पीहर – प्रीती सक्सेना

   इस बार का विषय, बहुत रुलाएगा,, मुझे,, मातृविहीन बेटी,,, मम्मी के साथ बिताए दिनों को याद करेगी,, और आप सबके साथ अपनी भूली बिसरी स्मृतियों को सांझा भी करेगी।

    अपनी शादी के चौथे साल ही,, मां के आंचल से छूट गई मैं,, हां,वो तीन साल जो मम्मी के सानिध्य में गुजारे,,, वो आज 33 साल बाद भी याद हैं,, मम्मी हम तीनो बहनों को एक साथ बुलाती और एक साथ ही बिदा करती,,,, अगर कोई दामाद जल्दी लेने आने के लिए फ़ोन करते तो मम्मी बड़े प्यार से, उन्हें आने के लिए मना कर देती,,,, मम्मी सभी दामादों को पुत्रवत स्नेह करतीं,, दामाद भी बहुत इज्जत करते थे उनकी।

   आज मेरी बेटी मायके आती है, मैं अपनी सारी तमन्नाएं उसके लिए पूरी करती हूं,, जो मेरी मम्मी,, हमारे लिए करती थीं , मेरी बिटिया डॉक्टर है,, बहुत व्यस्त रहती है वो,, मेरी कोशिश रहती है, उसे पूरा आराम दूं,,, हर दिन उसी की पसन्द का नाश्ता खाना बनाती हूं,, उसके दोनों छोटे बच्चों की सारी जिम्मेदारी हम दोनो उठाते हैं, उसे बिल्कुल फ्री कर देते हैं।

शाम को नानू दोनो बच्चों को पार्क ले जाते हैं, साइकिल चलवाते हैं,, पांच साल के जुड़वां, नानू से बहुत खुश रहते हैं,, खाना खिलाने की जिम्मेदारी नानी यानि मेरी होती है,, हां बच्चों को सुलाने की जिम्मेदारी मेरी बेटी की ही होती है

सुबह आराम से बिटिया रानी उठती है,, हाथों में कड़क अदरक की चाय उन्हें मेरे द्वारा पेश की जाती है जिसे सहर्ष वो ग्रहण करती हैं ,, दिन में हम ताश,, लूडो, कैरम ,, तरह तरह के गेम खेलते हैं।

बहुत कम रुक पाती है वो,, पर नव जीवन सा दे जाती है और ले भी जाती है,, संपूर्ण सुविधाजनक,, जीवन जीने के बाद भी वो हमारे पास आने के लिए बेताब रहती है,,

जाते समय माता रानी की चुनरी में चावल,, सुहाग की चीज़ों से जब उसकी गोद भरती हूं,, आंखो में आंसू भरकर यही कहती है,,, दुनिया के सारे सुख एक तरफ़ मां,,, आपके आंगन का सुख एक तरफ़।

  चिड़ियों की तरह चहकतीं हुई ये बेटियां, मेहमानों की तरह आती हैं और ढेर सारी खुशियां देकर चली जाती हैं,,,, दोबारा आने के लिए………..

प्रीती सक्सेना

इंदौर

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