेश में बसे बच्चों की याद में कभी-कभी विकल हो उठती है।वैसे तो उसने अपने बच्चों के विदेश जाने के बाद खुद को धैर्यपूर्वक अच्छे से सँभाला।

ऊपर से हमेशा सामान्य दिखने की कोशिश करती,परन्तु कभी-कभी बेबस होकर मातृत्व भावनाएँ उसके अन्दर हिलोरें लेने लगतीं.संतान का मोह भी कैसा है,जिसके सामने संसार के पत्थर दिल व्यक्ति भी बेबस हो उठता है?अपने बच्चों की याद  में एक माँ विकल होकर पत्र द्वारा अपने दिल की भावनाओं का इजहार करती है-

प्रिय मेरे बच्चों

तुम दोनों भाई-बहन से  मेरी साँसों का बंधन जुड़ा हुआ है।तुम दोनों की पढ़ाई और तुम्हारे कैरियर की आपाधापी में मैं अपने दिल की बातें तुमसे नहीं कर पाई। अब दिल का कोना तुम दोनों के बिना खाली-खाली सा  महसूस  होता है,इस कारण अपनी भावनाएँ तुम दोनों के समक्ष व्यक्त कर रही हूँ।

तुम दोनों भाई-बहन के मेरी जिन्दगी में आने से मेरी जिन्दगी की बगिया सुवासित हो उठी.मेरे शांत जीवन में  मानो बहार आ गई।मातृत्व का बंधन इतना सुखद हो सकता है,इसका एहसास  मुझे खुद माँ बनने पर ही हुआ!जिन्दगी के प्रति एक अदृश्य मोह का बंधन जुड़ गया।मैंने अपनी जिन्दगी तुम दोनों भाई-बहन की परवरिश और शिक्षा में लगा दी।अपना कैरियर को छोड़ने का कुछ दुख तो अवश्य मुझे हुआ, परन्तु तुम दोनों की काबिलियत ने मेरी झोली को खुशियों से भर दिया।

बेेटा!जब तुम्हारे विदेश जाने की बात  हुई, उस समय बहुत से लोगों ने  हमें समझाते हुए कहा -”  एक ही बेटा है,उसे बाहर मत भेजो!बुढ़ापे में कौन सहारा बनेगा?”

सच कहूँ तो मैं भी तुम्हें विदेश भेजना नहीं चाहती थी,परन्तु मैं अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु तुम्हारे सपनों को तोड़ना नहीं चाहती थी।तुम्हें अपने मोह के बंधन में जकड़कर नहीं रखना चाहती थी।

तुम अपने सपनों के संसार विदेश उड़ चले।तुम्हारे जाने के बाद  बस एक तसल्ली थी कि कम-से-कम बेटी तो अपने देश में है,परन्तु भविष्य के गर्भ  में क्या छिपा है कोई नहीं जानता है?कुछ दिनों बाद  बेटी तुमने भी परदेश की राह पकड़ ली।तुम दोनों भाई-बहन अपने सुनहले सपनों को पूरा करने के लिए उन्मुक्त पक्षी की भाँति खुले आसमान में विचरण करना चाहते थे,तो हम हम स्वार्थ के बंधन में बँधकर तुम्हारे पंख कैसे कुतर सकते थे?


कभी-कभी जब हमारी तबीयत खराब हो जाती है,तो तुम दोनों की बहुत याद आती है।ये कैसा प्यारा बंधन है,जिसमें तुम्हारी खुशियाँ भी चाहती हूँ और अपनी परवाह भी!शायद  इसे ही मातृत्व प्रेम कहते हैं!कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि एक छोटा-सा मासूम  भोला-भाला,सदैव माँ के  आँचल  में बँधकर रहनेवाला बच्चा आज सात समंदर पार कैसे  अपनी पहचान बना रहा है?

