हरीश एक संयुक्त परिवार का किसान का बेटा है । उसके पिता और चाचा दोनों ही किसान है । हरीश के दादाजी माधव प्रसाद गांव के माने हुए किसान हैं । उनके कई बीघा जमीन पर खेती-बड़ी होती है ।
दादाजी के दो बेटे हैं एक मेरे पिताजी सुरेश दूसरे मेरे चाचा नरेश । चाचा चाची के दो बच्चे हैं । एक बेटी रमिया और बेटा रामू । मैं अपने मां-बाप का अकेला बेटा हूं । पूरे परिवार में सब एक दूसरे का आदर भाव करते हैं और अपनत्व से परिपूर्ण है । सब एक दूसरे का हर तरह से ख्याल रखते हैं ।
मेरी मां शांति देवी दादा दादी का अच्छे से ख्याल रखती है । उनके खाने-पीने दवा आदि का भी । बहुत मधुर व्यवहार कुशल हसमुख संस्कारिक महिला है । घर में भी आने-जाने वालों का भाव भगत करना । सब लोग उनकी बहुत तारीफ करते हैं । बहु हो तो शांति की तरह । सब उनका आशीर्वाद देते हैं तो यही कहते, छोटी बहू अपनी जेठानी जैसी ही होना ।
मेरी चाची भी बहुत संस्कारिक महिला हैं । सबका मान सम्मान करती हैं । दोनों दोरानी जेठानी खुशी-खुशी घर का काम करती है । घर में सब तरह से खुशियों का वातावरण रहता । बच्चे भी बड़ी मां के लाडले हैं । अपनी बड़ी मां से बात करते रहते । घर में तीनों बच्चों में कोई भेदभाव नहीं है ।
गांव में बेटियों को ज्यादा पढ़ाई का माहौल नहीं है । इस कारण उसके पास के गांव में अच्छा परिवार देखकर दादाजी और सब की राजा मंडी से रमिया की शादी कर दी । वह अपने परिवार में खुशी-खुशी सबका मान सम्मान रखती है । व्यवहार कुशलता के साथ रहती है । ससुराल में सब की प्यारी बहू बन गई है ।
ससुराल वाले उसकी बहुत तारीफ करते हैं । दादाजी से कहते हैं आपने हमें बहू के रूप में हीरा दिया है । जिससे हमारा घर चमकता रहता है । दादी जी कहती हैं यही तो संयुक्त परिवार के गुण और संस्कार हैं ।
गांव की पढ़ाई 10 तक करने के बाद हरीश के पिता ने दोनों भाइयों को शहर जाकर पढ़ाई करने को कहा । परंतु हरीश “हरिया” बिलकुल राजी नहीं था । उसने साफ-साफ कह दिया मुझे शहर का रहन-सहन वहां की आबो हवा पसंद नहीं है । अगर छोटा भाई रामू जाना चाहे तो ठीक है । बड़े भाई के मना करने पर उसने भी मना कर दिया ।
दोनों भाइयों में प्यार बहुत है । कुछ दिनों बाद दादा जी की राय और अपने दोनों बेटों की राय से गांव में राशन आदि की दुकान खोलने का फैसला किया ।
दोनों भाई हरीश और रामू खुश हुए । अपनी दुकान दोनों भाई मिलकर और मेहनत से खूब अच्छे से चलाते थे । सारा सामान बढ़िया क्वालिटी का रखते थे । शाम को जितनी आमदनी होती, सारा पैसा दादा जी को दे देते थे । दादाजी बड़ी बहू शांति को सारे पैसे दे देते थे । यह
सब देखकर छोटी बहू मन ही मन चिढ़ती । उसने धीरे-धीरे अपने पति को भड़काने के लिए तरह-तरह के उपाय ढूंढ़ने शुरू कर दिए । कि तुम भी भैया के बराबर मेहनत करते हो खेती में और मेरा बेटा भी पूरी लगन और मेहनत से दुकान का काम करता है । मेहनत तो बराबर की है । पर मालिक मालकिन बड़े भैया भाभी ही हैं ।
हम तो उनके मातहत है । एक दो बार तो सुनकर नरेश डांटते हुए चुप कर देते । कैसी बातें करती हो । हम लोग कोई अलग हैं । पर धीरे-धीरे तीर निशाने पर लग गया । बेटे रामू को भी आए टाइम कुछ ना कुछ कहती रहती । वह कहावत है । त्रिया चरित्र के आगे अच्छे-अच्छे टूट जाते हैं । नरेश जी और रामू पर भी मां का प्रभाव काम करने लगा । नरेश ने अपने भाई से अपने हिस्से की जमीन की बात की ।
