प्रायश्चित – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

प्रायशचित गल्तियों का होता है, गुनाहों का नहीं

“ गोकुल बेटा, तुझसे एक बात करनी है” मुरली प्रसाद ने दुकान पर जा रहे बेटे से धीरे से कहा।

“ जी बाबूजी, कहिए, क्या कहना चाहते है” गोकुल ने बही खाता एक तरफ रखते हुए कहा। वैसे तो आजकल सब काम कम्पयूटर पर हो जाते है, परतुं गोकुल की आदत सब लिखने की थी। और फिर मुरली प्रसाद को तो कम्पयूटर चलाना आता भी नहीं था। वो दुकान का हिसाब किताब रोज चैक करते थे। उन्का फलों सब्जियों का होल सेल का काम था।

      “ वो बात ये है कि मैं मैं, “मुरली प्रसाद जी ने कुछ हकलाते हुए बात बीच में ही छोड़ दी।

“हां, हां कहिए ना, कुछ चाहिए “ नहीं नहीं कुछ नहीं, बस ऐसे ही, अब तुम जाओ, लेट हो रहे हो, शाम को बात करते है। जाओ, जाओ,। गोकुल ने भी ज्यादा गौर नहीं किया क्योंकि वो सचमुच ही लेट हो रहा था। 

      बहुत सालों से मां के मरने के बाद मुरली प्रसाद और गोकुल दोनों अकेले ही रह रहे थे, गोकुल की मां गोमती का कई साल पहले ही देहांत हो गया था। एक मरी हुई बच्ची को जन्मदेते वक्त उस के साथ वो भी चल बसी। उस समय गोकुल आठ नौ बरस का रहा होगा, अब वो बाईस साल का होने को आया। गांव के स्कूल से दसंवी करने के बाद ही वो पिता के काम में हाथ बंटाने लग गया।

घर का खाने का काम भी बाप बेटा मिलकर ही करते थे। बर्तन सफाई और कुछ छोटे मोटे काम के लिए एक औरत शुरू से ही लगी हुई थी, अब वो भी बूढ़ी हो गई थी, लेकिन धीरे धीरे काम कर लेती और उसका गुजारा भी चलता रहता।

हमार समधिन बहुतै प्यारी – सुषमा यादव

गोकुल पर बहुत स्नेह था उसका।गोमती की मृत्यु के बाद नाते रिश्तेदारों ने उस पर शादी का दवाब डाला, समझाया भी कि अभी उसकी उमर ही क्या है, लेकिन पता नहीं क्यों उसका मन उचाट सा हो गया। उसने सारा ध्यान गोकुल और अपने काम पर ही लगा दिया। 

              रात को जब बाप बेटा खाना खाने बैठे तो जैसे गोकुल को कुछ याद हो आया। “ पिताजी, सुबह आप कुछ कह रहे थे, दवाईयां वगैरह तो नहीं खत्म हो गई, चाहिए तो कल ही गोपी को भेजकर शहर से मंगवा लेते है”। मुरली प्रसाद को शूगर थी और साथ में बी. पी. भी तो बहुत ध्यान रखना पड़ता था। बाप बेटे में काम की बातें ही होती थी। दोनों ही कम बोलने वाले थे। 

    “ नहीं, नहीं, दवाईयां तो अभी पड़ी है”, फिर एकदम से बोला” वो मैं शादी कर रहा हूं”। गोकुल का निवाला हाथ में ही रह गया और वो अवाक सा मुरली का मुंह देखने लगा।कुछ मिंट रूक कर गोकुल ने सिर्फ इतना ही कहा” जैसी आपकी मर्जी”। और उठ कर चला गया। मुरली में उसे रोकने की हिम्मत नहीं थी। वो तो सोच रहा था कि गोकुल न जाने क्या क्या पूछेगा, और वो क्या उत्तर देगा।

अगले हफ्ते ही शोभा उसकी मां बनकर आ गई। किसी पास के गांव की विधवा औरत थी और उम्र में भी मुरली के बराबर ही थी। मुरली के किसी दोस्त की रिशतेदार थी। उसका कोई सहारा नहीं था तो पता नहीं दोस्त ने कैसे मुरली को इस विवाह के लिए राजी कर लिया।

      कुछ दिन तो गांव में ये शादी चर्चा का विषय बनी रही , सुनने को मिला कि शादी की उमर तो बेटे की थी और दुल्हा बाप बन गया,लेकिन फिर सब अपने में मस्त हो गए। गोकुल की एक मासी थी जो अक्सर उनसे मेल जोल रखती थी।

