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पराया धन – बालेश्वर गुप्ता

बाय बाय – माइ सन-

अपने ही घर के दरवाजे से अपने अपंग बेटे को अपनी पीठ पर लादे राजेश हाथ हिलाकर अपने दूसरे बेटे से सदा के लिए विदा ले रहा था. पर सामने तो कोई था ही नही, बेटा तो अपनी पत्नि और बच्चो के साथ घर के अंदर था, उसे  अपने 76 वर्षीय पिता को अपने ही अपंग भाई के साथ घर छोड़ने पर कोई अन्तर नहीं पड़ रहा था.

     राजेश ने अपनी कमीज की आस्तीन से आँसू पूछे और फिर बुदबुदा कर कहा, गुड बाय माइ सन -.

       जयपुर की पॉश कॉलोनी में यह फ्लेट राजेश ने ही अपने बेटे सनी को उपहार स्वरुप एक कार के साथ दिया था. राजेश के पास पैसे की कोई कमी नही थी, पर सांसो की कमी थी. उम्र 76 वर्ष की हो चुकी थी और जन्म से ही एक बड़ा बेटा शारीरिक रूप से पूर्ण अपंग था, जिसका सबकुछ राजेश और उसकी पत्नि ही करते थे. एक साधारण से ऑपरेशन में पिछले वर्ष ही पत्नि ने जीवन साथ छोड़ दिया. झूठ कहते हैं शास्त्र कि पति पत्नी का साथ सात जन्मों का होता है, बताओ तो फिर मेरी पत्नि मुझे एक ही इसी जन्म में बीच मझधार में क्यूँ छोड़ गयी, इस विकलांग का भी ख्याल नहीं किया, सोचते सोचते राजेश फफक फफक कर रो पड़ा.

      आज जब राजेश घर छोड़ रहा था तो उसका मन स्वीकार कर ही नही पा रहा था कि सनी उसके साथ ऐसा उपेक्षित व्यवहार करेगा. सब कुछ उसी का तो था. राजेश सोच रहा था जब घर उसको दिया हम भी साथ ही रह रहे थे फिर धोखे से घर अपनी पत्नि के नाम क्यूँ कराया और ये भी कराया सो कराया पूछने पर इतना भारी अपमान अपने उस बूढे बाप का जिसके सामने वो कभी आंख उठा कर बोला भी नहीं था. सब कुछ अप्रत्याशित. कहाँ कमी रह गई मेरी परवरिश में?




      राजेश भारी मन से अपने पुराने मकान में अपने अपंग बेटे को लेकर चला जाता है. बूढ़ा शरीर साथ में अपंग बेटा, कैसे घर चला पायेगा, क्या नौकरों के साथ जीवन कटेगा? सनी से अलग हुए एक रात में ही राजेश शायद 76 के बजाय 80 वर्ष का हो गया था.

        आज उठने का मन भी राजेश का नहीं हो रहा था कि एक चहकती सी जानी पहचानी आवाज कानो में पड़ी, दरवाजे खुले थे, किनके लिये बंद होते. अरे अन्नू तुम – – – कैसे आ गयी मेरी बच्ची, तुम्हें कैसे पता लगा, मैं यहाँ हूँ?

      पापा तुमसे मिलने ही तो आयी थी, तब पता लगा. पापा क्या अपनी इस बच्ची को अपने साथ रहने का हक दोगे पापा? मैं और आशीष यहीं रहना चाहते हैं आपके पास अपने भाई के पास. मना तो नहीं करोगे पापा, प्लीज पापा.

     राजेश एक बार फिर फफक पड़ा, आँखों में आँसू, हाथ बेटी के सिर पर रख राजेश सोच रहा था वो मेरे पास रहने की गुहार कर रही थी, मेरे बुढ़ापे और भाई की अपंगता को शेष जीवन भर ढोने के लिए, वो भी मेरे स्वाभिमान को रखते हुए.

     क्या कहूँ इस रिश्ते को – क्या पराया धन????

       बालेश्वर गुप्ता

                   पुणे (महाराष्ट्र)

मौलिक, अप्रकाशित

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