बे-औलाद – माता प्रसाद दुबे

पापा! क्या मम्मी अब नहीं आएगी?”सात साल की बच्ची रिया अपने पापा रजनीश से सवाल करते हुए बोली।”हा बेटी!अब तुम्हारी मम्मी यहां नही आएगी?”रजनीश अपनी बेटी रिया को दुलारते हुए बोला।”ठीक है..पापा!वह न ही आए तो अच्छा है..हमेशा दादी और आपसे लड़ाई करती है..मुझे भी डांटती रहती है..जरा भी प्यार नहीं करती मुझसे वह बहुत गंदी मम्मी है?”नन्ही रिया रजनीश के गालों को अपने छोटे-छोटे हाथों से सहलाते हुए बोली। “मेरी गुड़िया कोई बात नहीं तुम्हारे पापा है..न?”रजनीश रिया को गोद में उठाकर दुलारते हुए बोला।”क्या हुआ बेटा! रजनीश की मां रमादेवी कमरें में प्रवेश करती हुई बोली।”होना क्या था अम्मा!मालती नहीं मानी उसे हमसे तो शिकायत थी ही..उसने तो अपनी बेटी से भी रिश्ता तोड़ दिया?”कहकर रजनीश खामोश हो गया।”कलयुग है..बेटा! जो हुआ अच्छा ही हुआ?”कहते हुए रमादेवी की आंखों में आसूं टपकने लगें। अम्मा! जिसे हमारी कोई फिक्र ही नहीं है..उसके लिए आंसू क्यूं बहाती हो..तुम्हारी पोती और बेटा है..न?”कहकर रजनीश रमादेवी से लिपट गया।

दस साल पहले रजनीश और मालती की दोस्ती हुई थी। दोस्ती प्यार में तब्दील हो हुई..जीवन भर साथ निभाने का वादा करके वे शादी के बंधन में बंध गए थे। पांच साल तक तो सब ठीक ठाक था। रजनीश एक व्यापारी था। बिजनेस में पार्टनरशिप में धोखा खाने में रजनीश को लाखों का नुकसान हुआ यहां तक कि वह अपना घर गिरवी रखने पर मजबूर हो गया था। मालती की हर फरमाइश वह पूरी करता था। लाखों के गहने नौकर गाड़ी किसी भी चीज की कमी नहीं थी।मगर वक्त के करवट लेते ही मालती का स्वभाव बदलने लगा।वह बात बात पर रजनीश को कोसने लगती थी..महीनों अपने पिता के घर जाकर रहती थी..रजनीश स्वाभिमानी था..वह अपने ससुराल से कोई मदद नहीं मांगता था..मालती एश्वर्य पूर्ण जीवन जीना ही जानती थी..उसमे वह कोई भी समझौता नहीं करना चाहती थी..उसे यह लगने लगा था कि उसने रजनीश से शादी करके बहुत बड़ी गलती की है.. अपनी बूढ़ी सास रमादेवी और बेटी रिया से भी वह गलत व्यवहार करने लगी थी। और अपनी मर्जी से उसने रजनीश से तलाक लेकर बेटी रिया को रजनीश को सौंपकर नया घर बसाने का निर्णय लिया था।




रजनीश मालती कानूनी रूप से एक दूसरे से अलग हो चुके थे। रजनीश कठिन परिश्रम करके अपने बिजनेस को फिर से कामयाब बनाने में जुट गया। और कुछ ही दिनों में उसे सफलता मिलने लगी। वह अपनी बेटी रिया को हमेशा खुश रखने जीवन की सभी खुशियां देने के लिए दृढ़ संकल्प कर लिया था।

