रिश्ता दोस्ती का – गीता वाधवानी

सार्थक के लिए आज की सुबह बहुत अलग थी। उसकी आंखों में आंसू थे और दिल में बेबसी कि वह अपनी मासी को बचाने के लिए सब कुछ करते हुए भी ना कम है। ईश्वर ने जो लिखा है भाग्य में, होगा तो वही। उसे कौन बदल सकता है। 

       सार्थक और उसकी पत्नी सुहानी दोनों मासी के सिरहाने रात से बैठे थे कि क्या पता कब मासी आंखें खोल कर कुछ मांग ले। क्या पता उन्हें भूख या प्यास लग जाए। 

      अभी मासी ने आंखें खोल कर दोनों को देखा और कुछ बोलना चाहा पर बोल न सकी। हाथ से तकिए की ओर इशारा किया। सार्थक ने तकिए के नीचे टटोला तो एक सफेद लिफाफा निकला। मासी ने सार्थक को इशारा किया कि यह तुम्हारे लिए है और फिर मासी बेहोश हो गई। 

        न जाने सीने का यह कैसा दर्द है जो मासी को जीने नहीं दे रहा। कभी-कभी तो भली चंगी होगा बैठ जाती है कि जैसे मानो कुछ हुआ ही न हो और कभी-कभी दर्द के प्रवाह से बेहोश हो जाती है। अब तो डॉक्टर भी अपने हाथ खड़े कर चुका है। 

     सार्थक ने उनकी नब्ज चैक की, बहुत धीरे धीरे चल रही थी। उसने लिफाफा खोला तो देखा कि एक लंबा चौड़ा खत उसके नाम से है। उसने पढ़ना शुरू किया। 

    मेरे बेटे सार्थक, मैं तुम्हें शुरू से पूरी बात बताती हूं। मैं भारती और तुम्हारी मां कीर्ति हम सहेलियों थे। कीर्ति के गरीब माता-पिता ने बहुत मेहनत करके उसे पढ़ाई करवाई थी और मैंने ऐसी कोई दिक्कत कभी नहीं झेली थी। हम लोग अमीर थे। अब हम दोनों b.ed करना चाहते थे, सो हमने एडमिशन ले लिया और पढ़ाई जारी की। पहले वर्ष की परीक्षा शुरू होने वाली थी, तब मेरे मम्मी पापा को, मेरे चाचा जी की मृत्यु हो जाने के कारण दिल्ली से मुंबई जाना पड़ा और वापसी में उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और मैं इस दुनिया में अकेली रह गई। कहने को तो रिश्तेदार बहुत थे, पर सब की रिश्तेदारी मेरे मम्मी पापा के पैसों से थी, मुझसे नहीं। अब मुश्किल घड़ी में मैंने रिश्तेदारों का असली रूप देखा। 



    मैं दुख के कारण धीरे-धीरे डिप्रेशन में जा रही थी। ऐसे में कीर्ति ने मुझे संभाला। हर कदम पर उस में मेरा साथ दिया और उसके मम्मी पापा ने मुझे अपनी बेटी की तरह प्यार दिया। उन्होंने मुझे समझाया-“भारती बेटी, तुम अपनी पढ़ाई मन लगाकर पूरी करो ,उसके बाद अच्छे स्कूल में जॉब ढूंढो और अपना घर बसाओ। खुद को कभी अकेला मत समझना ।आज से हमारी एक नहीं दो बेटियां हैं।” 

     मैंने उन्हें अपने घर आकर रहने को कहा। लेकिन उन्होंने कहा-“लोग तो यही कहेंगे ना  कि गरीब है, पैसा देखकर लालच में तुम्हारे यहां रहने आ गए। तुम बेशक हमारे यहां रह सकती हो पर हम तुम्हारे यहां नहीं आएंगे।” 
      धीरे-धीरे मैं नॉर्मल हो रही थी और फिर कीर्ति और मैंने पेपर दिए। पेपर देने के बाद हम कुछ रिलैक्स होना चाहते थे इसीलिए हमने दो और सहेलियों के साथ मिलकर केरल घूमने का कार्यक्रम बनाया। पहले तो कीर्ति ने मना कर दिया। मैं समझ गई कि आर्थिक परेशानी के कारण वह मना कर रही है। मैं अंकल आंटी से बात करने गई और कहा-“कीर्ति मेरी सहेली नहीं बहन है उसका खर्चा मैं दूंगी।” 

