पिंजरे की मैना ! – रमेश चंद्र शर्मा

 

” तुम्हें हमारी परंपरा रीति रिवाज का थोड़ा भी ज्ञान नहीं है। शर्म करो अपने हाथों से बेटी का कन्यादान करना चाहती हो। हमारा समाज और रिश्तेदार क्या कहेंगे”?

 विधवा रजनी को उसके जेठ महेश डांटते हुए बोले। महेश चाहते थे बेटी का कन्यादान उनके हाथों से हो ।महेश की पत्नी 3 साल पहले सड़क दुर्घटना में चल बसी थी ।

रजनी कॉलेज के समय से ही बहुमुखी प्रतिभा संपन्न होनहार छात्र रही। गायन,वादन,नर्तन, पेंटिंग,लेखन जैसी कितनी ही विधाओं में रजनी हमेशा प्रथम आती रही। उच्च शिक्षा पूरी हो जाने के बाद माता पिता ने अच्छा संपन्न परिवार देखकर रजनी की शादी करदी। रजनी के पति काफी समझदार एवं सुलझे हुए इंसान थे। परिवार की असहमति के कारण रजनी ने प्राध्यापक की नौकरी ठुकरा दी। रजनी को एक बेटी हो गई नाम निहारिका । परिवार बहुत अच्छे से चल रहा था ।कोई परेशानी नहीं थी। अचानक रजनी के पति का हृदयाघात  से स्वर्गवास हो गया। 

रजनी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा ।धीरे-धीरे बेटी निहारिका 5 वर्ष की हो गई। रजनी ने नौकरी करने की इच्छा जाहिर की। परिवार के विरोध के कारण विचार छोड़ना पड़ा । रजनी विरोध नहीं कर पाई ।उसने अपना पूरा ध्यान ग्रहकार्य, बेटी की परवरिश तथा शिक्षा पर केंद्रित कर दिया । बेटी निहारिका उच्च शिक्षा प्राप्त कर नोएडा की बड़ी कंपनी में जॉब करने लगी। रजनी अपने ससुराल में सभी की सेवा में लगी रहती। धीरे-धीरे उसे बीमारियां घेरने लगी। शायद ईश्वर ने रजनी को केवल काम करने के लिए ही बनाया है ।निहारिका ने अपनी कंपनी में कार्यरत लड़के से शादी की इच्छा व्यक्त की । रजनी ने तुरंत हां कर दी,लेकिन परिवार के लोग विरोध करने लगे ।वे चाहते थे निहारिका की शादी उनके ही समाज  के किसी लड़के से हो । निहारिका और रजनी अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुए। अंततः सभी को स्वीकृति देना पड़ी  ।




                    निश्चित समय पर बारात द्वार पर आ पहुंची । रजनी दूल्हे की अगवानी के लिए कलश लेकर आगे आने लगी । रिश्तेदारों द्वारा अपशकुनी कहकर रजनी को रोक दिया गया। अन्य महिलाएं भी रजनी पर तानाकशी करने लगी। रजनी ने अपनी इकलौती बेटी के कन्यादान करने की इच्छा व्यक्त की। सभी ने एक स्वर से अशुभ कहकर रजनी को रोक दिया। रजनी पूरे समाज के सामने कुछ नहीं बोल पाई। उसका साथ किसी ने नहीं दिया। वह अकेली पड़ गई । रजनी मन मसोसकर पीछे हट गई ।रजनी के विधुर जेठ को कन्यादान की जवाबदारी सौंपी गई। विवाह की सारी रस्मों में रजनी को अशुभ बताकर पीछे धकेल दिया गया । घर की अन्य महिलाओं ने भी उसका साथ नहीं दिया । 

बेटी की शादी खुशी-खुशी निपट जाए इसके लिए रजनी ने मौन धारण कर लिया।वह  चुपचाप सब कुछ देखती रही। कन्यादान का समय आ गया। विधुर जेठ के हाथों कन्यादान की रस्म पंडित जी पूरी करवाने लगे। सारा समाज और रिश्तेदार खुशी-खुशी परंपराओं का निर्वहन करने में लग गए । वधू निहारिका को अपनी मां की निरंतर उपेक्षा बिल्कुल सहन नहीं हुई  । वह अचानक बोल उठी “जब बड़े पापा विधुर होकर मेरा कन्यादान कर सकते हैं, तो मेरी विधवा  मां मेरा कन्यादान क्यों नहीं सकती ?  मेरी पढ़ी-लिखी मां को आप लोगों ने पिंजरे की कैद मैना  बना रखा है”।

 अचानक चारों ओर सन्नाटा पसर गया । मानो सभी को सांप सूंघ गया हो। रिश्तेदार निहारिका को समझाने लगे।  निहारिका नहीं मानी। जीत निहारिका की हुई । अंततः कन्यादान रजनी के हाथों संपन्न हुआ ।

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# रमेश चंद्र शर्मा

 

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