पुत्री भवः – डॉ. पारुल अग्रवाल

सुगंधा की शादी बड़ी धूमधाम से अनिकेत के साथ हुई। सब कुछ उसको बहुत खूबसूरत और आने वाले कल का प्यारा सा आगाज़ लग रहा था। वो शादी से पहले से ही नौकरी करती थी, अब शादी के बाद वो अपने पति अनिकेत के साथ  बंगलौर आ गई थी। यहां आकर उसको भी दोबारा नौकरी मिल गई थी। खुशी खुशी समय बीत रहा था। शादी के ६ महीने ही बीते थे कि सुगंधा को अपने अंदर एक नवजीवन की आहट सुनाई पड़ी। डॉक्टर से चेकअप के बाद उसके गर्भवती होने की पूरी पुष्टि हो गई । दोनों पति-पत्नी बहुत खुश थे पर दोनों के लिए ही ये अनुभव बिल्कुल नया था उस पर दोनों नौकरी की वजह से अनजान शहर में बिल्कुल अलग-थलग पड़ गए थे। वैसे भी किसी स्त्री के मां बनने की प्रक्रिया बहुत सारे उतार-चढ़ाव की होती है। इस समय हार्मोन्स में भी काफी परिवर्तन होता है। ऐसा ही कुछ सुगंधा के साथ हो रहा था। उसकी तबियत ठीक नहीं थी वो कुछ ढंग से खा-पी भी नहीं पा रही थी। उसकी हालत देखकर डॉक्टर ने सलाह दी कि ऐसी हालत में किसी बड़े और अपनों की देखभाल की जरूरत है। अब अनिकेत और सुगंधा ने सोचा कि जब तक बच्चा नहीं हो जाता तब तक सुगंधा अपने ससुराल आकर रहेगी। वैसे भी उसका मायका और ससुराल एक ही शहर में था। इस तरह सुगंधा अपने नए मेहमान को अपने अंदर संजोए अपने शहर वापिस आ जाती है।

सुगंधा के आने के बाद कोई ना कोई उससे मिलने आता रहता था, जब भी कोई आता वो उसे हमेशा उसको बेटा होने का आर्शीवाद देकर जाता। भूले से भी कोई ये नहीं कहता कि भगवान होने वाले बच्चे को स्वस्थ रखे,बच्चे के नाम पर सब लड़का होने का ही आर्शीवाद देते जैसे लड़की होने का बोल दिया तो कोई बहुत बड़ा गुनाह हो जायेगा। थोड़े समय के बाद जब उसकी सतमासी पूजा थी। उसमें भी उसकी गोद में सारे लड़के वाले खिलौने और लड़के के प्रतीक में गुड्डा ही रखा गया।उस समय उसके मन में थोड़ा विरोध उत्त्पन्न हुआ, वो कहना चाहती थी कि सारे खिलौने लड़के के ही क्यों, अगर बेटी हुई तो? पर घर में सभी का उत्साह देखकर वो चुप हो गई।




अब उसका मन अंदर से बहुत परेशान हो गया था क्योंकि उसने तो केवल एक स्वस्थ बच्चे की कामना की थी उसने तो लड़का होगा या लड़की इस विषय में ज्यादा सोचा भी नहीं था। अब उसको अंदर ही अंदर थोड़ी घबराहट होने लगी क्योंकि उसको सबके मुंह से लड़के होने का ही सुनकर ऐसा लगने लगा कि अगर उसके बेटी हो गई तो ससुराल में उसको पहले जैसा प्यार नहीं मिलेगा।जहां इस समय के उसको हंसते खेलते, आराम करते बिताना चाहिए था वहीं वो तनाव में आ गई थी। उसका ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा बढ़ गया था। वो अपने मन की बात किसी से नहीं कह पा रही थी। किसी तरह से समय बीत रहा था। होते होते वो घड़ी भी आ गई जब बच्चे का जन्म होना था। सुगंधा को हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। उसकी तबियत ठीक नहीं थी क्योंकि उसका ब्लड प्रेशर काफी बढ़ गया था। उसको लेबर पेन दिए जा रहे थे पर उसको इन दर्द में पूरा एक दिन बीत गया था। घर के बड़े लोग आपरेशन के पक्ष में नहीं थे। लेकिन डॉक्टर ने आखिर गंभीरता को देखते हुए ऑपरेशन की भी तैयारी कर ली थी, पर तभी चमत्कार हुआ आपरेशन के लिए ले जाने से पहले ही नन्हीं सी परी जो कि बिल्कुल सुगंधा का ही प्रतिरूप थी इस संसार में आ गई।




सुगंधा तो दर्द से निढाल होकर बेहोश हो गई थी पर डॉक्टर ने उसके पति अनिकेत और उसकी सासू मां को अपने कक्ष में बुलाया और बोला कि बहुत हिम्मत वाली है आपकी नन्हीं राजकुमारी।असल में सुगंधा की हालत आखिर में काफी खराब हो गई थी,अगर आज होने वाला बच्चा लड़का होता तो शायद वो बचता नहीं। ये तो लड़की के अंदर जिजीविषा लड़के से अधिक होती है इसलिए वो सही सलामत इस दुनिया में आ गई। अनिकेत तो पहले से बेटी के होने पर बहुत खुश था,डॉक्टर की बात सुनकर सुगंधा की सास जो थोड़ी पोती होने पर अनमनी सी हो गई थी वो भी ये सब सुन भगवान का बहुत धन्यवाद देने लगी।

उधर जैसे ही सुगंधा होश में आई और उसको उसकी लाड़ली गोद में थमाई गई तो उसके अंदर पिछले दिनों का समाया हुआ सारा दर्द और डर खुशी के आंसुओं के रूप में बाहर निकल आया। उसे लगा जब उसकी बिटिया सारी प्रतिकूल परिस्थितियों का विरोध कर उसको जीवन का सबसे बड़ा मातृत्व सुख पहुंचाने इस दुनिया में आ सकती है तो वो कैसे इतनी कमज़ोर पड़ सकती है। वो मन ही मन अपनी बेटी से वादा करती है कि अब जो भी उसकी बेटी को कुछ कहेगा या उसको लड़के से कमतर आंकने की कोशिश करेगा वो उसका पुरजोर विरोध करेगी।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी?अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजियेगा। हम लोग काफ़ी आधुनिक हो गए हैं पर आज भी हमारा समाज लड़का और लड़की के बीच फ़र्क होता है। होने वाली माता को लोग लड़की होने का आर्शीवाद देने से भी कतराते हैं, जिससे वो भी उस मातृत्व जैसे खूबसूरत समय को तनाव बिता देती है। काश वो दिन जल्दी आए जब बड़े बूढ़े पुत्र भवः के साथ साथ पुत्री भवः का भी आर्शीवाद निसंकोच दिया करेंगे क्योंकि सृष्टि के सुचारू संचालन के लिए बेटा और बेटी दोनों आवश्यक हैं।

#विरोध

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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