कविता और राहुल की शादी को १० साल हो चुके थे | उनके बीच बातचीत बहुत कम हो गई थी | रोज की जिम्मेदारी, आफिस का तनाव सब रिश्ता बोझ सा बन गया था |
राहुल को लगता था कि मेरी बात नहीं समझती और कविता को लगता था कि अब उन्होने दिलचस्पी लेना बंद कर दिया है |
एक दिन बिना कुछ कहे मायके चली गई और एक चिठ्ठी छोड़ ग ई , उसमें लिखा था , ” अब मैं थक चुकी हूं , अगर तुम्हें लगे कि तुम्हारे जीवन में मैं मायना रखती हूं , तभी तलाशना या फोन करना “
पहले तो मुझे बड़ा गुस्सा आया, कुछ दिनों के बाद जब अपने आप को खाली पाया, और खुद से ही बात करना शुरु कर दिया | तब उसका व्यवहार उसका ही अपना आयना दिखाने लगा | उसको बाते याद आने लगी और समझने लगा , सोचने लगा मैं थकान का बहाना बनाकर टालता रहा |
एक दिन अपनी बेटी रिया से पूछा – मम्मी कुछ कहती थी मेरे बारे में | मम्मी कहती थी , शायद थक जाते होगें , इसलिए जल्दी सो जाते होगें | उस रात को बहुत रोया | और सोचने लगा कि मेरी ही गलती है मैं हमेशा शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जाता था इसी बहस में दूरियां बढ़ गई थीं |
फिर उसे समझ आया कि अब मुझे प्रायश्चित करना होगा | रिश्ते आपसी समझ से प्यार से , एक दूसरे की इज्जत करके सुधारे जा सकते हैं | ” खुद को बदलने की कोशिश करनी चाहिए |
अगले दिन कविता के मायके पहुंचा , पहली बार आंखों में आंसू आए , और कहा मैनें तम्हारी मोज़ूदगी को तो माना और कभी महसूस नहीं किया इसलिए मैं बदलना चाहता हूं |
कविता ने नज़रे उठाई , लेकिन कुछ कहा नहीं, लेकिन चुप्पी ही असली सहमति थी | धीरे धीरे थोड़ा बहुत बोलना शुरु किया | हर दिन एक न एक बात हो जाती थी |
रिश्तों में सबसे गहरा प्रायश्चित तब होता है , जब हम अंहकार छोड़ कर अपनी गलती को समझते हैं और बदलाव की शुरुआत अपने से करते हैं, क्योकि रिश्ते टूटने की असली वजह बड़ी बड़ी प्रोब्लम्स नहीं छोटी छोटी अनदेखी बाते होती हैं जो बाद में विकराल रुप ले लेती हैं |
राहुल और कविता ने प्रायश्चित करके अपने रिश्ते को बचा लिया | देर आये दुरुस्त आये | अब तो वो एक दूसरे के बिना रह ही नहीं सकते |
सुदर्शन सचदेवा