रिश्ते की डोर-श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

सरला जी की बहू निम्मी की आज पहली रसोई थी। सरला जी अपनी बहू की मदद करना चाह रही थी लेकिन रिश्ते की चाचियाँ, मामियाँ, ननदें उन्हें किसी ना किसी बहाने से रोक ले रही थी। उधर किचन में निम्मी की हालत खराब हो रही थी। उसने तो आज तक चाय-कॉफी के अलावा कुछ बनाया ही नहीं था। ऊपर से फ़ोन की बैटरी ख़त्म हो जाने से फ़ोन भी ऑफ हो गया था नहीं तो यूट्यूब की हेल्प से कुछ तो बना ही लेती।अब उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या कैसे करे?

तभी उसके कानों में एक प्यारी सी आवाज आयी “भाभी, मैं आपकी कुछ मदद करूँ?

जब निम्मी ने आवाज की दिशा में देखा तो 18-19 साल की एक लड़की मुस्कुराते हुए खड़ी थी।

“जी,आप?”

“आप नहीं, तुम। मैं मिस रोली। सरला आंटी की फ्रेंड की बेटी। मुझे आंटी ने आपकी हेल्प के लिए भेजा है।”

उसके इंट्रोडक्शन देने के अंदाज पर इतनी टेंशन में भी निम्मी की हँसी छूट पड़ी। वह हँसते हुए बोली “मिस रोली,जब मुझे ही कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या कैसे करूँ तो तुम मेरी क्या मदद करोगी?”

“फिकर नॉट भाभी। नाउ रोली इज़ हियर। आप बस बताइए क्या बनाना है? मैं फटाफट बनाती जाती हूँ। देखना कुछ ही देर में सारी रसोई बन जाएगी।”

कुछ ही देर में उसने सारा खाना बना दिया। निम्मी आश्चर्यचकित रह गई।

“भाभी,अब मेरा काम खत्म। आप सबको परोसो। मैं चली”और बिना निम्मी के जवाब का इंतजार किए गायब हो गई।

सबने रसोई को बहुत सराहा।सबके जाने के बाद निम्मी ने अपनी सासू माँ से पूछा “माँ,रोली कहाँ गई? उसने तो मुझे थैंक यू बोलने का मौका भी नहीं दिया।”

“अरे!वह एकजगह थोड़ी टिकती है वह तो तुरंत ही अपने घर चली गई।”

कुछ ही दिनों में निम्मी और रोली दोनों बेस्ट फ्रेंड बन गई।जब भी निम्मी को कोई मदद की जरूरत होती,रोली वहाँ मौजूद रहती। रोली थी ही इतनी टैलेंटेड, हर काम में एक्सपर्ट।दोनों साथ में घूमती,मस्ती करती,शॉपिंग करती। जबतक दोनों दिन में एकबार मिल नहीं लेती उन्हें चैन ही नहीं पड़ता था।समय पंख लगाकर उड़ता जा रहा था और अब घर में रोली के रिश्ते की बात होने लगी थी।ऐसे में एकदिन निम्मी अपने मम्मी-पापा के साथ अपने छोटे भाई मयंक के लिए रोली का रिश्ता लेकर पहुँची।उसके मम्मी-पापा और भाई निम्मी के घर में कई बार रोली से मिल चुके थे। वे उससे बहुत प्रभावित थे और उसे अपनी बहू बनाना चाहते थे।जाना-पहचाना रिश्ता पाकर रोली के घरवाले भी बहुत खुश थे। फलस्वरूप संबंध पक्का हो गया।निम्मी और रोली दोनों इससे बहुत खुश थी। वे दोनों मिलकर शादी की नई-नई प्लानिंग बनाती रहती। सबकुछ बहुत बढ़िया चल रहा था।

लेकिन तभी एक अनहोनी हो गई। एकदिन कॉलेज से घर लौट रही रोली के ऊपर किसी मनचले ने एसिड फेंक दिया जिससे रोली के चेहरे का बायाँ हिस्सा बुरी तरह जल गया।उसे आनन-फानन में हॉस्पिटल एडमिट कराया गया| जहाँ वह जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी। बदहवास निम्मी ने तुरंत अपने भाई मयंक को फोन किया,रोली का हाल बताया और उसे तुरंत हॉस्पिटल पहुंचने के लिए कहा “दीदी, मुझे ऑफिस में बहुत जरूरी काम है| मैं नहीं आ पाऊँगा।” मयंक ने रुखा सा जवाब दिया।

“अरे! तेरी होने वाली बीवी यहाँ हॉस्पिटल में इतनी नाजुक हालत में है। इसवक्त उसका साथ देने से ज्यादा जरूरी काम क्या हो सकता है? तुरंत हॉस्पिटल पहुँच।” निम्मी ने गुस्साते हुए कहा।

“कौन सी होने वाली बीवी? मैं अभी यह सगाई तोड़ता हूँ। ऐसी लड़की से कौन शादी करेगा? आज बल्कि अभी से मेरा उससे कोई सरोकार नहीं।”

“तू यह सही नहीं कर रहा मयंक।यदि यही हादसा शादी के बाद होता तो तू क्या करता?”

