रिक्त स्थान (भाग 43) – गरिमा जैन

वह रात जितेंद्र के लिए सबसे भारी , सबसे लंबी ,सबसे वीरान थी।रेखा के बिना जीवन की कल्पना करना बहुत मुश्किल था ।उसे हर तरफ रेखा दिखाई देती। कमरे के हर कोने में उसकी छाप थी ।हवा के झोंके से जब विंड शाइन की घंटियां बचती तो जितेंद्र को ऐसा लगता जैसे अभी रेखा लहरा के वहां से गुजरी है ।

छत पर लगा खूबसूरत झूमर जो रेखा ने जिद करके खरीदा था, उसका मध्यम प्रकाश भी रेखा के करीब होने का ही एहसास कराता। बालकनी में लगे सुगंधित फूलों की खुशबू आज जितेंद्र को कैसी चुभन दे रही थी।
पूर्णिमा की रात थी ।आकाश में बादलों के छोटे-छोटे टुकड़े ऐसे तैर रहे थे जैसे पानी की सतह पर खूबसूरत चिड़िया पंख फैलाए घूम रही हो पर जितेंद्र को यह मनमोहक दृश्य भी विरह की बेला में दुख ही दे रहा था।

उसके सिरहाने रखी मेज पर फूलदान में रेखा ने बहुत सुंदर फूल लगाए थे जो उसकी गैरमौजूदगी में मुरझा गए हैं बिल्कुल जितेंद्र की मन की तरह । कभी उसे लगता कि रेखा नहा कर अपने गीले सुखाती कमरे में घूम रही है और उसके बदन की खुशबू से पूरा घर महक रहा हो ।उसे वो पल याद आते जब वे पहाड़ों पर घूमने गए थे ।खूब जबरदस्त ठंड थी।

जानू को ठंड से बचाने के लिए रेखा उसे खूब सारे गर्म कपड़े पहना रही थी और उसे गरम गरम हल्दी का दूध पिला रही थी। जानू और रेखा का प्यार देखकर जितेंद्र की आंखों में कई बार आंसू आ जाते थे । जब उस दिन रेखा ने फर की टोपी लगाई थी तो वह बहुत प्यारी लग रही थी ।बिल्कुल छोटी बच्ची जैसी ।

दिन भर तीनों ने खूब मस्ती की थी।पहाड़ों पर बर्फबारी हुई थी। जानू ने छोटे छोटे हाथों से बर्फ के गोले बनाए थे और एक स्नोमैन भी बनाया गया था। पहाड़ों की शाम बहुत हसीन होती है ।हल्की धुंध में डूबता हुआ सूरज जितेंद्र की आंखों में आज भी समाया हैं। उस मध्यम प्रकाश में रेखा के लहराते बाल ,ठंड से लाल हो चुके उसके गाल सच वह बिल्कुल परियों सी लग रही थी ।पहाड़ों की वह हसीन शामे, हसीन रातें , रेखा का साथ उसे मदहोश कर देता ।