जब उसे पता चला तो उसे गुस्सा तो बहुत आया पर क्या कर सकती थी। उसने गोकुल से फोन पर बात की लेकिन गोकुल शांत रहा और मासी को भी चुप रहने को कहा। शोभा बुरी औरत नहीं थी। उसने अच्छे से घर संभाल लिया। गोकुल शोभा से बहुत ही कम बात करता और मुरली से तो अब पहले से भी कम बात होती। 

          दो साल बाद शोभा ने बेटे को जन्म दिया नाम रखा मोहित। कुछ दिन चर्चा होती रही लेकिन फिर सब भूल गए। मासी एक दो बार आई और उसने मुरली से कहा कि अब बेटे का घर भी बसा दो, अपना तो बसा लिया। मुरली तो खुद चाहता था लेकिन गोकुल ही मना कर देता। आखिर मासी अपने ससुराल से रिशतेदारी में एक लड़की शालू का रिश्ता लेकर आई तो गोकुल को सब ठीक लगा। वैसे भी मौसी के सिवा उसका दुनिया में कौन था। बाप और नई मां तो वैसे भी बेटे में व्यस्त थे। एक तरह से घर में रहते हुए भी गोकुल अकेला था। 

मोर्चे – मुकुन्द लाल 

        मुरली और शोभा उससे बात करना चाहते थे लेकिन वो ही अलग थलग रहता। वो अपने मन को कई बार समझाता कि उन्होंने कोई गुनाह नहीं किया, मगर फिर भी वो सहज न हो पाता। सादा से समारोह में गोकुल की शादी हो गई, गोकुल को ज्यादा तामझाम पंसद नहीं था। मंगनी के बाद शालू की सहेलियां उसे छेड़ती थी” तीन साल का प्यारा सा देवर भी है ससुराल में”।

अब शालू क्या कहती। चार कमरों का अच्छा घर था। शालू नेक स्वभाव की थी, बारहवीं पास थी, घर का काम काज सब जानती थी। उसने शोभा को पूरा इज्जत मान दिया। एक साल बीत गया, अब शालू मां बनने वाली थी, उसने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। माहौल काफी ठीक हो चला था। गोकुल की बेटी का नाम राखी रखा गया।

मोहित दिन भर राखी से खेलता। अब चाचा भतीजी कहो या बहन भाई , रिशता तो प्यार का ही है। लगभग छ: महीने हुए होंगे राखी के जन्म को कि एक रात मुरली को दिल का ऐसा दौरा पड़ा कि वो फिर न उठा। दूसरी बार विधवा हुई शोभा एकदम पत्थर सी हो गई। पता नहीं कोई उसका मायके में था नहीं या किसी ने रिशता नहीं रखा, बेचारी बिल्कुल चुप सी हो गई।

  •            शालू और गोकुल ने बहुत ध्यान रखा लेकिन एक साल बाद ही वो चल बसी। मोहित को तो कुछ समझ ही नहीं थी, अभी अभी उसने स्कूल जाना शुरू किया था। उसके लिए तो शालू और गोकुल ही मां बाप थे और राखी बहन । समय की गति तो चलती ही रहती है। शालू और गोकुल ने उसे ही अपना बेटा मान लिया और दूसरा बच्चा पैदा करने का विचार मन से त्याग दिया।
  • मोहित पढ़ाई में बहुत होशियार निकला। उसका दाखिला शहर के अच्छे कालिज में हो गया और उसने इजियनरिंग की डिगरी के बाद एम. बी. ए. भी कर लिया।और थोड़ा समय नौकरी के बाद खुद की ही कंपनी बना ली थी।  

               बहुत पहले से ही उसे गोकुल के साथ अपने रिशते का पता लग गया था, लेकिन उसे कुछ फर्क नहीं पड़ा। यहां वहां से उसे बहुत सी बातें सुनने को मिली लेकिन वो मस्त तबियत का था, और शहर की चकाचौंध उसे खूब भाती। जैसा कि दुनिया का काम है आग लगाना, लेकिन वो कम ही ध्यान देता। उसका भला चाहने वाले भी काफी थे।

दिल की दुआ – लतिका श्रीवास्तव 

गांव में आना उसे कम पंसद था। ग्रेजुऐशन के बाद राखी की शादी हो गई। शालू और गोकुल की भी उम्र हो चली थी। पिताजी के बाद सारा काम उसी ने सभांल लिया था। काफी अच्छा काम था, तो उसने आसपास प्रोपर्टी भी बना ली थी। चार दुकाने किराए पर दी हुई थी। सब गोकुल के नाम ही था, मोहित तो तब छोटा था। दुकान भी हिस्सेदारी में किसी को दे दी थी, दरअसल उसके घुटने अब जवाब दे चुके थे।