“दीदी इन आदर्शवादी बातों में कुछ नहीं रखा। मेरी तरफ से यह रिश्ता खत्म।” यह कहकर उसने फोन पटक दिया।

मयंक के इस व्यवहार से आहत निम्मी  ने जब अपने मम्मी-पापा को फोन किया तो उन्होंने भी मयंक का ही साथ दिया।अपने घरवालों के स्वार्थी और खुदगर्ज रवैए से निराश और शर्मिंदा निम्मी ने उसी वक्त यह फैसला किया कि चाहे कोई दे ना दे वो इस मुश्किल की घड़ी में वह रोली का साथ जरूर देगी।

वह रोज रोली से मिलने हॉस्पिटल जाती। धीरे-धीरे रोली के जख्म भरने लगे और महीने भर बाद उसकी हॉस्पिटल से छुट्टी हो गई लेकिन पहले एसिड अटैक, फिर मयंक की ना से अंदर तक टूट चुकी रोली सारा दिन अपने कमरे में बैठी आईने में अपना अधजला चेहरा देख रोती रहती थी। निम्मी से उसकी ऐसी हालत देखी नहीं जाती थी।वह रोली के मम्मी-पापा के साथ मिलकर उसका हौसला बढ़ाने की हर संभव कोशिश कर रही थी लेकिन, इन सबका रोली पर कोई खास असर नहीं हो रहा था।मानो वह अपने दुख से बाहर ही नहीं आना चाह रही थी।

आखिरकार वे उसे काउंसलर के पास ले गए। काउंसलिंग से रोली में पॉजिटिव बदलाव आने लगा। उसका खोया हुआ कॉन्फिडेंस वापस लौटने लगा। उसने डिस्टेंस लर्निंग से अपनी अधूरी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी। एक एनजीओ से जुड़कर अपनी जैसी महिलाओं की मदद भी करने लगी।सर्जरी से उसका चेहरा भी काफी हद तक ठीक हो गया था। कुछ समय बाद उसने लॉ की प्रैक्टिस शुरू कर दी और शहर के नामचीन वकीलों में उसकी गिनती होने लगी। इसप्रकार धीरे-धीरे उसकी जिंदगी पटरी पर लौटने लगी थी।

लेकिन ‘कहते हैं ना शरीर के जख्म तो भर जाते हैं,मन के नहीं।’ ऐसा ही हाल रोली का भी था। मयंक की ना से उसका प्यार और शादी जैसे शब्दों से भरोसा ही उठ गया था। सबके लाख समझाने के बावजूद भी वह शादी के लिए तैयार नहीं थी। उसने अपने आपको काम और असहाय महिलाओं की सहायता में ही पूरी तरह झोंक दिया था।

“कहीं ना कहीं रोली के इस फैसले के लिए निम्मी खुद को दोषी मानती थी। ना वह अपने भाई मयंक का संबंध रोली से कराती और ना उसके भाई के धोखे से खुशी का प्यार और शादी से भरोसा उठता।”

एक दिन वह बैठे-बैठे यही सब सोच रही थी कि उसकी सासू मांँ उसके पास आई “क्या सोच रही हो निम्मी बेटा? कुछ नहीं मम्मी जी। सोच रही हूंँ कि ऐसा क्या करूंँ कि रोली शादी के लिए तैयार हो जाएँ। एक बात बोलूंँ निम्मी बेटा, बुरा तो नहीं मानोगी।”

“कैसी बात कर रही हैँ आप। भला मैं आपकी बातों का बुरा कैसे मान सकती हूंँ।”

“तो सुन बेटा, रोली अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुकी है। पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी है। लेकिन, तुम अभी भी उसी जगह खड़ी हो जहांँ आज से तीन साल पहले खड़ी थी। आज से बल्कि अभी से रोली के साथ जो हुआ उसके लिए अपने को दोष देना बंद करो। तुम्हारी मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है। बाईपास सर्जरी हुई है उनकी तो तुम्हें क्या यह नहीं लगता कि तुम्हें वहांँ जाकर उनसे मिलना चाहिए और अपनी बेटी होने का फर्ज निभाना चाहिए। “

“यदि आप यही चाहती है तो मैं जाऊंँगी।”

“आ गई निम्मी। कोई अपने माता-पिता और भाई-बहन से इतना भी नाराज होता है क्या? तरस गई मैं तो तुझे देखने के लिए। पूरे तीन साल बाद आई है।”

“कैसी हो मांँ?” फीकी सी मुस्कान भरकर निम्मी ने पूछा।

“तू आ गई है ना। अब एकदम ठीक हूंँ।”

“मयंक कहांँ है? क्या अभी तक उसे कोई हूर की परी नहीं मिली ब्याह रचाने के लिए?”

