परिवर्तन – गीता वाधवानी

सेठ रायचंद मुंबई के बहुत बड़े हीरा व्यापारी थे। उनकी दो संताने थी। पुत्र अक्षय और पुत्री काजल। सेठ जी का बेटा अक्षय अपने पिता से कुछ अलग व्यापार करना चाहता था और काजल अभी पढ़ाई कर रही थी। 

    सेठ जी अपने बेटे के कारखाने के लिए शहर से बाहर किसी गांव में जमीन देखने के लिए सुबह 11:00 बजे निकल पड़े। 

    गांव पहुंचते-पहुंचते लगभग एक डेढ़ घंटा लग गया। करीबन 12:45 बज रहा था। जमीन देखने, पसंद करने और उसकी बातचीत करने में उन्हें काफी वक्त लग गया। वह वापसी के लिए निकलने ही वाले थे कि अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। उन्होंने सोचा थोड़ी देर यहीं गांव में रुक जाता हूं। बारिश कम होते ही निकल जाऊंगा। 

     इंतजार करते करते 3 घंटे बीत चुके थे। बारिश विकराल रूप धारण कर चुकी थी। कम होने या रोकने का कोई आसार नजर नहीं आ रहा था। धीरे-धीरे वह और ज्यादा रौद्र रूप लेती जा रही थी। शाम हो चुकी थी। ऐसे ही इंतजार करते-करते रात भी हो गई। 

      सेठ जी और उनके ड्राइवर को गांव वालों ने रात में वहीं रुकने को कहा। सेठ जी ने अपने घर पर फोन किया ताकि बच्चों का हाल जान सके और यह भी बताया कि वह आज रात गांव में ही रुक रहे हैं। फोन पर बातचीत बहुत ही मुश्किल से हुई। आवाज इतनी ज्यादा कट कर आ रही थी कि समझ नहीं आ रहा था कि कौन क्या कह रहा है। 

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      दूसरे दिन भी मूसलाधार बारिश होती रही। गांव पानी से भर चुका था। सड़कें नदी की तरह नजर आ रही थी। गांव से निकलने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। आधी मुंबई पानी में डूब चुकी थी, शहर मानो थम सा गया था। 


      गांव वालों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के लिए सरकार की तरफ से कई इंतजाम किए गए। उन गांव वालों के साथ सेठ जी और उनका ड्राइवर भी सम्मिलित थे। 

       जब बारिश बहुत कम हो गई तब सरकार ने हेलीकॉप्टर से रोटियों के पैकेट गिराए। लोग भूख में पैकेट पकड़ने के लिए लपक रहे थे। रोटी कीभूख ही एक ऐसी चीज है जो किसी से भी बर्दाश्त नहीं होती। 

    सेठ जी के पास भी कोई उपाय नहीं था। मैंने भी किसी तरह लपक कर एक पैकेट पकड़ लिया। इसी तरह लगभग 5 दिन बाद मैं अपने घर की ओर जा रहे थे। रास्ते में वह सोच रहे थे कि मेरे जैसा करोड़पति व्यक्ति भूख में, एक पैकेट रोटी के लिए दौड़ पड़ा तो गरीबों का क्या हाल होता होगा।

वे लोग तो रोज कमाने खाने वाले हैं। उन पर हर वर्ष बारिश होने पर क्या बितती होगी, कैसे अपना जीवन यापन करते होंगे और जब बाढ़ में उनका सब कुछ समाप्त हो जाता है तब वे क्या करते होंगे, कैसे सब कुछ नए सिरे से शुरू करते होंगे, कैसे अपने परिवार को संभालते होंगे? इन सभी प्रश्नों ने उनके हृदय को व्यथित कर दिया था। 

      यह सब सोचते सोचते वह घर पहुंच गए और घर पहुंच कर उन्होंने अपना सब कुछ दान करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने बच्चों से कहा-“तुम्हारे लिए मेरे पास सब कुछ है, मैं तुम ही कोई कमी होने नहीं दूंगा, लेकिन आज से मैं ज्यादा से ज्यादा दान करना चाहता हूं

और हमेशा करता रहूंगा। मेरे बच्चों तुम भी हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करना। चाहे कितने भी अमीर हो जाओ, हमेशा विनम्र रहना। कभी अपनी अमीरी पर घमंड मत करना। बच्चों पैसा हाथ की मैल है। आज है कल नहीं। कल है तो परसों का पता नहीं।” 

      सेठ जी में बहुत बड़ा”परिवर्तन”आ चुका था। 

मौलिक, काल्पनिक 

गीता वाधवानी दिल्ली

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