रक्षक – कमलेश राणा

एक दिन हम स्कूल से लौट रहे थे कि एक जगह भीड़ देख कर रुक गए,,वहां लोग अधेड़ उम्र के पुरुष को पीट रहे थे,,

 

पूछने पर पता चला कि  वह रेल्वे स्टेशन के पास बने छोटे से होटल पर चाय पी रहा था,,अभी-अभी पैसेंजर से उतरा था,,वो एक बड़ा सा बोरा लिये था साथ में,,

 

अचानक उस बोरे में होती हलचल ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया,,पूछने पर वह कोई संतोषजनक जवाब न दे सका ,,इस पर लोगों के मन में शक बढ़ने लगा और उन्होने उससे कहा कि खोलकर दिखाओ,,इसमें क्या है,,

 

इस पर वह भागने लगा,,लोगों ने उसे पकड़ लिया और पीटने लगे,,जब बोरा खोला गया तो हर कोई सन्न रह गया,,

 

उसके अंदर 12-13 साल की लड़की थी,,उसके मुंह में कपड़ा ठुंसा हुआ था,,कपड़ा निकाल कर लोगों ने उसे हिम्मत बंधाई और उसके घर का पता पूछा,,पर वह कुछ बता नहीं पाई,,,वह मराठी बोल रही थी,,यानि उसे महाराष्ट्र से अपहरण कर के लाया गया था,,

 

पैरों में चांदी की पायल पहने थी,,जो इस बात की गवाह थीं कि वो किसी अच्छे घर से ताल्लुक रखती थी,,

 

पुलिस ने महाराष्ट्र पुलिस को सूचना भी दी,,पर कोई सुराग हाथ नहीं लगा,,

 

तब वहाँ के सरपंच रमेश जी ने  उसे गोद ले लिया,,उनके खुद की 5 बहनें थीं,,उन्हीं के साथ वह भी बड़ी होने लगी,,धीरे-धीरे उसने हिंदी भी सीख ली,,

 

उसका सब कुछ बदल चुका था,,सिवाय नाम के,,जो उसके माता पिता ने उसे दिया था,,सुनीता,,

 

समय आने पर अच्छा घर वर देख कर उन्होने बड़ी धूमधाम से उसका विवाह कर दिया,,आज वो कहीं सुखद जीवन बिता रही होगी,,

 

यदि रमेश जी उसके रक्षक न बनते तो न जाने उसका भविष्य क्या होता,,समाज में ऐसे दैव पुरुष भी हैं जिनसे इंसानियत जिन्दा है,,

#रक्षा

कमलेश राणा 

ग्वालियर

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