प्रायश्चित के आंसू – विनती झुनझुनवाला : Moral Stories in Hindi

अपने बेटे को कैसे पालना है ये मुझे आपसे सीखने की जरूरत नहीं है जब वैभव ने थोड़ा जोर से कमल जी से कहा तो नन्हा सा अंश सहम कर अपनी मम्मी की गोद में जा छुपा, अपने पापा को दादा जी पर गुस्सा करते हुए देख कर वो बहुत डर गया था। गरिमा ने पुचकार कर उसे तो शांत करा दिया लेकिन गरिमा के दिल और दिमाग में उथल पुथल मची हुई थी।

वैभव एक जिम्मेदार पिता था,अंश की परवरिश में गरिमा को पूरा सहयोग करता था लेकिन हल्का अनुशासन भी बनाए रखता था साथ ही अंश के साथ खेलता और उसकी बाल जिज्ञासा को भी शांत करता था, लेकिन जितना नजदीक वो अपने बेटे से था उतना ही दूर अपने पिता से था, दोनों के बीच बातें ना के बराबर होती थी,

कमल जी कुछ पूछते तो वैभव संक्षिप्त उत्तर देता और वहां से उठ कर चला जाता, गरिमा ने आज तक वैभव को सामने से कमल जी से बात करते नहीं देखा था अगर उसे उनसे कुछ कहना होता तो  मां या गरिमा के माध्यम से ही बात होती, गरिमा को अजीब लगता लेकिन कुछ कहती नहीं,पर आज वैभव का गुस्सा देखकर उसने कारण जानने का निश्चय किया

और अपनी सासू मां राधा जी की तरफ सवालिया निगाहों से देखा, राधा जी जानती थीं कि एक न एक दिन गरिमा को सब बताना पड़ेगा, वैभव और कमल जी ने तो अपने आप को कमरों में बंद कर लिया था,सास बहू अकेली ही बैठी थी।

राधा जी ने बोलना शुरू किया बहू जब मेरा विवाह तुम्हारे पापा जी से हुआ तो उनका परिवार गांव में रहता था, वो परिवार के बड़े बेटे थे और शहर में नौकरी करते थे मुझे तुम्हारे दादा दादी ने उनके साथ नहीं भेजा ये बोल कर की बड़ी बहू है सबका ख्याल रखना इसकी जिम्मेदारी है, तुम्हारे ससुर जी चार पांच महीने में कुछ दिन के लिए आते ,

माँ सब देखती हैं – विभा गुप्ता

वक्त ऐसे ही बीतने लगा और फिर वैभव पैदा हुआ, परिवार का पहला बच्चा वो भी लड़का सब ने उसे हाथों हाथ लिया, बच्चा एक और खिलाने वाले कई लोग थे, ज्यादा लाड़ प्यार से वैभव थोड़ा जिद्दी हो रहा था,तुम्हारे ससुर जी कुछ ही समय के लिए आ पाते थे और उसमें भी वो वैभव को खिला नहीं पाते थे, गांव परिवार में कुछ ऐसा ही चलन था यदि पिता अपने बच्चों से लाड लडाए तो घर के बड़ों को लगता अगर

अपने बच्चों के मोह में पड़ गया तो परिवार की मदद नहीं करेगा इसलिए अक्सर बच्चे को पिता से दूर ही रखते फिर भी कभी गोद में उठा लिया तो फौरन मां बोल देती क्या देख रहा है हम ध्यान नहीं रखते हैं क्या तेरे लल्ला का? , तेरे ही कोई अनोखा हुआ है क्या जो तुझे सम्हालना पड़ रहा है ला दे हम देख लेंगे और उन्हें मजबूरन उसे छोड़ना पड़ता, वक्त तो वक्त है ऐसे ही बीत रहा था वैभव चौदह साल का हो रहा था

,अब तक सब चाचा,बूआ के बच्चे हो चुके थे, मुझे भी एक बेटी माला हो चुकी थी, वैभव चाचा के बच्चों को अपने पिता के साथ खेलते, बाजार जाते देखता तो उसका दिल बहुत दुखता, वो भी अपने पापा के साथ समय बिताना चाहता था लेकिन तुम्हारे पापा जी जब आते पूरा परिवार उन्हे घेरे रहता, उन्हें बहुत कम समय ही मिलता और देखते ही देखते वापस जाने का टाईम आ जाता,

