पति के दिल की रानी हूं मैं ….कृति मेहरोत्रा 

अरे तुम तो बहुत जल्दी वापस आ ग‌ईं ” पतिदेव ने हंसते हुए ताना मारा “

 ” तो क्या नहीं आना चाहिए था “?

 ” नहीं मेरे कहने का मतलब था कि थोड़े दिन और रूक जाती , तुम्हें हमेशा शिकायत रहती है कि मैं तुम्हें कहीं जाने नहीं देता हूं कहीं रुकने नहीं देता हूं इसलिए मैंने तो इस बार फोन भी नहीं किया वरना तुम्हें लगेगा कि मेरे घर से निकलते ही तुम्हें खुजली होने लगी कहीं चैन से रहने भी नहीं देते ” पतिदेव ने बड़े ही भोलेपन से कहा मुझे उनकी इसी बात पर हंसी और प्यार आ गया ।

 सच बताऊं मैं कहती जरूर हूं कि तुम मुझे कहीं जाने नहीं देते रूकने नहीं देते लेकिन मैं भी अब तुमसे दो दिन से ज्यादा दूर नहीं रह सकती । मैं रोज तुम्हारे फोन का इंतजार करती थी लेकिन इस बार तुमने मुझे एक बार भी पूछने के लिए फोन नहीं किया कि “कब आओगी ,घर में अच्छा नहीं लग रहा है ” मेरे कान तरस गए ये सुनने के लिए ,मेरा मन ही नहीं लग रहा था वहां । मेरा मन कर रहा था कि खुद से ही फोन करूं और बोल दूं कि ” यहां मेरा मन नहीं लग रहा अपने पतिदेव के बिना ,आकर ले जाओ ” लेकिन मां की वजह से कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी । एकदिन जरा सा मुंह से निकल गया कि ” मां ! इनका फोन नहीं आया अब मेरा मन नहीं लग रहा , मैं चली जाती हूं “

 इतना सुनकर तो मां ने मेरी जो डांट लगाई और गुस्सा हो गई मुझसे ” तुम खुद ही अपना घर ,अपना पति ,अपने बच्चे छोड़कर रहना नहीं चाहती फिर क्या बेचारे दामाद जी को दोष देती हो कि वो‌ तुम्हें कहीं रुकने नहीं देते । जाना है तो जाओ आइंदा से साथ में आना और साथ में जाना “….

 मां से तो कुछ नहीं कहा लेकिन यार जो सुकून अपने घर ,अपने पति और अपने बच्चों के साथ है वो दुनिया के किसी कोने में नहीं चाहें जहां भी हो आओ लेकिन चैन अपने घर में अपने पति की बांहों में अपने बच्चों के साथ में हैं जो खुशी यहां मिलती है वो कहीं नहीं इस घर की रानी हूं मैं “…

 ” और मेरे दिल की भी रानी हो तुम जो बिना कहे सब समझ जाती हो और मेरे लिए भागती चली आई “।


 ” मेरा घर ,मेरा पति ,मेरे बच्चे मेरी पूरी दुनिया यही है ,इस घर में मेरी जान बसती है ।भले ही दुनिया भर की सुख सुविधाएं नहीं हैं लेकिन यहां मैं अपनी मर्जी की मालिक हूं मैं कुछ भी करूं कोई मुझे रोकने टोकने वाला नहीं है । मेरे पति जिन्होंने आज तक मुझसे किसी चीज का हिसाब नहीं मांगा “

 ” अपने-आप से ज्यादा भरोसा है तुम्हारे ऊपर ,पता है बहुत अच्छी तरह कि तुम रूपए पैसे सिर्फ खर्च ही नहीं करती बल्कि बचाती भी हो ,कभी अपने बच्चों का मन नहीं मारती , मुझे जब भी जरूरत होती है तुम सब लाकर मेरे हाथ में रख देती हो ,कभी कभी मैं भी सोचता हूं कि मैं तो तुम्हें इतने रुपए देता भी नहीं जितने तुम बचा लेती हो फिर पता चलता है तुम तो मेरी गृह लक्ष्मी हो “

 ” हां मुझे भी तुम्हारी यही बात अच्छी लगती है कि तुम मुझसे कभी नहीं पूछते कभी कोई हिसाब नहीं मांगते तुम्हारा ये भरोसा मेरे प्यार को और बढ़ा देता है जब तुम बोलते हो ” मैं तो खुद ही तुमसे रुपए मांगता हूं मैं तुम्हें क्या दूंगा ” सबकुछ तुम्हारा ही दिया हुआ है तुम हो तो मैं हूं तुम्हारे बिना मेरा कोई वजूद नहीं “।

 ” मेरा भी कोई वजूद नहीं तुम्हारे बिना ये तो जब तुम नहीं रहती इस घर में तब ये घर काटने दौड़ता है ,घर में घुसने तक की इच्छा नहीं होती इसलिए जब तुम कहीं जाने को कहती हो तो मेरे मुंह से ना निकल जाता है और तुम नाराज़ हो जाती हो “।

 ” अब नहीं होऊंगी क्योंकि अब मैं भी तुम्हारे बगैर दो दिन से ज्यादा नहीं रह सकती ” 

 आप दोनों तो ऐसे बातें कर रहे हैं जैसे पता नहीं कब के बिछड़े हुए हैं ,खाना भी मिलेगा या नहीं ” बच्चों ने मजाक में छेड़ा ।

 ” नहीं आज खाना नहीं बनेगा तुम्हारी मां सफर से थककर आई है आज मैं खाना जमैटो से आर्डर करता हूं सब मिलकर खाएंगे ” आज मेरा पूरा घर खिलखिला रहा था ,हे ईश्वर ! मेरे घर की खुशियां यूं ही बरकरार रखना किसी की नजर ना लगे ………

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!