पहिला उछाव मोरे राम के बिआह, गीत गुनगुनाते हुए रचना जी रसोईघर मे काम कर रही थी। तभी उनके पति सुबह की सैर करके आए और उन्हें रसोईघर मे गुनगुनाते हुए काम करते देखकर खुश होते हुए बोले, आज बड़ी ख़ुश लग रही हो कामवाली के आने के पहले ही चाय चूल्हे पर चढ़ गईं है। क्या आज कामवाली नहीं आएगी?
आएगी पर मैंने सोचा आज आपके लिए मै ही चाय बना दूँ। सही समझा आपने सही मे आज मै बहुत ख़ुश हूँ। रचना जी ने अपनी ख़ुशी व्यक्त किया। इतनी ख़ुश किस बात से हो, बता दो तो मै वह काम रोज़ ही कर दूँ। इसी बहाने कम से कम मुझे तुम्हारे हाथ की बनी चाय तो मिल जाएगी, वरना रोज़ रोज़ कामवाली के हाथ का चाय नाश्ता से तो एकदम बोर हो गया हूँ।
तुम्हारे हाथ की चाय की बात ही अलग है आकाश जी ने चुटकी लेते हुए कहा।बात ख़ुशी की है तो खुश हूँ, रचना जी ने मुस्कुराहट भरे अंदाज मे कहा। अब पहेलिया मत बुझाओ। साफ साफ बताओ ज़रा मै भी ख़ुश हो लू। वैसे तो तुम्हे ख़ुश देखकर ही मै खुश हूँ।आज कितने वर्षो बाद रचना जी को ख़ुश देखकर आकाश जी भी बहुत खुश थे, वरना घर मे हर समय उदासी छाई रहती है।
कामवाली आकर नाश्ता खाना बना जाती है रचना जी बस समय पर उसे परोस देती है। बातचीत भी काम भर ही होती है।पहले जब आकाश जी ऑफिस जाते थे तो तो कभी कामवाली के देर करने पर रचना जी कुछ बना भी देती थी पर रिटायरमेंट के बाद तो वह भी बंद हो गया। कामवाली आएगी तो खाना बनेगा नहीं तो बिस्किट खाओ या चना चबेना चबाओ पर रचना जी कुछ नहीं बनाएगी।
रचना जी ख़ुश थी गुनगुना रही थी, पहले चाय बनाकर लाई फिर नाश्ता भी बनाया।पर किस बात से खुश है यह आकाश जी को नहीं बताया। आकाश जी इसी बात से ख़ुश थे कि रचना जी ख़ुश है और किसी बात से उन्हें मतलब नहीं था। पचहतर वर्ष के आकाश जी और सत्तर वर्ष की रचना जी दोनों बृद्धदम्पत्ति अकेले रहते है।
व्यवस्थित जिंदगी है ।घर मे नौकर चाकर लगे है । इनके दिनचर्या मे साल मे एकबार खलल पड़ता है , जब बेटी दामाद बच्चो के गर्मी की छुट्टी मे इनसे मिलने आते है । उनके आने से रचना जी ख़ुश होती है,पर आज जैसी ख़ुशी उनके चेहरे पर थी वह एकदम अलग थी। आकाश जी उनकी ख़ुशी देखकर पचास वर्ष पीछे चले गए, जब उनकी नई नई शादी हुई थी।
रचना जी तब ऐसी ही थी हमेशा हँसते मुस्कुराते रहना उनकी आदत मे शामिल था। कभी कभी आकाश जी की माँ उन्हें डांट देती थी तब भी वे बुरा नहीं मानती थी और कहती थी कि माँ जी की बातो का बुरा क्या मानना, गलती करने पर मेरी माँ भी तो डांटती थी, गलती सुधार लो बात खत्म। उनके इसी आदत के कारण उनकी सास उन्हें बहुत प्यार करती थी और कहती थी कि मेरी बेटी की कमी बहू ने पूरी कर दी है।
सोचते सोचते आकाश जी को याद आया कि अगले माह हमारी पचासवीं वैवाहिक वर्षगांठ है, कही इसी कारण तो यह इतनी ख़ुश नहीं है, पर दिमाग़ ने तुरंत इस सोच को हटा दिया, इससे इतनी ख़ुश नहीं होंगी, बात कुछ और ही है। आज आकाश जी को सारी पुरानी बाते याद आ रही थी कितनी मिलनसार थी रचना जी अपने देवर ननद नहीं थे,