           मोहित ने शहर में ही अपने साथ काम करने वाली लड़की रीना से शादी कर ली थी। दोनों एक बार ही गांव आए थे। रीना शहर के माहौल में पली बढ़ी मिडिल क्लास घराने की थी। धीरे धीरे उसे गांव की जायदाद वगैरह का पता चल गया तो उसकी मां ने उसके कान भरने शुरू कर दिए। मोहित ने समझाया भी कि सब अपना ही तो है। “ अपना कैसे हुआ, पहला हक तो राखी का हुआ, तुम्हारे पिताजी के नाम की तो एक पुरानी दुकान और मकान ही तो है। बाकी सब तो भाईसाहब के नाम ही है। 

      कहते है न घिसते रहो तो पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं, मोहित तो फिर इंसान था। घुटनों के आप्रेशन के लिए डाक्टर ने गोकुल को शहर जाने की सलाह दी। मोहित से बात की तो उसे हां करनी ही पड़ी। पैसे की कमी तो किसी को भी नहीं थी, लेकिन अब रीना और उसकी मां ने मोहित की सोच बदल दी थी। वो उसे भाई से अपना हिस्सा लेने के लिए उकसाते।

ड्राईवर के साथ वो शहर पहुचें तो औपचारिकता वश मोहित ने गोकुल के साथ अपना एक कर्मचारी लगा दिया, सब कुछ उसकी देख रेख में होता रहा। आप्रेशन तो हो गया परतुं मोहित का व्यवहार दोनों को अंदर तक चुभ गया। बहू बेटा कहें या देवर देवरानी एक बार दस मिंट के लिए मिलने आए। किसी ने घर चलने के लिए नहीं कहा। उन्का बेटा था साहिल , मिलाया भी नहीं बच्चे से। 

        हस्पताल से ही गांव वापसी हो गई। शरीर के जख्म तो भर जाते है, आत्मा पर लगे नहीं भरते। जिस राखी के साथ बचपन बिताया था, अब कभी उससे बात ही न होती, लेकिन वो तो स्वंय राखी थी तो कैसे भाई को राखी न भेजती। गोकुल बिस्तर से ही जुड़ गया। मोहित तो फोन भी न उठाता। इधर रीना के उकसाने पर भी वो गोकुल से हिस्सा मांग तो नहीं सका मगर कोर्ट में केस कर दिया। जब कागज घर पहुंचे तो गोकुल ये आघात न सह सका और इस मतलबी दुनिया से विदा हो गया।

औलाद – कामिनी मिश्रा कनक

       शालू और राखी की तो दुनिया ही लुट चुकी थी। दिखावे के लिए जब मोहित और रीना आए तो तेरहंवी के बाद वकील ने वसीयतनामा उसके सामने रख दिया जिसमें एक दुकान और मकान को छोड कर सब कुछ उसके नाम था और दुकान और मकान भी शालू के बाद उसी की थी। जब वसीयत बनाई गई थी तो राखी से गोकुल ने पूछा था लेकिन उसने कुछ भी लेने से इन्कार कर दिया। उसका कहना था कि बेटियों को तो मायके से मान सम्मान चाहिए, तीज, त्यौहार पर मायके से जो मिले बस उसी की चाह है, और कुछ नहीं चाहिए। 

           गांव वालों के सामने जब वसीयतनामा पढ़ा गया तो मोहित की नजरें उपर नहीं उठ रही थी। वो चाहता था कि जमीन फट जाए और वो उसमें समां जाए,  उसके व्यवहार ने उसे कहीं का न रखा। सब मेहमान चले गए तो मोहित और रीना को भी अगले दिन निकलना था। साहिल तो पहली बार गांव आया था। सारा दिन राखी के दोनों बच्चों के साथ खुश रहता। मोहित की तो शालू से नजरे मिलाने की हिम्मत भी नहीं थी। चलते समय पैर छूते हुए धीरे से बोला” आप भी साथ चलो भाभी मां, क्या अपने बेटे को प्रयश्चित का मौका नहीं दोगी”। 

      शालू तो कुछ नहीं बोली, बस तीनों के सिर पर प्यार से हाथ रख दिया लेकिन राखी ने कहा” प्रयश्चित गल्तियों का होता है, गुनाहों का नहीं, और बेटी के होते हुए मां देवर के घर नहीं रहेगी”। 

विमला गुगलानी

चंडीगढ

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