माँ  बाप की इज्जत – रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’

बात बहुत पुरानी है ,मगर है सच ।आज से चालीस पैंतालीस साल पहले बेटियों की शिक्षा को कोई महत्त्व नही देता था ।खासकर मारवाड़ी समाज मे तो स्थिति और भी खराब थी । राजस्थान के छोटे से कस्बे में कैलाश शंकर जी अपनी दो बेटियों के साथ रहते थे ।बड़ी बेटी मंजुलिका का जब उन्होंने अंग्रेजी स्कूल में नाम लिखवाया तो सबने उनको टोका ।

“अरे लड़कियों को अंग्रेजी स्कूल में क्यों पढ़ाना? उनको कौन सा कलक्टर बनाना है ?” लेकिन कैलाश  शंकर  जी ने उनकी एक न सुनी । दो वर्ष पश्चात उन्होंने छोटी बेटी अरुणिमा का नाम भी उसी स्कूल में लिखवा दिया ।बच्चियां पढ़ने में होशियार थीं ।

 मंजुलिका का  बारहवीं का परीक्षाफल आ गया था ।घर मे खुशी का माहौल था ।आज से चालीस -पैंतालीस  साल पहले अट्ठावन उनसठ  प्रतिशत अंको को गुड सेकंड क्लास की श्रेणी में रखा जाता था ,और ये भी किसी उपलब्धि से कम नही आंकी जाती थी ।

दो तीन दिन बीते थे कि घर मे तनाव का माहौल बनने लगा ।कारण ..  

कैलाश  शंकर जी चाहते थे कि मंजुलिका  अब मेडिकल परीक्षाओं की तैयारी करें ।उधर उनकी पत्नी गीता का अपना तर्क था ।”अरे अपने मारवाड़ियों में लड़कियों को इतना कौन पढ़ाता है ? अब इसे घर का काम सीखने दीजिये ।अठारह बरस की हो गयी है,साल दो साल  में इसके हाथ पीले कर देने है।”

“अरे ,तुम्हे क्या जल्दी पड़ी है ।जमाना बदल रहा है  ।मुझे अपनी बेटी को अपने पैरों पर खड़ा करना है ।शादी तो जब संजोग होगा हो ही जाएगी ।” कैलाश शंकर जी उग्र स्वर में कहते । 




इसी बहसा बहसी में कैलाश शंकर जी  ने एक दिन मंजुलिका  को  कालेज का  फार्म भी लाकर पकड़ा दिया ।

“बेटा, ये ले बी. एस. सी का फार्म ।तू आगे पढ़ाई कर साथ मे प्रतियोगिता की तैयारी भी।”

समय बीतता गया ,मगर इसी के साथ गीता जी  को ताने और ताने सुनाने वालों की संख्या भी ।

“अरे, गीता की बेटी तो समझो हाथ से गयी ।”

“अपने समाज मे लड़कियों को कोई इतना पढ़ाता है क्या ?”

“हाँ ,और वो भी कालेज में लड़कों के साथ।”

सबकी बातें सुन सुन कर गीता जी दुखी होतीं पर कैलाश शंकर जी  के आगे उनकी एक न चलती ।

और एक दिन वो समय भी आया ,जिस दिन मंजुलिका  का  मेडिकल का रिजल्ट आया । शहर के ही मेडिकल कालेज में  उन्हें  दाखिला  भी मिल  रहा था ।

गीता जी  ने सुना तो संतोष की सांस ली ,”चलो ..लड़की आंख के सामने रहेगी ।”

मगर रिश्तेदारों में असंतोष फैल गया । अपने अपने तरकश से सबने व्यंग्य बाणों की बारिश शुरू कर दी ।




“अरे गीता ,तुम्हे तो अब लड़का ढूंढने की चिंता ही नही रही ।”

“और नही तो क्या ?अब तो यह  खुद ही ब्याह रचा लेगी ।तुम्हारे तो शादी के खर्चे भी बचे।”

“अरे, इसे कौन सा हल्दी मेहंदी करवाना है ।”

उधर  कुछ सालों बाद अरुणिमा का  दाखिला  इंजीनियरिंग में हो गया तो गीता जी बेहद तनाव में रहने लगीं ।

“हे भगवान मेरी बेटियां मेरी नाक न कटवा दें।”

ऐसा नही था कि कैलाश शंकर जी इन बातों से अनभिज्ञ थे ।गीता जी  जब जब उन्हें लोगों के ताने बताती वो उनसे  से उन्हें अनसुना करने को कहते ।

उधर मंजुलिका को एक  डॉक्टर लड़के की तरफ से  विवाह प्रस्ताव मिला ।मंजुलिका भी उसे पसंद करती थी ।मगर जब जब वो अपने प्यार के बारे में सोचती उसकी आँखों के सामने माँ का चेहरा आ जाता ।

माँ ,यानी गीता जी  को मंजुलिका ने इतने वर्षों में न जाने कितने मंदिरों में दीप जलाते और   धागे  बांधते देखा था ।

हर जगह  उनकी मन्नत सिर्फ एक होती …

“हे ईश्वर मेरी बेटियां  मेरी इज्जत रख लें ।”




और फिर मंजुलिका अपने दिल के दरवाजों में प्यार नाम की आंधी को प्रवेश करने से रोक लेती ।

और अंत मे वो दिन भी आया जब मेडिकल की डिग्री मंजुलिका  के  हाथ मे थी ।

कैलाश शंकर जी  के पैर तो मानो जमीन पर नही पड़ रहे थे । 

संजोग देखिये …मंजुलिका  की  शादी  उसी शहर में एक सजातीय डॉक्टर से हो गयी और ईश्वर की कृपा से  दोनों की प्रैक्टिस अच्छी चलने लगी ।

फिर …

फिर , जब  तब  रिश्तेदारों और परिचितों के फोन  कैलाश शंकर जी के पास  आने लगे  ।”भाई साहब बहु की तबियत खराब है । बिटिया को  दिखाना था ,जरा क्लिनिक में फोन कर देते।”

या ….

“दामादजी के यहां तो बहुत भीड़ होती है ,आप एक फोन कर देंगे तो बिना नम्बर हमको देख लेंगें।

तो कैलाश शंकर जी मुस्कुराकर गीता जी को देखते और पूछते ..

“हाँ ,तो फलाने ने उस समय तुमको क्या क्या ताना दिया था गीता ?”

गीता जी  भी सिर्फ मन ही मन मुस्कुरा देतीं ।

आज जब लोगों के मुंह से बेटियों की प्रशंसा सुनती है तो मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देना नही भूलती जो उनकी बेटियों ने उनके मान सम्मान को ठेस नही लगने दी ।




और इधर लड़कियां भी अपने बच्चों से यही कहती हैं कि जीवन मे जो चाहे हासिल करो मगर अपने माँ बाप की इज्जत की कीमत पर नही ।

रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’

गोरखपुर

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