प्रायश्चित से ही शान्ति मिलेगी – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

  मालकिन, मालकिन दरवाजा खोलिए जोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनकर प्रतिमा देवी जी ने दरवाजा खोला तो सामने कजरी खड़ी थी वो चौंककर बोली अरी कजरी तू इतना सुबह सुबह तू तो दस बजे आती है बस मालकिन आज सरकारी अस्पताल में नम्बर लिया दस बजे बुलाया उन्होंने तो सोचा आपका आधा काम निपटा जाती हूँ

बाकी शाम को कर दूंगी दो ही घर काम करती हूँ दूसरे घर छुट्टी कर ली बड़ा परिवार है काम भी ज्यादा देर न हो जाए इसलिए पर मालकिन आप पहले ये डोरबेल ठीक करवायें कब से दरवाजा खटखटा रही एक तो जल्दी है मुझे और आप दरवाजा खोल ही नहीं रहीं।

हाँ हाँ करवाती हूँ ठीक, तू चल काम निपटा जितनी बातें करेंगी अपने साथ मुझे भी देर कर देगी प्रतिमा जी कुछ जिम्मेदाराना अंदाज में बोली चल पहले एक कप काफ़ी पिला दे बढ़िया सी तू भी पी ले आज मौसम भी थोड़ा ठन्डा है। कजरी काफ़ी बना देकर काम में लग जाती है। प्रतिमा जी के यहां कजरी बहुत पुरानी काम वाली अब यूं समझो खानदानी पहले उसकी दादी फिर उसकी माँ

अब कजरी प्रतिमा जी के यहां काम करतीं माँ तो रही नहीं उसका विवाह कर कुछ साल पहले चल बसी तब से कजरी प्रतिमा जी के घर खाना बर्तन कपड़े घर के सभी काम करती वो तो चाहती थीं कजरी वहीं उनके बंगले में बने आउट हाउस में रहे मगर जाने क्या सोच कजरी ने मना कर दिया उन्होंने कभी जानने की कोशिश भी नहीं की। 

बेटियां मायके मे बेटे का नही एक माँ का फर्ज निभाती है – संगीता अग्रवाल

प्रतिमा जी अविवाहित महाविद्यालय में प्रिंसिपल माता-पिता तो रहे नहीं कुछ बर्ष पूर्व हवाई दुर्धटना में मारे गये पिता का विदेश में व्यवसाय  तो आना जाना लगा रहता था तभी दुर्घटना हुई थी । प्रतिमा जी के पास कार बंगला नुमा मकान ड्राइवर बगीचे की देखभाल के लिए माली अपनी जिंदगी ठाट-बाट से जीने में विश्वास करने वाली सभी सुख सुविधाएं उनके बंगले में मौजूद।

दूसरे दिन कजरी अपने नित्य समय पर काम पर आ गई प्रतिमा जी कालेज के लिए निकलने वाली थी वो कजरी को काम समझाने लगीं देख कजरी फालतू सामान स्टोर रूम में पहुंचा देना भूलना नहीं और आज दोपहर में हल्का फुल्का ही बना जाना और शाम को तो आयेगी ही न वो गम्भीरता से बोली। 

हाँ मालकिन क्यों नहीं आऊँगी..? 

आप ऐसे बोल रहीं, कुछ जरूरी है शाम को क्या?

आज शाम को कुछ खास प्रौफेसर मिलने वाले आ रहे तो खाने में कुछ अच्छा सा बनाना है प्रतिमा जी की सुनकर कजरी के चेहरे पर रौनक आ जाती है। तब प्रतिमा जी बोली देख देर हो जायेगी तो यही रूक जाना। नहीं मालकिन आप फ़िक्र न करें पति ले जायेगा आकर । ठीक है फिर प्रतिमा जी कहकर कालेज के लिए निकल पडती है। 

कजरी काम निपटा दाल चावल बना हाटकेस में रख देती है और कुछ दाल में शुद्ध घी डालकर खुद खा अपने घर चली जाती है। शाम को समय से पहुंच सारे काम निपटा देती है मेहमान आने पर प्रतिमा जी कजरी को गर्म गर्म फुल्के बनाने को कह मेहमानों की आवभगत में लग जाती है।

 कजरी गर्म फुल्के बना डाइनिंग टेबल में सारा खाना लगा देती है वो देखती अभी सब बातों में मशगूल तो थोड़ा खाना कटोरी में निकाल शुद्ध घी डालकर खाने लगती है सोचती बाद में समय मिले या न मिले। तभी अचानक वहां आई प्रतिमा जी यह सब देख लेती है। उनको बहुत गुस्सा आता है मेहमानों से पहले कजरी का खा लेना वो क्रोधित हो कजरी को बहुत भला बुरा कहती हैं और कल से काम पर न आने को कह देती है। कजरी कुछ कहना चाहती मगर वो हुक्म सुना वापस कमरे में चली जाती है। कजरी निराश हो अपने घर लौट जाती है।

बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से खाओगे…? – रोनिता कुंडू

इस बात को कुछ माह बीत जाते हैं एक दिन प्रतिमा जी खुद कार चला कालेज से लौट रही होती हैं रास्ते में उनकी नजर कजरी पर पड़ती है वो बहुत कमजोर जिसको देखकर लग रहा वो गर्भवती हैं बड़ी मुश्किल से लड़खड़ा कर चल रही थी प्रतिमा जी गाड़ी उसके पीछे-पीछे

चलाती उसके घर तक पहुंच जाती है। कजरी का घर टिन की छत से बना लेकिन बहुत साफ सूथरा कजरी दरवाजा खुला छोड़ घर के अन्दर प्रवेश करती है प्रतिमा जी कार रोककर खिड़की से अन्दर का दृश्य देख उनके पैरों से जमीन ही खिसकने लगती है।

 अन्दर एक चारपाई पर चार पाँच बर्ष का सूखी काया कल्प बालक पड़ा और कजरी का पति उस पर चिल्ला रहा जिसकी आवाज बाहर तक गूंज रही इतनी देर कहां लगाई तुने खाना कौन बनायेगा ? और उसने कजरी को दो चार थप्पड़ मार जैसे ही दरवाजे की तरफ धक्का मारा कजरी गिरती दरवाजा सर पर लगता पहले ही प्रतिमा जी उसको सहारा दे बाहों में पकड़ लेती है। पति प्रतिमा जी को देख बाहर भाग जाता है।

प्रतिमा जी को देख कर कजरी फूट-फूट कर रोने लगती है अपने किये की माफी मांगती है कहती हैं वो मजबूर थी ।ये देख रही हो मालकिन मेरे पेट में बच्चा है और वो एक चारपाई पर अपाहिज पिछले वर्ष एक पेट में ही चार माह का खो चुकी हूँ डाक्टर कहता मैं बहुत कमजोर हूँ प्रोटीन विटामिन और पोषण खुराक की जरूरत है शुद्ध घी खाने को बोला तभी ये बच्चा स्वस्थ पैदा होगा मालकिन दूसरे घर काम करती तो सामने बैठ काम करवाते आप मुझ पर विश्वास कर घर मेरे भरोसे छोड़ जाते तो मुझमें स्वस्थ बच्चे की चाह ने वह अपराध करवा दिया माँ की ममता ने अपराध करवाया मालकिन। 

मैं नहीं चाहती थी मेरे अपाहिज सन्तान पैदा हो। मालकिन मैं आपको बताना चाहती थी आपने उस दिन मेरी सूनी ही नहीं…! मैं आपकी अपराधी हूँ बहुत लज्जित हूँ । मैंने  आपके विश्वास को टोड़ा मैं प्रायश्चित करने को तैयार हूँ ।

खुशनसीब पिता – गुरविंदर टूटेजा

प्रतिमा जी सब कजरी की बातें सुनकर उनका दिल द्रवित हो जाता है वो खुद माँ नहीं बनी तो क्या ? मगर माँ की ममता के महत्व को अच्छे से महसूस कर रहीं थी । वो कहती हैं गलती तुम्हारी नहीं मेरी है प्रायश्चित तुमको नहीं मुझे करना होगा मैंने एक पल भी ये नहीं सोचा तुम बचपन से मेरे घर में आती हो मैंने गुस्से में कितना ग़लत फैसला कर दिया अब मैं तुम्हारी तुम्हारे बच्चो की सारी जिम्मेदारी लेती हूँ तुम्हारे आने वाले बच्चे की और तुम्हारे बड़े अपाहिज बच्चे का इलाज भी करवाऊंगी और जहां तक तुम्हारे शराबी पति की बात है अब कुछ भी करेगा या कहेगा तो मैं उसका भी इलाज कर दुंगी ।

“ एक व्यक्ति का नजरिया अनिवार्य रूप से उसकी वास्तविकता को आकार देता है जाने अंजाने हुए पाप साधारणतया प्रायश्चित करने, बताने से नष्ट हो जाते हैं “ । 

प्रायश्चित के माध्यम से अपनी ग़लती सुधारने की कोशिश अपने आप को सजा देना जरूरी है। जिसमें तुम्हारी देखभाल की जिम्मेदारी यही मेरा प्रायश्चित है और मेरा यही प्रायश्चित मुझे शान्ति देगा इसी से मुझे जीवन में शांति मिलेगी। क्योंकि वास्तव में गलतियां गलतियां नहीं वो हमारी हस्ती की छाया होती है वो हमारे अस्तित्व का प्रतिबिम्ब है ।

  लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया

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