” मयंक ब्याह नहीं करना चाहता है।”

” लेकिन क्यों?”

“यह तुझे मयंक ही बताएंँ तो बेहतर रहेगा।”

जब वह उसके कमरे में पहुंँची तो उसने देखा कि वह रोली की तस्वीर को अपने सीने से लगाए रोए जा रहा था यह देखकर वह भौंचक्की रह गई।

“जब तू रोली को इतना चाहता है तो फिर शादी के लिए मना क्यों किया? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि आज वो इतनी सफल लॉयर बन गई है तो उस पर बड़ा प्यार आ रहा है। बोल, बोल क्यों नहीं रहा। है ना यही बात।”

“बस कर निम्मी बहुत बोल चुकी तू।” आज मैं तुझे सच्चाई बता कर ही रहूंँगी।” उसकी बड़ी बहन माया ने कहा।

“नहीं दीदी,आप कुछ भी नहीं बोलोगी।”

“नहीं मयंक, अब समय आ गया है कि निम्मी को सारी सच्चाई का पता चले।”

“ले अपनी आंँखों से देख ले। यह है वह सच्चाई, जिसके कारण मयंक ने रोली से शादी के लिए इंकार किया था।” निम्मी के सामने एक रिपोर्ट पटकते हुए माया बोली।

“इस रिपोर्ट के अनुसार हमारा मयंक पिता नहीं बन सकता। इसी कारण इसने रोली से शादी करने से इनकार किया। यह अच्छी तरह जानता था की सच्चाई पता चलने पर रोली इसका साथ नहीं छोड़ेगी। इसीलिए उसने रोली के साथ इतना बुरा बर्ताव किया। ध्यान से देख ले जिस दिन रोली पर एसिड फेंका गया था उससे एक दिन पहले की ही रिपोर्ट है यह।” माया ने रोते हुए कहा।

“हे भगवान यह क्या अनर्थ हो गया मुझसे। मैं मयंक को कितना गलत समझ बैठी।” तभी कुछ सोचते हुए रिपोर्ट उठाकर निम्मी वहांँ से चल दी।

“निम्मी, रुक तो। रिपोर्ट लेकर कहांँ जा रही है?”

“वहीं, जहाॅं जाना चाहिए। शायद मेरी इस पहल से ‘टूटते रिश्ते जुड़ने लगे।’ रिश्तों की डोर फिर से जुड़ जाए।” कहते हुए निम्मी गाड़ी में बैठकर निकल गई।

वह रिपोर्ट लेकर सीधे रोली के पास पहुंँची और बोली “रोली तुम्हारा प्यार स्वार्थी और खुदगर्ज नहीं है। उसने जो भी किया तुम्हारे लिए किया और इसका सबूत मैं आज लेकर आई हूंँ।” यह कहकर उसने रिपोर्ट रोली के सामने रख दी।

“इसे पढ़ने के बाद तुम्हारा जो भी फैसला होगा वह हम सबको मंजूर होगा।” बोलकर वह वहांँ से निकल गई।

जैसे ही रोली ने वह रिपोर्ट पढ़ी। उसके होश उड़ गए और वह मयंक के पास दौड़ पड़ी।

“मयंक ये तुमने क्यों किया? क्यों अकेले सारा दर्द सहते रहे? सारा जमाना तुम्हें गलत कहता रहा और तुमने उफ्फ भी नहीं की।लेकिन, बस अब और नहीं। अब आगे का जीवन हम दोनों खुशी-खुशी एक साथ बिताएंँगे।”

यह सुनते ही निम्मी दौड़ कर जाकर उनके गले लग गई और हॅंसते हुए बोल पड़ी “मम्मा-पापा पंडित जी को बुलाइए।शादी का मुहूर्त निकलवाना है।”

धन्यवाद

साप्ताहिक विषय प्रतियोगिता-#टूटते रिश्ते जुड़ने लगे

लेखिका -श्वेता अग्रवाल

धनबाद झारखंड

शीर्षक-रिश्ते की डोर

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