वे लोग तब भी नहीं माने और उन्होंने कहा-“अगर तुम पैसे वापस लेने के लिए हां करती हो तो हम उधार समझ कर ले लेंगे और जब हमारे पास पैसे होंगे ,हम तुम्हें लौटा देंगे। तभी हम तुम्हारे साथ कीर्ति को भेजेंगे।” 

मैंने उनकी बात मान ली। हम चार लड़कियां बहुत खुशी खुशी केरल चल पड़े। केरल बहुत ही सुंदर दर्शनीय स्थान है। चाय पत्ती के बागान, लहराता शोर मचाता अरब सागर, झरने, हाउसबोट सबकुछ लाजवाब। 

        लगभग तीसरे दिन समुद्र की लहरों में खेलते खेलते अचानक कीर्ति दूर तक निकल गई। मैंने उसे आवाज लगाई पर उसने सुना नहीं। आगे, बहुत आगे वो लहरों में डूबने लगी। हम सहेलियां बहुत घबरा गए, मैं उसे बचाने उसकी तरफ भागी। तभी पीछे से भाग कर आते हुए एक लड़के ने मुझे जोर का धक्का दिया और अपनी जान जोखिम में डालकर, लहरों से लड़कर कीर्ति को बचा लाया। 

       कीर्ति और हम बहुत घबराए हुए थे। घबराहट में हमने ना तो उस लड़के को धन्यवाद बोला और ना ही उसका नाम पूछा और वह चला गया। 

      बस हम वापस जल्दी अपनी होटल की ओर। होटल पहुंचे तो वही लड़का हमें अपने दोस्तों के साथ दिखा। हमारा कमरा पहली मंजिल पर था और उसका दूसरी मंजिल पर। 



       दूसरे दिन तसल्ली से हमने उससे मुलाकात करके उसे धन्यवाद किया। तब पता चला कि वह लखनऊ से आया है और उसका नाम कार्तिक है। मैंने देखा कि कीर्ति और कार्तिक सबसे नजरें चुरा पर एक दूसरे को देख रहे थे फिर कार्तिक का ग्रुप और हम केरल में साथ-साथ घूमने लगे। 

 

 घूमते घूमते ना जाने कब दोनों के बीच प्यार हो गया, किसी को पता नहीं लगा। 

दोनों हर समय बातें करते दिखते या फिर एक दूसरे को निहारते हुए दिखते। कभी-कभी थोड़ी देर के लिए गायब हो जाते और फिर वापस आते तो एक-दूसरे का हाथ थामे। 

      एक दिन मैं सुबह होटल के कमरे में जागी तो कीर्ति वहां नहीं थी। थोड़ी देर में वह आ गई और उसने बताया कि उसने मंदिर में कार्तिक के साथ विवाह कर लिया है। मुझे उसके ऊपर बहुत गुस्सा आया और मैं उस से लड़ पड़ी। लेकिन उसने मुझे मना लिया और कहा कि यह बात मैं सब से छुपा कर रखूं। यहां से वापस जाकर कार्तिक अपने माता-पिता से बात कर लेगा और वे लोग मेरे माता-पिता से बात कर लेंगे। 

     वैसे तो कार्तिक बहुत सुलझा हुआ, अच्छे व्यवहार वाला, अच्छी पोस्ट पर काम करने वाला लड़का था पर ऐसे छुपकर दोनों का विवाह करना मुझे अच्छा नहीं लगा। फिर भी मैं दोनों की खुशी देख कर चुप रही। 

       हमारे वापस जाने में 2 दिन शेष थे। उससे एक दिन पहले हम अरब सागर देखने गए। वहां की खतरनाक लहरें और समुद्र की घनघोर गर्जना के कारण वहां लोगों को नहाने, मस्ती करने और लहरों के पास जाने की आज्ञा नहीं है, लेकिन सबसे नजरें बचाकर कार्तिक के ग्रुप का एक लड़का सुनील न जाने कैसे लहरों तक पहुंच गया और एक बड़ी लहर उसे अपने साथ बहाकर ले गई। 

