अनोखा रिश्ता – पूनम रावल

जानता हूँ वो अब यहाँ कभी नहीं आएगी, फिर भी रोज़ उसका इंतज़ार करता हूँ। उसी तरह जैसे पहले किया करता था। ऐसा लगता है फूल, पत्ते, पेड़, पौधे सब उसका इंतज़ार कर रहे हों।जब से वो गई है मानो बहार चली गई हो।

बहार बन के ही तो आयी थी वो मेरी ज़िंदगी में। आश्रम में आया तो था कि कुछ दिन सुकून से रहूंगा लेकिन वो मेरा सुख चैन सब अपने साथ ले गई।

लगभग एक महीना पहले ही मुलाक़ात हुई थी उस से इसी आश्रम में। शाम को सब लोग बाहर सैर के लिए निकलते थे। मैं अक्सर अपनी पानी की बोतल लेकर ही सैर के लिए निकलता था। एक दिन पीछे से एक युवती की आवाज़ आयी “ पानी की बोतल देंगे प्लीज़ “ मैंने पीछे मुड़कर देखा एक लगभग 35-40 साल की महिला हाँफ रही थी मैंने उसे बोतल देते हुए कहा “ हाँ हाँ ज़रूर”, वह गट गट करके सारा पानी पी गई और ख़ाली बोतल मुझे पकड़ाते हुए बोली “सॉरी, मैं आपका सारा पानी पी गई।” मैंने मुस्कुराते हुए अपनी ख़ाली बोतल को देखकर कहा कोई बात नहीं ।

अगले दिन सैर करते हुए उसने मुझे नमस्ते कहा । उसके हाथ में पानी की बोतल भी थी। तीसरे दिन वो एक पेड़ के नीचे बैठी हाँफ रही थी। मैंने कहा “क्या हुआ? आपकी तबियत तो ठीक है ना !” वह बोली “ जी हाँ ठीक हूँ बस जल्दी थक जाती हूँ “ मैं उससे कुछ दूरी बना कर बैठ गया । उसने पूछा “आप कहाँ से हैं? आपकी पत्नी साथ नहीं आई?” मैंने कहा “ मैं एम पी से , और आप?“।


उसने हंस कर कहा “ मैं यू पी से” और फिर दूसरे प्रश्न का उत्तर जानने के लिए वह मेरा चेहरा देखने लगी। मैंने आह भरकर कहा “वह नहीं रही, लगभग एक साल हो गया” । “ ओह सॉरी, इस उम्र में अकेले रहना बहुत मुश्किल है” उसकी आंखें नम हो गई। मुझे भी उत्सुकता हुई मैंने पूछा “आप किसके साथ आयी हैं?” उसने कहा “उन्हें फ़ुरसत नहीं है अपने बिज़नेस से, अकेली आयी हूँ, लेकिन मैं उन्हें बहुत मिस कर रही हूँ” उसकी आँखें फिर से नम हो गई।

उसके बाद रोज़ बातचीत होने   लगी।मैं रोज़ उसका इंतज़ार करता, जब तक वो नहीं आती मुझे सारा उपवन उदास लगता । उसके आते ही जैसे मौसम हसीन हो जाता।ऐसा लगता जैसे उसके आने से पेड़ ,पौधे ,फूल सब खुशी से झूमने लगे हो। मुझे हैरानी होने लगी कि 50 साल की उम्र में मुझे क्या हो गया है मै अपने से 10-15 साल छोटी युवती की ओर आर्कषित हो रहा हूँ।अपने आप पर ग्लानि होती लेकिन मन था कि काबू से बाहर था।मैनें अपनें जीवन में र्सिफ अपनी पत्नी से प्यार किया ,किसी पराई स्त्री को नजर भर के देखा तक नहीं लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर ना जाने मुझे क्या हो गया था।

