पिता का उपहार – बेला पुनीवाला

    एक दिन  राधिका के लिए बहुत अच्छा रिश्ता आया था, इसलिए राधिका के मना करने के बावजूद भी उसके पापा ने उसकी शादी तय कर दी। राधिका ने अपने पापा को कहा, 

राधिका : अभी तो मेरा b.com भी कम्पलीट नहीं हुआ, कॉलेज का आख़री साल ही चल रहा है, सिर्फ़ 6 महीने ही बाकि है b.com  कम्पलीट करने में। मेरी पढाई ख़तम होने के बाद हम शादी के बारे में सोचेंगे, लेकिन अभी तो बिलकुल नहीं। 

    मगर राधिका के पापा नहीं माने सो नहीं माने। उनका कहना था, 

पापा : अच्छा घर और अच्छे लड़के का रिश्ता हाथ से जाने नहीं देते। मैंने लड़के वालेा को बता दिया है, वो लोग तुमको आगे पढ़ना हो तो पढ़ने भी देंगे। उनको इस बात से कोई दिक्कत नहीं है। देखो बेटी, आज या कल शादी तो करनी ही है, तो आज क्यों नहीं ? 

     राधिका ने फ़िर भी बहुत मना किया, मगर राधिका के पापा ने आख़िर राधिका को समझा-बुझाकर  शादी के लिए मना ही लिया और राधिका की शादी राजेश नाम के लड़के से हो गई, जो एक बहुत बड़ा बिज़नेसमेन था।  

      राधिका के पापा ने राधिका की बिदाई के वक़्त एक छोटा सा डेकोरेट किया हुआ बक्सा राधिका को देते हुए कहा, 

पापा : ” ये मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए शादी का उपहार है, या इसे मेरा आशीर्वाद ही समझ लेना और इसे कल सुबह खोल के देखना। “

        राधिका ने शादी के दूसरे दिन सुबह नहा धोकर वो बक्सा खोला, जिसमें सिर्फ़ एक चिठ्ठी थी और वो चिठ्ठी राधिका के पापा ने लिखी थी राधिका के लिए, 

     उस चिठ्ठी में लिखा था, कि ” राधिका बेटी, इस वक़्त तू मुझे बहुत बुरा समझ रही होगी, कि तुम्हारी मर्ज़ी के बिना  मैंने तुम्हें समझा बुझाकर तुम्हारी शादी करवा दी।  मगर मैं भी क्या करता बेटी, दुनिया के आगे मैं भी तो लाचार हूँ, मुझे तुम को दुनिया की बुरी नज़रों से बचाना जो था, इस दुनिया में लोग इतने अच्छे नहीं जितने हम उन्हें समझ  रहे है, तुम्हारे साथ कहीं कोई गलत ना करे, ये डर मुझे हर पल सताए रहता और फ़िर तुम तो मेरी गुड़िया बेटी हो, तुम्हारे साथ ऐसा कुछ भी हो ये मैं नहीं देख पाता, इसीलिए तुम्हारी ही सुरक्षा के लिए मैंने तुम्हारी शादी करवा दी, मगर तुम फ़िक्र मत करना, क्योंकि राजेश बहुत अच्छा लड़का है, वो तुम को बहुत खुश रखेगा, मगर उसके लिए तुम्हें भी उसे प्यार और सम्मान देना होगा। 



       और मेरी ये बात ज़रूर याद ऱखना, कि अब तुम्हारे माँ-पापा हम नहीं, बल्कि तुम्हारे सास-ससुर ही है, उनको ही अपने माँ-पापा समझकर उनकी सेवा करना, अपने देवर और ननद को अपने छोटे भाई और बहन ही समझना, घर के नौकर के साथ भी अच्छा व्यवहार करना, क्योंकि जिस तरह उन्हें हमारी ज़रूरत है, उसी तरह हमें भी उनकी उतनी ही ज़रूरत है। उनके बिना भी हमारा सारा काम अधूरा ही है। 

    अपने पति को तुम ही इतना प्यार और सम्मान देना, ताकि उसे कहीं ओर प्यार के लिए जाना ही ना पड़े और घर में सब का दिल भी जीत लेना।

       और हाँ, इतना ज़रूर याद ऱखना, कि तुम्हारे साथ-साथ हमारे दिए हुए संस्कार और इस घर की इज़्ज़त भी तुम्हारे साथ उस घर जा रही है, जो तुमको अपने उस घर में भी बरक़रार रखनी है, तुम्हारी ख़ुशी में ही सब की ख़ुशी है, अगर तू खुश रहेंगी, तो ही तुम्हारे घरवाले भी खुश रहेंगे, और तुम उनको भी ख़ुशी दे पाओगी। 

     और एक बात कहुँ, तो जो देने में सुख है, ना बेटा ! वो लेने में या छीनने में नहीं, इसलिए तुम्हारे पास जो हो, जितना भी हो उसी में खुश रहना, क्योंकि जो दुसरों  की ख़ुशी के लिए अपना हक़ छोड़ता है, उसे ऊपरवाला दो गुना करके वापिस भी देता है, इसलिए हमेंशा देते वक़्त अपना मन बड़ा ऱखना। 