उसकी,गहरी गहरी आंखें, उसका मखमली जिस्म। रेखा के साथ बिताए हर एक पल को सौ सौ बार याद करना चाहता था ।जब वे घंटो बालकनी में यूं ही खड़े रहकर ना जाने क्या-क्या बातें करते थे ।जितेंद्र को तो बातें भी अब याद नहीं आ रही। वह रेखा से क्या कुछ कहना नहीं चाहता था ।कई बार उसका जी चाहता था कि रेखा दिन भर उसकी नजरों के सामने बैठी रहे और वह बस उसकी तस्वीर बनाता रहे।
रेखा कहां थी किस हालत में थी यह सोचकर जितेंद्र तड़प कर उठ जाता है ।वह इस तरह से बैठकर रेखा का इंतजार नहीं कर सकता उसे कुछ करना होगा। रात के 2:30 बज चुके थे ।वह गाड़ी निकालता है और उसी वीराने घर की तरफ चल पड़ता है जहां पर उस रात रूपा गई थी ।
कही दूर एक वीराने में
कातिल : रेखा मेरी प्यारी रेखा ,आंखें खोलो !!देखो तुम मेरे कितने प्यारे से आशियाने में हो ।तेरी सहेली को मेरा पुराना आशियाना शायद पसंद नहीं आया था इसलिए मैं तुझे अपने नए आशियाने में ले आया हूं। मैं जानता हूं तेरा आशिक वह जितेंद्र तुझे ढूंढने के लिए वहां जरूर आएगा।
रेखा : मुझे कुछ ठीक से दिखाई क्यों नहीं दे रहा?? तुमने मेरी आंखों में क्या कर दिया है!! मेरे सर में बहुत तेज दर्द हो रहा है ,कहां हूं मैं!
कातिल : देखो ऐसे तो तुम मेरी प्यारी भाभी लगती हो। तो रेखा भाभी कुछ नहीं तुमको मैंने सिर्फ एक ड्रग्स का इंजेक्शन दिया है। अभी थोड़ी देर में ही सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा। याद है ना, यही इंजेक्शन तुम्हें एक बार और लग चुका है ।जब यह इंजेक्शन मेरी प्यारी नैना ने लगाया था।
रेखा : नैना तुम नैना को भी जानते हो??
कातिल : नैना को भी जानता हूं और रेखा भाभी मैं हर उस औरत को जानता हूं जो उस जितेंद्र की जिंदगी में आना चाहती थी और मैंने बारी-बारी से उन सब का पत्ता साफ कर दिया। अब नंबर तुम्हारा है…
रेखा :मतलब
कातिल : मतलब यह प्यारी भाभी कि मैं सालों से तेरे प्यारे जितेंद्र के पीछे लगा हुआ हूं ।पहले उसकी जिंदगी में नैना ही तो आई थी फिर जब वह पढ़ने के लिए विदेश चली गई तब मैंने वहीं पर उसे ड्रग्स की लत लगवा दी थी ।शायद तुम नहीं जानती मेरी पहुंच कहां तक है …उसके बाद उसकी जिंदगी में आई स्वाति, सच स्वाति और तुम्हारी शक्ल काफी मिलती-जुलती है. शायद जितेंद्र ने इसीलिए तुमसे शादी कर ली ,सेकंड हैंड स्वाती भाभी…
हां तो मैं यह कह रहा था कि फिर जितेंद्र की जिंदगी में आई स्वाति और मैंने बहुत सफाई से उसका भी पत्ता काट दिया। पत्ता तो मैं तुम्हारा भी काटना चाहता था । मेरे ही कहने पर नैना तुम्हारे पीछे लगी थी ।मैं उसे ड्रग्स देता था। अगर वह मेरा कहना नहीं मानती तो उसके बहुत से राज मेरे पास थे जो आज भी है…
रेखा :पर जितेंद्र ने तुम्हारा बिगाड़ा क्या है ?तुम्हारी उससे दुश्मनी क्या है ??तुम हो कौन??
कातिल : मैं मैं वह बदनसीब हूं जिसके मां बाप ने उसकी आंखों के सामने एक दूसरे का कत्ल कर दिया था ।मैं वह बदनसीब हूं जिसके साथ 10 साल की उम्र में वह घिनौना काम किया गया था जिसे सुनकर सबकी रूह कांप जाए। मेरी आत्मा उसी दिन मर चुकी थी ।सिर्फ शरीर जिंदा था। और उधर मेरा चचेरा भाई जितेंद्र जिंदगी के वह सब अच्छे दिन जी रहा था जो शायद मुझे भी मिल सकते थे अगर मैं उसकी जगह होता ।

मैं उसके साथ 4 साल तक उस घर में रहा जहां आज तुम रहती हो ।वहां के ऐशो आराम शानो शौकत मैंने सब देख रखे हैं। जितेंद्र के लिए मेरे मन में ऐसी नफरत है जो मरते दम तक नहीं निकलेगी। चाहे मैं खुद को उसके लिए बर्बाद क्यों ना करूं कर ही चुका हूं !!तुम देख नहीं रही मेरा हाल….
कहकर वह अपने चेहरे से मास्क हटाता है ।उसका चेहरा देखकर रेखा की चीख निकल जाती है ।उसके पूरे चेहरे पर चाकुओं के ढेरों निशान थे ।दर्जनों निशान। चेहरा ऐसा भयावह था जैसे लगता था साक्षात शैतान आंखों के सामने खड़ा हो गया हो। रेखा इतनी तेज चीखती है कि वह बेहोश हो जाती है। कमरे में चारों तरफ तेज रोशनी है ।हर तरफ शीशा लगा हुआ है। दूर-दूर तक खाली मैदान है। ना कहीं पर घर है ना एक आदमी दिखाई देता है। शायद परिंदा भी वहां पर नहीं मारता। ना जाने यह कातिल रेखा को किस जगह ले आया था..
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गरिमा जैन 

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