वो मुझसे हमेशा एक दूरी बना रखती और बातो -बातो में ये जरूर जतला देती कि वो अपने पति से बहुत प्यार करती है।एक दिन उसने मुझसे कहा ” मै आपको भैया  कह सकती हूँ” मैने कुछ देर जवाब नहीं दिया शायद मेरे मन में चोर था ।मैने कहा “जरूरी नहीं , हर रिश्ते को नाम दिया जाए हम दोस्त बन कर भी रह सकते  है।वैसे आप मुझे ‘र्शमा जी ‘ कह सकती हैं।” उसने हँस कर कहा “ओ-के र्शमा जी “। हम अक्सर बैठ कर बहुत सी बाते करते।सूर्यास्त  देखते ,

प्रकृति का आनंद लेते, बच्चो की बाते करते।एक दिन वो सूर्यास्त देखते -देखते मेरे कंधे पर सिर रख कर सो गई, वो इतनी मासूम लग रही थी कि मेरा उसे उठाने का मन नहीं हुआ ।अचानक वह उठी और सकपका गयी ।

एक दिन मैनें उसे कहा “लोग हमारे बारे में बाते करते है ” वह बोली “मुझे इसकी परवाह    नहीं कि लोग हमारे बारे में क्या बाते करते है, मेरे पति मुझ पर बहुत विश्वास करते है  और मैं ऐसा कोई काम नहीं कर रही जिससे उनकी इज़्ज़त पर आंच आए ,मै उनसे बहुत प्यार करती हूँ।” जब भी वो कहती कि वो अपने पति से बहुत प्यार करती है मुझे आत्मग्लानि  होने लगती कि मैं एक पतिव्रता स्त्री की ओर आकर्षित हो रहा हूँ।

जब वो सुबह आँखे बंद करके प्राणायाम करती तो मुझे देवी जैसी प्रतीत होती जिसे छूने से भी पाप लगे।लेकिन जितना उससे दूर रहने की कोशिश करता उतना ही अपने आप को उसके नजदीक पाता । एक दिन वो

मुझे कुछ परेशान सी लगी ,पूछने पर उसने बताया


“उन्हे बुखार आ गया है ,बच्चे भी घर पर नहीं है बाहर पढते है,वे घर पर अकेले हैं मुझे उनकी बहुत चिंता हो रही है ।अगर ट्रेन से जाती हूँ तो बहुत समय लगेगा और हवाई जहाज़ की टिकिट बुक करवाने का समय नहीं है।”

मैंने कहा “ मैं आपको अपनी गाड़ी से छोड़ देता हूँ”। वह बोली “आप मेरे लिए इतना लम्बा सफ़र तय करेंगे”।  उसने कहा “ठीक है, मैं पैक़िंग कर लेती हूँ”।

वह सारे रास्ते चुप रही, बहुत चिंतित लग रही थी। मैंने म्यूज़िक लगाया तो कहने लगी “प्लीज़ बंद कर दीजिए”। जैसे ही उसका घर आया वह अंदर की तरफ़ लपकी, सीधा अपने बेडरूम में। वह अपने पति से लिपट कर रोने लगी “मैं आगे से आपको अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगी”। उसके पति हसने लगे “पगली मुझे कुछ नहीं हुआ, बस हल्का सा बुख़ार है”। मैं दरवाज़े पर चुप चाप खड़ा था, उसका पति बोला “आप शर्मा जी हैं ना? रोज़ फ़ोन पर आपके बारे में बताती थी, आइए बैठिए चाय पी कर जाइएगा”। मैंने कहा “नहीं आश्रम पहुँचते पहुँचते रात हो जाएगी, मुझे चलना चाहिए”। वह दरवाज़े तक मुझे छोड़ने आई। अनयास ही मेरा हाथ उसके सर पर चला गया, मैंने कहा “सदा ख़ुश रहो, सदा सुहागन रहो”। उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी आँखों से लगा लिया। हम दोनो की आँखें नम थी। पता नहीं कौनसा अनोखा रिश्ता बन गया था हम दोनो के बीच।

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