गरिमा ने कनखियों से देखा वैभव पानी पीने किचन की तरफ जा रहा था, जानबूझ कर उसने उसे अंश को संभालने को इशारा किया, राधा जी ने उसे नहीं देखा और आगे बताने लगी,उस शाम खेलते हुए बच्चों में झगड़ा हुआ और वैभव ने पड़ोसी के बच्चे का बैट तोड़ दिया, अपने पापा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उसने ग़लत कदम उठाया।

पिता का ध्यान तो नहीं मिला बल्कि चाचा की मार जरूर मिली, संयुक्त परिवार में ग़लती पर कोई भी सजा दे देता था लेकिन वैभव का किशोर होता मन अपने पापा के सामने चाचा की मार पर बगावत कर बैठा ,उस रात वैभव बिना खाये रोते हुए सो गया और हम दोनों में से भी किसी ने खाना नहीं खाया , उस दिन पहली बार मैंने तुम्हारे ससुर जी की आंखों में पानी देखा,उसी दिन उन्होंने एक बड़ा फैसला लिया। शहर जा कर घर की व्यवस्था करी और अगली बारी जब आए तो अपने पिता से बात कर हमें अपने साथ लिवा लाए।

” अपना अपना स्वार्थ ” – डॉ. सुनील शर्मा

दादाजी ने आसानी से आप लोगों को आने दिया? आश्चर्य से गरिमा ने पूछा, नहीं रे उन्होंने आधी तनख्वाह गांव भेजने के वादे पर ही हमें शहर आने की इजाजत दी थी खैर हम शहर तो आ गये लेकिन जिंदगी आसान नहीं थी नई गृहस्थी ऊपर से दो बच्चों की पढ़ाई का खर्च और कमाईं आधी , धीरे धीरे ही सही जिंदगी पटरी पर आ रही थी

लेकिन वैभव और तुम्हारे ससुर जी के बीच दूरी नहीं घट रही थी, पैसों की तंगी के कारण हम अक्सर खेल के सामान और अन्य मनोरंजन के साधन नहीं जुटा पाते थे और वैभव उस कच्ची उम्र में परिस्थिति समझने में नाकाम था और उसका अपने पिता के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था, अक्सर छोटी छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता, उसके पापा जी

तोड़ मेहनत करते परिवार की जरुरतों को पूरा करने के लिए इस लिए घर में समय कम ही दे पाते थे, जब तक आर्थिक स्थिति ठीक हुईं वैभव पढ़ने के लिए बाहर चला गया , बाहर क्या गया जो थोड़ी बहुत नजदीकियां थी वो भी खत्म हो गई,वहां से वो सिर्फ मुझसे और माला से बात करता पापा का हाल चाल मुझसे पूछता जरूर लेकिन जब वो फोन पर आते तो वैभव फोन काट देता और इस तरह पिता पुत्र के बीच दूरी जस की तस रह गई।

                गरिमा ने सरसरी निगाह वैभव और अंश की तरफ डाली और उसे लगा जैसे वैभव सब सुन रहा है केवल फ़ोन हाथ में लेकर ना सुनने का दिखावा कर रहा है और उसके दिमाग में एक विचार कौंधा , वो बोली मम्मीजी लेकिन पापाजी तो वैभव की पसंद की बहुत ख्याल रखते हैं अक्सर बाजार से उसके पसंद के फल सब्जियां और मिठाइयां लाते ही रहते हैं

इसपर राधाजी ने कहा बेटा वो उनके जिगर का टुकड़ा है,बेटा बाप से नाराज़ रह सकता है पर एक पिता अपने बच्चों से नाराज़ हो तो सकता है लेकिन नाराज़ रह नहीं सकता , माता पिता तो अपने बच्चों की नाराज़गी झेल कर भी सदा उनका भला चाहते हैं । 

कुछ सोच कर गरिमा ने वैभव की तरफ देखते हुए कहा, मम्मीजी ना जाने आपने और पापाजी ने कैसे ये सब सहन किया होगा ,मैं तो सोच भी नहीं सकती कल को अगर अंश वैभव से बात ना करे तो वैभव क्या करेंगे और मैं कैसे रहूंगी।

अपने पन की महक – ऋतु गुप्ता

खट की आवाज से वैभव का मोबाइल जमीन पर गिर पड़ा और गरिमा समझ गई तीर निशाने पर लग गया है…. वैभव  आंखों में #प्र्याश्चित के आंसू लिए अपने पिता के दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था।

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विनती झुनझुनवाला

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