तो भैया बोले तू कैसी बात कर रहा है । तेरा मेरा क्या । सारी जमीन सब तेरी है । इधर रामू ने भी दुकान अच्छी चलती देखकर अपनी दुकान अलग करने की बात कही । यह सुनकर हरीश तो एक सदमे में आ गया भाई । मैं तेरे से अलग नहीं रह सकता । दादाजी को सारी बात मालूम हुई । उन्होंने कहा कोई बात नहीं ।
सब बच्चे खुश रहे । अब घर में चूल्हे भी अलग-अलग हो गए । दादाजी दादी जी ने तो साफ-साफ कह दिया हमारा कहना तो हमारी पुश्तैनी रसोई में बनेगा । यह सुन चाची बहुत खुश हुई ।
कुछ दिन के बाद राखी का त्योहार आया । बेटी रमिया अपने भाइयों के राखी बांधने आई । वह यह देखकर आश्चर्य चकित रह गई । उसने तो अपनी बड़ी मां के पास जाकर दोनों भाइयों को राखी बांधी । उनको मिठाई खिलाकर बिना खाना खाए ही वापस जाने लगी । अपनी मां को कह गई । अब मैं ऐसे माहौल में तुम्हारे घर नहीं आऊंगी ।
यह सुनकर मां परेशान हो गई । उनकी बेटी क्या कह रही है । सच में जहां परिवार में एकाग्रता ना हो अपनापन ना हो प्यार ना हो तो वह परिवार ही नहीं । हरीश को तो घर का अलगाव सहन नहीं हो रहा । धीरे-धीरे वह बीमारी की चपेट में आ गया । दादाजी ने डॉक्टर साहब को दिखाया । उन्होंने बताया दो-चार दिन हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ेगा ।
कोई गहरा सदमा लगा है । घर में सभी परेशान । एक दिन रमिया अपने पति सास ससुर के साथ अपने पिताजी को देखने आई । इधर नरेश भी भाई की तबीयत का पता लगने पर उनको देखने अस्पताल आया । वहां भाई की ऐसी हालत देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए । इधर हरीश भी भाई को देखकर रो पड़ा । दोनों भाई गले लगा कर रो रहे थे ।
दादाजी ने दोनों को समझाया । घर में चार बर्तन होते हैं तो सब की ध्वनि आवाज अलग-अलग होती है । फिर भी एक साथ मिलकर अपना काम करते हैं । यह सब बातें चल ही रही थी इतने में रामू की मां भी पहुंच गई । भैया और भाभी के पांव पड़कर बोली मैं आप सबसे अपने करनी की क्षमा चाहती हूं । मेरे कारण ही राम जैसे भैया और सीता जैसी भाभी को इतना दुख पहुंचा ।
अपने सुखी परिवार को दुख दिया । मैं अपने किए व्यवहार के लिए खुद को जिम्मेदार मानती हूं । अपना कर्तव्य भूल गई । अपने किए व्यवहार से मैं बहुत पछता रही हूं । अपने किए व्यवहार के कारण मैंने सबको दुख दिया । जिसके कारण आप सबसे माफी मांगते हुए पछता रही हूं । अपने किए का प्रायश्चित कर रही हूं ।
आज मेरी बिटिया ने अपने पारिवारिक संस्कारों से मेरी आंखों का पर्दा हटा दिया । जिससे मैं प्रायश्चित कर रही हूं । आप सब मेरी गलतियों को माफ कर देंगे । शांति जी और रमिया ने उनको गले लगाया । सब खुशी-खुशी घर आ गए । सबसे पहले नरेश व रामू ने दूसरे चूल्हे को तोड़ा । कुछ समय बाद हरीश और रामू की शादी हो गई ।
दोनों बहुएं बहुत सुंदर सुशील व्यवहार कुशल है । 2 साल बाद छोटे-छोटे बच्चों की किलकारीयों से पूरा परिवार खुशहाल है । भाभी मैं अपने परिवार की खुशियों के लिये दिल से पछता रही हूं । या प्रयाश्चित कर रही हूं । एक दिन दादाजी ने बताया परिवार के विघटन की आदिकाल से जर जोरू जमीन मुख्य भूमिकाएं रही हैं । यही है प्रायश्चित
लेखिका
सरोजनी सक्सेना