कैैसे एक छोटे शहर का बच्चा अमेरिका जैसे महाशक्तिशाली देश में अपनी प्रतिभा की धाक जमा रहा है?बेटी!तुम भी  किसी भी क्षेत्र  में बेटा से रत्ती भर कम नहीं हो।एक छोटी -सी गुड़िया कैसे  आज प्रतिष्ठित कंपनी में ऊँचे पद पर काबिज हो गई है?सबकुछ  मुझे सपने जैसा लगता है।तुम दोनों की उपलब्धि हमारे लिए गौरव की बात  है।

तुम दोनों की बातों से मुझे एहसास  हो गया है कि तुम्हें विदेश की सपनीली दुनियाँ रास आ गई  है।मैं भी तुम्हें अपने मातृत्व के बंधन में जकड़ना नहीं चाहूँगी।तुम्हें तुम्हारी  दुनियाँ में सदैव खुश रहने की दुआ करती हूँ।

अपने मोह के बंधन से तुम्हें बाँधकर नहीं रखना चाहूँगी।अपने मातृत्व-भावना से बेबस होकर  ये भी नहीं कहना चाहूँगी कि तुम दोनों भाई-बहन सबकुछ छोड़कर अपने देश वापस लौट आओ।परन्तु दिल की  कुछ बातें अवश्य कहना चाहूँगी।माता-पिता बड़े अरमानों के साथ अपने बच्चों के सपने पूरे करतें हैं।

उन सपनों को पूरे करने में एक माँ की बेचैन रातें,एक पिता का मजबूत कंधा,परिवार का समर्पण, समाज का सहयोग  भी शामिल होता है।तुम्हारे ख्वाबों को पूरा करने में इनलोगों ने सहारे के रुप में कभी-न-कभी सीढ़ी का काम जरुर किया होगा।इसलिए इनलोगों के प्यार के बंधन की लाज रखना तुम्हारा फर्ज बनता है।

अपने लिए  तो जानवर भी जी लेते हैं,पर एक जिम्मेदार  नागरिक के नाते तुमदोनों का कर्तव्य  हो जाता है कि जब हम अशक्त हो जाएँ,तो हमारे प्यार के बंधन की लाज रखो।जब हमने तुमदोनों की परवरिश और शिक्षा में कोई भेद-भाव नहीं किया,तो तुम दोनों भी अपने कर्तव्य को बेटा-बेटी की तुला पर कभी मत तौलना।जैसे तुम दोनों हमारी आँखों के तारे हो,वैसे ही तुमदोनों की जिम्मेदारी भी बराबर है।

अंत में एक बात और कहना चाहूँगी कि अगर कभी परिवार, समाज  या दीन-दुखियों को तुम्हारी मदद की जरूरत  हो ,तो अवश्य करना।तुम्हारी छोटी-सी मदद किसी की जिन्दगी की डोर को टूटने से बचा सकती है।सबसे महत्वपूर्ण बात देशहित में कभी आगे आना पड़े,तो निसंकोच अपने कदम आगे जरुर बढ़ाना।जैसा कि तुम्हें पता ही है कि मातृभूमि के ऋण से कोई  भी उऋण नहीं हो सकता है।सच है-‘जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी।’

आशा है  विदेश की चकाचौंध भरी दुनियाँ में हमारा स्नेहासिक्त बंधन अवश्य तुम्हें अपार खुशियाँ और नई ऊर्जा प्रदान करता रहेगा,क्योंकि मुझे विश्वास है कि माता-पिता और  अपने वतन का बंधन इतना खूबसूरत होता है कि उसे कोई  कभी भूला नहीं सकता है।बस——एक भारतीय माँ।

पत्र समाप्त  करते-करते एक भारतीय  माँ का वर्षों का बँधा धीरज का बाँध   नयनों

 के रास्ते बह निकलता है और वह वात्सल्य रस की अविरल बहती अजस्र धारा में डूबने-इतराने लगती है।

समाप्त। 

#बंधन

लेखिका-डाॅ संजु झा।

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