रात के दस बज रहे थे। रिया सो चुकी थी।”रजनीश बेटा! मुझे तुमसे कुछ बात करनी है?”रमादेवी रजनीश के पास बैठते हुए बोली।”हा बोलो अम्मा! क्या कहना चाहती हो?”रजनीश रमादेवी का हाथ पकड़ते हुए बोला।”बेटा! मैं जो कहूंगी उसे सोचना समझना फिर हा या न कहना?”रमादेवी रजनीश को समझाते हुए बोली।”ठीक है.. अम्मा! बोलो?”बेटा! एक लड़की देखी है..मैंने जिसे मैं रिया की मां बनाना चाहती हूं..बेचारी दुख की मारी सुंदर सुशील लड़की है..एक हादसे में उसने अपना पति खो दिया है.. विधवा है..कोई बच्चा नहीं है..उसे नया जीवन मिल जाएगा..वह मालती की तरह नहीं है..बेटा! तुम इंकार मत करना?”कहकर रमादेवी रजनीश की ओर देखने लगी।”अम्मा!मालती ने मुझे जो जख्म दिए हैं.. उसे भरने में काफी समय लगेगा..मगर मैं अपनी बेटी के लिए कुछ भी कर सकता हूं?”रजनीश उदास होते हुए बोला।”बेटा मैं रिया को उसकी नयी मम्मी रश्मि से मिला चुकी हूं..उसने ही अपनी नयी मम्मी को पसंद किया है?”रमादेवी मुस्कुराते हुए बोली।”ठीक है..अम्मा! मैं तैयार हूं?”रजनीश लम्बी सांस लेते हुए बोला। रमादेवी के चेहरे पर खुशी छलकने लगी उसके बेटे के वीरान जीवन में फिर से बहार आने का वह कब से इंतजार कर रही थी।




कुछ ही दिनों में रजनीश और रश्मि की शादी हो गई। रश्मि के आते ही रिया के जीवन में खुशियों की बरसात होने लगी।एसा लगता ही नहीं था कि वह उसकी सगी मां नहीं है..उसकी सगी मां ने भी कभी उसे इतना प्यार दुलार नहीं दिया था। रजनीश को रश्मि के रूप में एक सच्चा जीवन साथी मिल चुका था। रश्मि के कदम पड़ते ही उसने अपना घर जो गिरवी रखा था..उसे मुक्त करा लिया था..उसका व्यापार करोड़ों में होने लगा था..वह अपने जीवन से मालती को पूरी तरह निकालकर रश्मि के प्रेम में सब कुछ भूल चुका था। रश्मि को किसी प्रकार का लालच नहीं था..कोई फरमाइश नहीं थी उसकी..रजनीश ने सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था कि उसे ऐसा साथी मिलेगा..उसका बीता हुआ कल उसे एक डरावना सपना महसूस होता था..वह रश्मि को हमेशा खुश ही देखना चाहता था..रमादेवी के जीवन में खुशियों लौट चुकी थी..रश्मि जैसी बहू पाकर वह ईश्वर को धन्यवाद देती रहती थी। उसके घर में खुशियों का खजाना लेकर रिया का छोटा भाई आ चुका था। रिया अपने छोटे भाई मम्मी पापा दादी के साथ हंसती खिलखिलाती रहती थी।