पर उन्होंने रिश्ते के देवर ननद को भी खूब प्यार और सम्मान दिया था, वे भी भाभी भाभी कहते नहीं थकते थे। पर आकाश जी एकलौते होने के कारण बहुत जिद्दी थे। गुस्सैल तो नहीं थे पर जो वे कह देते थे उससे पीछे नहीं हटते थे चाहे इसके लिए उन्हें कोई क़ीमत चुकानी पड़े। असल बात थी कि उनके पिता का देहांत बहुत पहले हो गया था।
उस समय आकाश जी की उम्र कम थी। उनकी नई नई नौकरी लगी थी इसलिए पैसो की तो तंगी नहीं हुई पर उनके उपर पिता का साया नहीं होने के कारण घर का हर फैसला वही लेते थे रोकने टोकने वाला कोई नहीं था इसलिए कोई उनकी मर्जी के विरुद्ध कोई काम करे तो वे बर्दास्त नहीं कर पाते थे। माँ और पत्नी उनकी मर्जी से चलती थी तो उनकी जिंदगी मजे मे चल रही थी।
कुछ दिनों बाद एक बेटा हुआ। माँ तो पोता को देखकर इतना निहाल हुई की उन्हें तो पोता के आलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था।थोड़े दिनों बाद एक बेटी भी हुई।दोनों बच्चे प्यार से पलने लगे। देखते देखते बच्चे बड़े हो गए। विकास का नाम आई आई टी मे लिखा गया। इक्कीस वर्ष होते होते डिग्री पूरी हो गईं. एक बड़ी कम्पनी मे नौकरी भी लग गईं।
नौकरी लगने के बाद उसने बताया की वह अपने साथ पढ़ने वाली जो कि अब उसी के साथ नौकरी भी करती है वह उसे पसंद करता है और उसी से विवाह करेगा। एक तो आकाश जी को घर मे किसी और का फैसला लेना पसंद नहीं था उसपर लड़की विजातीय भी थी तो उन्होंने विवाह से साफ इंकार कर दिया। बेटा ने बहुत मनाने की कोशिश की पर वे टस से मस नहीं हुए।
लड़का ने उनके मर्जी के खिलाफ जाकर कोर्ट मैरेज कर लिया। इस बात से गुस्सा होकर उन्होंने बेटे से रिश्ता तोड़ लिया।इस सदमे से विकास की दादी की मृत्यु हो गईं।अपनी माँ के मरने का सारा दोष बेटा पर लगाते हुए उन्होंने कहा कि आज से तुम माँ बेटी मे से कोई उससे रिश्ता रखोगी तो उसे मुझसे रिश्ता तोड़ना होगा।
रचना जी ने बेटा से तो रिश्ता नहीं चलाया पर उसी दिन से यह कहकर कि बहू साथ रहे या ना रहे मै सास बन गईं हूँ और हमारे यहाँ बहू के आने के बाद सास रसोई का काम नहीं करती है तो अब से मै भी नहीं करूंगी। आकाश जी को रचना जी के द्वारा बनाया खाना बहुत पसंद था तो उन्होंने अपने तरीके से आकाश जी को उनकी जिद की सज़ा दें दी।
विकास घर छोड़ कर क्या गया, रचना जी का हँसना मुस्कुराना भी उसके साथ चला गया। आज वर्षो बाद रचना जी मुस्कुरा रही है तो बात तो कुछ विशेष ही होंगी, यह बात तो आकाश जी को समझ आ गईं थी पर बात क्या है यह समझ नहीं आ रहा था। इस घटना को बीते अब छब्बीस वर्ष हो गया था। इस बीच उन्होंने अपनी बेटी का विवाह भी कर दिया।
लडके वालो को उन्होंने विकास के बारे मे नहीं बताया था। उनसे कहा था कि हमारी एक बेटी ही है। आकाश जी अपनी सोच मे पता नहीं अभी कितनी देर तक डूबे रहते पर उनकी सोंच मे विराम लगाते हुए रचना जी ने कहा क्या सोच रहे है,नहाना नहीं है, जाइए जल्दी से नहाकर आइये, नाश्ता ठंडा हो रहा है।रचना जी की आवाज सुनकर लगा जैसे आकाश जी नींद से जगे और बोले कुछ कहा क्या तुमने?