जब हम सब की नजर उस पर पड़ी तब पानी में केवल उसके हाथ दिखाई दे रहे थे। कार्तिक उसे बचाने भागा। कीर्ति ने उसे रोकने की कोशिश की, पर वह रुका नहीं और सुनील के साथ साथ समुद्र उसे भी लील गया। 

कीर्ति का रो रो कर बुरा हाल था। बचाव टीम शाम तक दोनों को खोजती रही पर दोनों में से कोई नहीं मिला। कोई कब तक वहां रुकता। आखिर तो सब को वापस जाना ही था। मन पर भारी बोझ लिए हम सब अपने-अपने घर आ गए। 

      घर आकर कीर्ति उदास रहने लगी। उसके माता-पिता के पूछने पर उसने कुछ नहीं बताया और ना ही मुझे बताने दिया। लेकिन थोड़े दिनों बाद हमें उन्हें सच बताना ही पड़ा क्योंकि कीर्ति प्रेग्नेंट थी। 



उसके माता-पिता ने हमें बहुत डांटा और हमारा मिलना जुलना बंद करवा दिया। 

लेकिन माता-पिता बच्चों को परेशान कहां देख पाते हैं। उनसे भी कीर्ति की परेशानी और उदासी देखी न गई। फिर उन्होंने मुझे बुलाया और कहा-“तुम ही कीर्ति को समझाओ कि इतना परेशान होना और उदास रहना ठीक नहीं। उसे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए और जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।” 

दोनों बहुत चिंतित लग रहे थे। बदनामी का डर होते हुए भी उन्होंने एक बार भी कीर्ति को एबॉर्शन के लिए नहीं कहा, यह उनकी ऊंची सोच थी। 

कीर्ति को उन्होंने मेरे घर भेज दिया ताकि उसका मन बहला रहे। कीर्ति मेरे साथ रहने लगी। मैं उसे तनाव से बाहर लाने की ,उसे खुश रखने की कोशिश करती थी पर मैं सफल नहीं हो पा रही थी। उसकी ऐसी हालत देखकर एक दिन अचानक उसकी मां का हार्ट फेल हो गया और वे चल बसी। 

मैं अपनी पढ़ाई भी कर रही थी और कीर्ति की देखभाल भी। फिर तुम्हारा जन्म हुआ सार्थक बेटे। तुम्हें जन्म देकर कीर्ति चल बसी। उसकी मृत्यु के समाचार ने तुम्हारे नाना जी को तोड़ कर रख दिया और मैं सदमे से चल बसे। अब तुम्हारी जिम्मेदारी पूर्ण रूप से मेरी ही थी। कीर्ति मेरी सहेली नहीं, बहन थी और मैं उसके लिए इतना तो कर ही सकती थी। 

अब मैंने तुम्हें पूरी बात बता दी है। ना जाने कब तक मेरी सांसे चलेंगीं। तुम्हें यह बताना तो बनता ही है कि हम दोनों सहेलियां एक दूसरे की जान थी और तुम्हें यह बताना भी जरूरी था कि हम सभी बहने नहीं ,उससे भी कुछ बढ़ कर हमारा रिश्ता था,”रिश्ता दोस्ती का” 

तुम्हारी “मां,मासी भारती ” 

पत्र पढ़कर सार्थक बहुत रोया और उसे अपनी मां, और मासी की दोस्ती पर गर्व होने लगा। उसे तो आज तक पता नहीं था कि मासी उसकी मम्मी की सहेली है। एक दोस्त के लिए, उसके बच्चे को पालने के लिए मासी ने अपना घर भी नहीं बसाया। वह उठकर मासी के पांव छूने लगा तभी भारतीय ने आंखें खोल कर आशीर्वाद देने के लिए हाथ उठाया और मुस्कुरा कर सदा के लिए आंखें बंद कर ली। सार्थक और सुहानी ऐसा दोस्ती का रिश्ता देख कर अचरज में थे। 

#दोस्ती_यारी

स्वरचित 

गीता वाधवानी दिल्ली

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