दस वर्ष बीत चुके थे। रजनीश के घर की डोर बेल बज रही थी। “आंटी! देखो बाहर कौन आया है?”रिया अपने घर की मेट से बोली।”अभी देखती हूं बिटिया?”कहकर वह दरवाजे की ओर बढ़ गई।”रजनीश जी है?”बाहर एक अधेड़ उम्र की महिला एक पुरुष के साथ खड़ी थी।”नहीं साहब नहीं है..घर पर मेमसाब है..आपको किससे मिलना है?”नौकरानी सामने खड़ी महिला से बोली। मेमसाब का नाम सुनते ही वह महिला सकपका गई।”उनकी बेटी रिया!वह है?”वह महिला बोली।”आपको रिया बिटिया से मिलना है? नौकरानी बोली।”रूकिए अभी बुलाती हूं?”कहकर नौकरानी अंदर चली गई।”बिटिया कोई तुमसे मिलने आया है?”नौकरानी रिया से बोली। रिया दरवाजे पर खड़ी महिला को घृणा भरी दृष्टि से देखते हुए अंदर चली गई।”आंटी! दरवाजा बंद कर लीजिए और इन्हें कहिए कि वह गलत जगह पर आ गये है?”रिया क्रोधित होते हुए बोली।”क्या हुआ बेटी कौन है..जिसे देखकर मेरी बेटी का चेहरा उदास हो गया है?”रश्मि रिया को दुलारते हुए बोली।”मम्मी! कहकर रिया रश्मि से लिपट गई और फूट-फूट कर रोने लगी।”क्या हुआ बेटी मुझे कुछ बताएगी?”रश्मि घबराते हुए बोली। तभी बाहर रजनीश की गाड़ी के आने की आवाज सुनाई देने लगी।”तूं चिंता मत कर बेटी तेरे पापा आ गए हैं?”रश्मि रिया को दुलारते हुए बोली। गाड़ी खड़ी करके रजनीश जैसे ही बाहर आया सामने मालती को एक व्यक्ति के साथ खड़े देखकर उसके गुस्से का कोई ठिकाना न रहा।”तुम यहां क्या करने आई हो?”रजनीश मालती को घूरते हुए बोला।”रजनीश मैं अपनी बेटी को एक बार देखने आईं हूं..बस और कुछ नहीं..मेरी वही इकलौती औलाद है..भगवान ने एक हादसे में मेरी सारी उम्मीदों को तोड़ दिया है?”कहकर मालती रोने लगी। “उस वक्त तुम्हें अपनी औलाद का ख्याल नहीं आया था..जब मुझे तलाक देते वक्त तुम्हें एक बार भी अपनी औलाद का ख्याल नहीं आया.. निकल जाओ यहां से?”रजनीश चीखते हुए बोला।”मुझे माफ कर दो रजनीश मैं बस एक बार अपनी बेटी के मुंह से मां शब्द सुनना चाहती हूं.. और कुछ नहीं?”मालती रजनीश के आगे हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रही थी। उसके साथ खड़ा व्यक्ति कुछ न बोलकर चुपचाप खड़ा था।”कौन बेटी! कैसी मां! मेरी मां मेरे पास है..तुम्हारी जैसी औरत किसी की मां नहीं हो सकती..न किसी की पत्नी हो सकती है..वह तो सिर्फ सुख की साथी होती है..दुख की नही.. उसे तो मां कहना मां के नाम को कलंकित करना है?”रिया गुस्से में तमतमाती हुईं बोली।”ऐसा मत बोल बेटी.. मैं तेरी मां हूं?”मालती रोते हुए बोली।”दूर हो जाओ मेरी नज़रों से.. मेरी मां मेरे पास है.. जिसके पैरों की मैल भी तुम नहीं हो सकती?”रिया रश्मि से लिपटते हुए बोली।”चलों जाओ यहां से.. बड़ी बेशर्म औरत हो तुम फिर आ गई मेरे बेटे बहू पोती पोते के हंसते खेलते जीवन में ग्रहण बनकर..रजनीश बेटा इसे गेट से बाहर करो?”रमादेवी हांफते हुए बोली।”अब आप लोग यहां से जा सकते हैं.. और दुबारा यहां आने की जुर्रत मत करिएगा?”कहते हुए रजनीश ने घर के दरवाजे बंद कर दिया और सभी लोग अंदर चलें गए। मालती काफी देर तक दरवाज़े के बाहर खड़ी रही अंदर की ओर देखती रही और हारकर चुपचाप वहां से निकल गई। जिस औलाद को उसने  एशो-आराम भरी जिंदगी के लिए दुत्कार दिया था उसी के लिए वह जीवन भर तड़पने के सिवा उसके पास और कुछ भी नहीं बचा था। औलाद होकर भी उसे जीवन भर बेऔलाद बनकर घुट-घुट कर जीना पड़ेगा।

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित अप्रकाशित

लखनऊ

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