जाइये नहाइये। ठीक है जाता हूँ। जब वे नहाकर कर आए तो देखा कि बेटी दामाद बच्चो संग आए है। अभी गर्मी की छुट्टी नहीं थी इसलिए उन्हें आश्चर्य भी हुआ पर उन्होंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हुए पूछा कैसे हो सब? सभी ने उन्हें प्रणाम किया और वे सभी नाश्ता के साथ बातचीत करने लगे।
नाश्ता खत्म होने के बाद रचना जी सभी को खीर लाकर दी और जब आकाश जी को देने लगी तो वे हँसते हुए अपनी बेटी से बोले आज पता नहीं तुम्हारी माँ किस बात पर इतनी खुश है कि मुझे भी खीर दें रही है वरना मेरे तो खीर देखने पर भी पाबंदी है कही शुगर ना बढ़ जाय। पापा आप सही कह रहे है हमें भी यही कहकर बुलाया है कि एक खुशखबरी देनी है बेटी ने भी पापा के हाँ मे हाँ मिलाते हुए कहा।
आकाश जी ने मज़ाकिया अंदाज मे रचना जी से कहा आपका सस्पेंस कब खत्म होगा? खुशखबरी बता भी दीजिये नहीं तो आपके पेट मे दर्द होने लगेगा। बताती हूँ,बताती हूँ थोड़ा धीरज धरो रचना जी ने यह कहते हुए अपने दामाद की तरफ देखा और कहा आपको एक बात बतानी है, सुनकर आप चौकेंगे, हो सकता है आपको बुरा भी लगे, पर मैंने सोच लिया है कि आज मै किसी की नाराजगी की परवाह नहीं करूंगी।
थोड़ा रुककर फिर उन्होंने अपनी बेटी से कहा तुम यह फैसला कर लो कि किसका साथ दोगी। आकाश जी और उनकी बेटी सोचने लगे कि आज यह ऐसा क्या कहने वाली है जो उसके लिए इन्हे इतनी भूमिका बनानी पड़ रही है। रचना जी ने फिर अपने पति से कहा – मै खुश हूँ और ख़ुश रहना भी चाहती हूँ।
मै माँ जी की तरह घुट घुट कर मरना नहीं चाहती इसलिए मैंने आज फैसला किया है कि मै आपकी बात नहीं मानकर अपने मन का करूंगी। आकाश जी ने बीच मे टोकते हुए कहा अपने मन का करोगी, यह तो ठीक है पर क्या करोगी यह भी तो बताओगी? हाँ बता रही हूँ आप सुनिए तो सही। कल विकास का फोन आया था।
यह सुनते ही आकाश जी को धक्का सा लगा। कह रहा था कि अगले माह हमारे शादी वाले दिन को ही उसने हमारे पोते का विवाह करने का निश्चय किया है। उसने आपसे, मुझसे और विमला से विवाह मे आने के लिए विनती की है और मैंने भी उससे कह दिया है कि मै तो जरूर आउंगी, तुम्हारे पापा और बहन को भी विवाह का समाचार दें दूंगी,
आना नहीं आना उनकी मर्जी। आपकी जिद के कारण बेटे की शादी के मेरे सारे अरमान धरे के धरे रह गए। अब पोते की शादी मे अपने सारे अरमान पुरे करूंगी। पोता को मौरी से सजाकर दूल्हा बनाउंगी। उसका बारात साजकर विदा करूंगी। सारे रिश्तेदारों को न्योता भेजकर बुलाऊंगी, सब को विवाह के बाद आदर सम्मान के साथ विदा करूंगी।
मैने अपनी बहु को तो परीछ कर नहीं उतारा पर पोता बहु को जरूर उतारूंगी। उसे अपना आशीर्वाद जरूर दूंगी। अब आप दोनों तय कर लो कि आपको क्या करना है, यह कहकर रचना जी चुप हो गईं। दामाद और बच्चे तो समझ ही नहीं पा रहे थे कि बात क्या हो रही है। विमला ने अपने पति और बच्चो को सारी बात बताई।
वे यह सुनकर कि बच्चो के एक मामा है और उनके बेटे का विवाह है बहुत ही ख़ुश हुए। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद आकाश जी ने कहा तुम खुश रहो, मुस्कुराती रहो, मुझे तो अब सिर्फ यही चाहिए। छब्बीस वर्ष से तुम्हारी उदासी को झेलते झेलते अब मै बहुत थक चूका हूँ, तुम जिसमे खुश रहो अब इस घर मे वही होगा।
पिता की बात सुनते ही विमला ने ख़ुश होते हुए कहा माँ विवाह तो एक महीना बाद है, तब तक मुझे बेचैनी लगी रहेगी इसलिए माँ मुझे वह नंबर दे दो जिससे भैया ने फोन किया था मै उससे बात कर के उसे बताउंगी कि हम सभी विवाह मे आ रहे है। विवाह की तैयारी कैसी चल रही है वह भी पूछूंगी अपने बारे मे बताउंगी
अपने बच्चो के बारे मे बात करूंगी आखिर कितने दिनों बाद मेरे भतीजे का विवाह हमारे घर को जोड़ने वाला शुभ विवाह बन रहा है। और हाँ जल्दी से तैयार हो जाओ बाजार चल कर गहने खरीद कर लाते है। दो दो बहुओं को एक साथ मुँह दिखाई देनी है।
दामाद ने भी हँसते कहा दो क्यों तीन उपहार लेने है माँ भी तो उस दिन दुल्हन बनकर अपने विवाह की पचासवीं वर्षगांठ मनाएगी।सभी ने कहा सच है, और रचना जी विवाह का गीत गुनगुनाते हुए उठकर खाना की तैयारी करने रसोई घर मे चली गईं।
लतिका पल्लवी
विषय – शुभ विवाह