        और तुम्हारी सास अगर तुम्हें कभी बुरा भला कहे, तब तूम चुप रहना, उसकी बात ज़्यादा दिल पे मत लगाना। क्योंकि वो भी अपने ज़माने में किसी की बहु हुआ करती थी और उसने भी अपनी सास की बातें सुनी ही होगी, जो आज वो शायद भूल गई होगी, मगर जिस घर की आज तुम बहु हो, किसी दिन उसी घर की तुम भी सास बनोगी, तब तुमको भी वही बातें याद आएगी, जो बातें तुम्हारी सास तुम्हें सुनाया करती थी, उस वक़्त तुम को सास बनकर क्या नहीं करना है, वो समझ लेना, क्योंकि तब तक ज़माना बहुत बदल चूका होगा, तब तुम्हें शायद अपनी बहु के हिसाब से ही रहना पड़े, तब तुम उसके साथ दोस्त बन के रहने की कोशिश ज़रूर करना, तभी तुम भी एक बहु की अच्छी दोस्त बन पाओगी और यही ज़िंदगी का नियम भी है,



       जो आज तुम्हारा है, वो कल किसी और का होगा, तुम्हारा बेटा या बेटी कल किसी और के हो जाएँगे। तब तुम अपना मन छोटा मत करना, क्योंकि यही ज़िंदगी का नियम है। दुनिया में किसी के भी साथ ज़्यादा अपनापन या लगाव मत ऱखना क्योंकि वो रिश्तें दूर होने से, तुम को सिर्फ़ और सिर्फ़ दर्द ही दे सकते है, इसलिए किसी के भी साथ ज़्यादा लगाव मत ऱखना। मुझे तुम पे पक्का यक़ीन है, कि तुम ये सब कुछ कर पाओगी। 

       अब तुम सोचोगी बेटा, कि अब इस ज़माने में इतना सब कौन सोचता और करता है, तो तुम्हारी बात भी सही है, मगर तुमको अपने ज़माने के साथ भी कदम से कदम मिलाकर चलना होगा।  इसलिए मैंने पहले ही कहा था, कि घर में सब का मन जीत लेना, तभी तुम सब का साथ और प्यार पाओगी। अगर तुमने सब का मन जीत लिया होगा, तो वो सब तुम्हें किसी बात पे रोकेंगे या टोकेंगे नहीं, बाद में तुम अपनी मर्ज़ी के मुताबिक जी सकोगी। 

          तुम्हारी बेटी भी जब बड़ी होकर ससुराल जाएगी, तब भले चाहे कोई भी ज़माना चल रहा हो, लेकिन तुम और तुम्हारे पति भी उसे एक बार यही सब कहना और सीखाना जरूर चाहेंगे, जो मैंने तुम को कहा है। 

        और हाँ, ऐसा कभी भी मत समझना कि हम तुम्हारे साथ नहीं है, हम तुम्हारे साथ कल भी थे, आज भी है और कल भी रहेंगे, बिना तुम्हारी गलती के अगर तुम्हारे साथ कुछ बुरा हो रहा होगा, तब हम तुम्हारा साथ ज़रूर देंगे, मगर अगर गलती तुम्हारी होगी, तब हम तुम्हारा साथ नहीं दे पाएंँगे। इसलिए आज से ज़िंदगी का हर कदम और फैसला सोच समझकर ही लेना। मुझे पता है, की नए घर में नए लोगों के साथ ज़िंदगी बिताना इतना आसान नहीं जितना हम समझते है, लेकिन मुझे पक्का यकींन है, कि तुम ये ज़रूर कर पाओगी। मैं  तुम्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ खुश देखना चाहता हूँ, मैं और मेरा आशीर्वाद हंमेशा तुम्हारे साथ है और रहेगा। अपने आप को कभी अकेला मत समझना। 

      

                                          तुम्हारा पापा। 

       पापा की चिठ्ठी पढ़ते-पढ़ते राधिका की आँखों से आँसू बहने लगे। राधिका ने पापा की दी हुई चिठ्ठी फ़िर से बक्से में सँभाल के रखी और तुरंत ही पापा को फ़ोन लगाया और राधिका ने आज तक की सारी गलती और ज़िद्द के लिए अपने पापा से माफ़ी माँगी और कहा, 

राधिका : पापा जैसा आपने मुझे कहा और सिखाया है, वैसा ही मैं आज के बाद करुँगी, आप की हर बात याद रखूँगी और आप का सिर कभी मेरी वजह से झुकने नहीं दूँगी, ये एक बेटी का अपने पापा से  वादा है।”

     बेटी की ऐसी समझदारी भरी बात सुन, पापा की आँखों में भी ख़ुशी के आँसू आ गए। 

      तो दोस्तों, आप अपनी बेटी को दहेज़ और ज़ायदाद में से चाहे जितना भी दे दे, मगर सब से बड़ी दौलत या कहुँ तो सब से बड़ा धन, एक बेटी के लिए अपने पिता की दी हुई सिख और संस्कार ही है, जो उस बेटी को जीवन भर काम आएँगे। धन, दौलत तो एक दिन यही रह जाएगा या ख़तम हो जाएगा, मगर माता-पिता की दी हुई सिख और उनके दिए संस्कार ही हमारे जीवन की सब से बड़ी पूँजी है, जो हम अपने बच्चों को भी देना चाहेंगे।  

लेखिका : बेला पुनीवाला

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