मोनिका की शादी को 10 वर्ष हो गए। उसके पति समर्थ का काम कुछ मंदा था। मध्यम वर्गीय परिवारों में आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया रहता है।
बच्चों की स्कूल की फीस, महंगाई की बढ़ती मार,ऊपर से दवाई गोलियों का खर्चा। कुल मिलाकर खर्च पुरा ना पड़ पाता। रोज की किच-किच रहती।
मोनिका बहुत अधिक पढ़ी लिखी तो नहीं थी। लेकिन मन में कुछ करने की उमंग हो तो रास्ते नये खुल जाते हैं।
मोनिका ने एक स्कूल में प्राइमरी सेक्शन में अप्लाई किया। तो उसे वहां नौकरी मिल गई। अब मोनिका पर दोहरी जिम्मेदारी आ गई। घर का भी काम करती और स्कूल का भी देखती।
वैसे भी एक कहावत है ना,”9 काम नौकरी के, 10 वां काम हाजिरी का”
स्कूल के अध्यापकों की छुट्टी बच्चों की छुट्टी के बाद ही होती थी। इसलिए मोनिका को आने में थोड़ी सी देर हो जाती। और आजकल स्कूलों में कल्चरल और स्पोट्र्स एक्टिविटीज बहुत होती हैं जिस कारण अध्यापक स्कूल में अधिक समय देते हैं। मोनिका सब मैनेज कर रही थी।
मोनिका की गैर हाजिरी में उसकी पड़ोसन उसकी सास के पास आकर खुसुर- पुसुर करते हुए कहती है,”छुट्टी तो जल्दी हो जाती है स्कूल की। आपकी बहू ही रोज देर में आती है।”
पहले तो उसकी सास ने अनसुना कर दिया। लेकिन उसकी सास धीरे-धीरे वह अपनी बहू पर शक करने लगी। बेटे समर्थ से भी उसकी चुगली कर दी।
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अच्छा भला घर का माहौल खराब रहने लगा। लड़ाई-झगड़ा, चीखना चिल्लाना आम बात हो गई।
मोनिका स्कूल जाने के लिए जल्दी उठती क्योंकि उसे घर का भी काम निपटाना होता था। लेकिन अब उसकी दिनचर्या दिन प्रतिदिन खराब होने लगी। घर में क्लेश का माहौल रहने लगा। बच्चे भी सहमे से रहने लगे। कोई भी बच्चा अपने माता-पिता के मध्य झगड़ों को पसंद नहीं करता। चाहे बच्चे कुछ ना कहें लेकिन वह हमेशा यह चाहते हैं कि उनके माता-पिता मिलजुल कर रहे। एक बच्चे के लिए उसके माता-पिता का स्थान किसी को भी देना कठिन कार्य है।
अच्छी भली घर गृहस्थी चल रही थी मातृ शक की बुनियाद पर इसकी दीवारें हिलने लगी।
रोज-रोज के झगड़ों से तंग आकर मोनिका ने भी फैसला कर लिया अलग हो जाने का। कोई स्त्री अगर अपना वजूद बनाने के लिए घर से बाहर जाकर काम करती है तो सबसे पहले उंगली उसके चरित्र पर ही क्यों उठाई जाती है?
यह एक विचारणीय प्रश्न है? लेकिन इसका उत्तर शायद किसी के पास नहीं।
रक्षाबंधन पर उसकी ननद स्नेहा घर आई। तो उसे घर के माहौल में परिवर्तन दिखाई दिया। उसने सबसे पूछा, तो उसे सारा माजरा पता चला। उसने अपनी मम्मी को समझाया,”मम्मी भर काम करने में देर-सवेर हो ही जाती हैं। मैं भी तो नौकरी करती हूँ। बल्कि मैं तो ऑफिस में काम करती हूँ। मुझे तो घर आने में रात भी हो जाती है।”
स्नेहा फिर समझाते हुए कहती है,”आप लोग विश्वास करना सीखो। घर प्रेम और विश्वास से चलता है। विश्वास ही रिश्तो की बुनियाद होता है। आस-पड़ोस के लोगों का काम तो होता ही है आग लगाना”।
बेटी की बात सुनकर मोनिका की सास की बुद्धि कुछ पलटी। आज उन्हें बड़ा पश्चाताप हो रहा था कि मात्र पड़ोसियों के कान भर देने के कारण उन्होंने अपनी सींची हुई घर गृहस्थी उजाड़ कर ली।
पर अब ‘पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत’
अब मोनिका की सास ने बड़ी हिम्मत कर अपने बेटे बहु को बुलाकर बात साफ की। उन्होंने मोनिका से माफी मांगी। बेटे समर्थ को भी समझाया कि उन्होंने केवल सुनी- सुनाई बातों पर विश्वास कर मोनिका पर शक किया।
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समर्थ को भी अपनी गलती पर बहुत पश्चाताप हुआ। गलती तो समर्थ की भी बहुत थी। जो उसने बिना सोचे समझे अपनी पत्नी पर शक किया। समर्थ ने अपनी पत्नी से माफी मांगी और उसने मोनिका से उसे एक और मौका देने के लिए कहा।
मोनिका बच्चों की खातिर एक भारतीय माँ और आदर्श ग्रहणी की तरह अपने घर गृहस्थी में झुक गई ।
वह फिर चली गई रसोई में नाश्ता बनाने आखिर उसके बच्चे सुबह से भूखे थे। खाया तो उसने भी सुबह से कुछ नहीं था।
परिवार सबसे बड़ा संबल होता है। मात्र सुनी सुनाई बातों और शक के आधार पर इसे तोड़ना नहीं चाहिए।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा बुलंदशहर
#ननद शब्द आधारित बड़ी कहानी