*जहाँ चाह, वहाँ राह* – सरला मेहता

” माँ ! तुम क्यों चली गई, हम सबको छोड़कर। दादी भी थक जाती है, दादू की सेवा टहल करते। पापा हम सबके ख़ातिर नई  बिंदु माँ ले आए हैं। पर उन्हें अपनी बेटी कुहू से ही फ़ुर्सत नहीं। तुम्हीं बताओं मैं क्या करूँ ? ” यूँ ही माँ से अपना दुखड़ा सुनाते कुणाल सो गया। उसे सपने ने याद दिलाया कक्षा में पढ़ाया पाठ,कैसे नेत्रहीन पृथ्वीराज चौहान, ” चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण; ता पीछे सुल्तान है, मत चूको चौहान ” सुनकर ही अपना लक्ष्य साध लेते हैं। उसे भी हौंसला रखना चाहिए।

सुबह दादी ने उठाया तो एक नई आशा से भरा हुआ था।  उसके सपनों को और उड़ान मिल गई जब उसने माँ के लगाए गुलमोहर को देखा। कुछ वर्षों में ही वह पूरे घर को सुकून भरी छाँव देने लगा। बारह साल का बच्चा एक ज़िम्मेदार व्यक्ति बन गया।

जल्दी से सबके लिए अदरक की चाय बना वही घन्टी दबा दी जो कभी माँ बजाया करती थी। दादी की पूजा सामग्री सजा महाराजिन को नाश्ते का समझा स्कूल की तैयारी में जुट गया। नन्हीं कुहू, मम्मा से छुपती छुपाती अपने भय्यू से मिलने आ गई, चॉकलेट जो चाहिए थी

       कुणाल स्कूल से सीधा पापा की मदद को दुकान पर पहुँच गया। पापा ने आश्चर्य से पूछा, “बेटा, इस समय,,,।” कुणाल हँसते हुए बोला, “आज बाप बेटे एक साथ लंच करेंगे।” तभी भोला काका टिफ़िन ले आए।

कुणाल पापा का हाथ बटाने लगा है। अपनी व कुहू की पढ़ाई की ओर भी ध्यान देता है। अब तो सी ए कर रहा है।

     घर आया तो दादी को उदास देख सोचने लगा कि माँ ने फ़िर कुछ कहा होगा। वे आए दिन दिन सबको परेशान करती रहती। सास ससुर के लिए पापा से कह चुकी हैं, ” इन्हें किसी आश्रम में भेज दो, चैन मिले।” पापा के पैसे से ही उन्हें मतलब था। भुआ आदि किसी रिश्तेदार से सीधे मुँह बात नहीं करती। कुणाल ने ठान लिया वह विमाता को माता बना कर ही रहेगा। पापा समझाते, “बेटा, तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। कुत्ते की पूँछ कभी सीधी नहीं होती।” कुणाल का जवाब था, ” पापा, कोई कार्य असम्भव हो सकता है, नामुमकिन नहीं। आप  मेरे लिए पीछे की खाली ज़मीन पर एक हॉल लेट बाथ सहित बनवा दीजिए।” पापा बोले , “बस इतनी सी बात, आज से ही श्रीगणेश कर देते हैं। क्या अपना ऑफिस खोलने का विचार है। फर्नीचर भी पसन्द कर लेना।”

हॉल बनकर तैयार है। बस सामान वगैरह सेट करना है।

एक दिन कुणाल पापा से पूछता है, “क्यों न हम बिंदु माँ के माँ बाबा को वृद्धाश्रम से अपने घर ले आएं।”

और सचमुच कुणाल उन्हें  सादर घर ले आया। हॉल में चार व्यक्तियों के सोने रहने के लिए सब सामान कुणाल ने कब सजा लिया, किसी को कानोकान खबर नहीं।  बिंदु भाव विभोर हो रोने लगी, ” अरे आप यहॉं, कैसे हैं आप दोनों ? “

वे बोले, ” हमारा तो तुम्हारे बेटे ने उद्धार कर दिया। लेकिन तुम क्या करने जा रही थी ?”

सरला मेहता

इंदौर

स्वरचित

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