परिवार ना सही, मैं हूं ना आंटी मां,।। – सुषमा यादव

जीवन भर की पूंजी हमारा परिवार होता है। एक परिवार में प्यार, अनुभव, संस्कार, तथा अनुशासन के बहुत मायने होते हैं। इनके बिना एक खुशहाल परिवार बिखर सकता है,, जीवन में संघर्ष, कठिनाईयां, परेशानियां तो आती रहतीं हैं, हमें धैर्य पूर्वक सबका सामना करना चाहिए।

परिवार में हर व्यक्ति की सोच, व्यवहार में अंतर होता है।।

इसी परिवार से संबंधित सुमन की दर्द भरी दास्तां बयां कर रही हूं।।

सुमन अपने कमजोर होते हुए पिता जी को नियमित जांच के लिए अस्पताल ले कर गई, घर में उसके सिवाय उसके पिता जी साथ रहते थे। बच्चे बाहर विदेश में थे।अपनी मदद के लिए उसने अपने प्रिय छात्र को बुलाया था,साथ ही अपने किरायेदार रवि को भी ले गई थी, परिचित डाक्टर थे, तुरंत पिता जी को भर्ती कर लिया, बोले, एक दो दिन रखेंगे,सब जांच हो जाये, फिर आप घर ले जाना, वैसे तो सब नार्मल है,बस कमजोरी की वजह से बोल नहीं पा रहे हैं। 

सारी जांच होने के बाद रिपोर्ट नार्मल आई,अब ब्लड जांच के लिए जाना था,।।पिता जी ने इशारे से बताया, कॉफी पीना है, उसने उन्हें कॉफी चम्मच से पिलाया, फिर इशारे से ही बताया,कि सब लाईट बंद कर दो, मैं और वहां के मरीज़, उनके रिश्तेदार सब हंसने लगे , सुमन ने कहा बाबू जी, ये घर नहीं हास्पिटल है,। 

 पिता जी इधर उधर देख रहे थे, शाम के पांच बज रहे थे, उन्होंने सुमन से पेन और कागज का इशारा किया, उसने पेन दिया और एक कागज पकड़ाया,पर उनका लिखा समझ में नहीं आया, दीपक ने कहा , बाबू जी घर चलेंगे, उन्होंने हां में सिर हिलाया। सुमन ने कहा, बाबू जी आप सो जाईए,। बाबू जी ने करवट ली और एक जोर की सांस खींची।




दीपक ने कहा,मैम, बाबू जी ने बहुत लंबी सांस खींची है, मैंने कहा, तो क्या हुआ, वो सोने की कोशिश कर रहे हैं, वो मुझे एक पल देखता रहा, फिर दौड़ते हुए डाक्टर साहब को बुला लिया, नर्स भी आ गईं , डाक्टर ने खूब जोर जोर से सीने को दबाया, एक इंजेक्शन भी लगाया, कोई हरकत नहीं, बोले, आंटी जी, ये तो नहीं रहे, सुमन ने चिल्लाते हुए कहा, ऐसे कैसे नहीं रहे,अभी तो ये कॉफी, पानी पिये हैं , वो सिर नीचे झुका कर बोले, सॉरी आंटी,

सुमन बहुत ज़ोर से रोने लगी,

घबराकर रोते हुए बोली, मैं अब क्या करूं, कहां ले जाऊं इनको अकेले, डाक्टर साहब मेरा यहां कोई नहीं है,आपके बच्चे और अंकल,उनका परिवार, वो नहीं है, बच्चे बाहर विदेश में हैं, तो इनका कोई हो, उन्हें बुलाइए। 

सुमन ने कांपते हाथों से अपने भाई को फोन किया, ,जो वहीं पास में ही रहता था।बाबूजी अस्पताल में खतम हो गये हैं, तुम तुरंत यहां आ जाओ, उधर से भाई का जवाब आया, मैंने पहले ही कह दिया था, कि मैं उनके मरने पर भी नहीं आऊंगा, तो फिर मुझे फोन क्यों किया, मुझे नहीं आना है, जो करना हो आप ही करिए। 

इतने में सबने उसे घेर लिया, अरे,अभी तो ये बिल्कुल ठीक थे,ऐसी मौत तो हमने कभी नहीं देखी ना ही सुनी। बड़े ही भाग्यशाली थे, एक पल में चले गए।

नर्स, डाक्टर सब खड़े, बाबू जी को आश्चर्य से देख रहे थे।

 सुमन तो रो रोकर गिर रही थी, मैं कहां इतनी रात को इनको लेकर जाऊं,रवि तुम्हारे पापा भी ग्वालियर गये हैं,

मेरा परिवार तो कितनी दूर है, उनके लड़के ने भी आने से मना कर दिया है, डाक्टर ने उसे सहारा देते हुए बिठाया और कहा आंटी आप बिल्कुल भी परेशान ना हों, मैं एम्बुलेंस की व्यवस्था करता हूं, आपको जहां जाना हो ले जाईए।




सुमन हाथ मलते,बार बार बाबू जी को देखते बस बिलख बिलख कर कह रही थी,हे भगवान,अब मैं क्या करूं, कैसे करूं,सच में, उसके सामने मुसीबत एक पहाड़ के रूप में मुंह बाए खड़ी थी। वो अकेली,बस दो बच्चे उसके साथ,

इतने में रवि ने आगे बढ़कर सुमन को अपने गले से लगा लिया और बोला, आंटी, क्या हुआ, यदि आपका यहां कोई परिवार नहीं है,आप मेरी मां जैसी हैं, मैंने आपको हमेशा ही अपनी मां माना है, मैं हूं ना आंटी मां,,

पापा ने और हम सबने हमेशा आपकी सब परेशानियों में साथ दिया है, तो अब आपको ऐसे कैसे छोड़ देंगे,मुझ पर भरोसा करिए।

पर बेटा, तुम दोनो केवल अठारह साल के,इनको लेकर इलाहाबाद संगम चलना है, इतनी रात में हम तीनों अकेले, नहीं, आंटी, पापा चल दिए हैं,दो बजे तक आ जाएंगे।

इतने में रवि के पापा का फोन आया,,आप सब एम्बुलेंस में बाबूजी को लेकर घर जाइए, मैं चल दिया हूं,सब ठीक हो जाएगा, घबराइए नहीं,बस धैर्य रखिए।

सब कोई घर आये,अगल बगल से लोग आ गए,रवि ने अपने दोस्तों को फोन कर दिया, सात आठ दोस्त आ गये थे, जल्दी से पिता जी को लिटाया,फूल माला चढ़ाकर अगरबत्तियां जला दी। 

कुछ देर में रवि की भाभी अपने मायके से आ गई, पापा जी ने फोन किया है, जाकर अपने कमरे से सबके लिए चाय वगैरह बना कर दो और सारी रात आंटी जी के साथ ही रहना, अकेले मत छोड़ना।

रवि के पापा ग्वालियर से एक बजे ही तेजी से कार चलाते हुए पहुंच गए, सुमन को धीरज बंधाया,सब तैयारी करके सुबह चार बजे सब संगम के लिए रवाना हो गए, बेटे को सबने बहुत फोन किया पर वो अंत तक नहीं आया, सुमन के पति के आफिस वाले भी सुनकर संगम तट पर पहुंच गए, बेटी ने ही दाह संस्कार किया, अस्थियां बीच संगम में विसर्जित किया,पूरे विधि-विधान से पूजा किया ,पग पग पर इस नए परिवार ने सुमन की मदद की और सुमन अपने इस नए परिवार के साथ वापस लौटी, ।।




 इसी नए परिवार ने उसके पिता जी की तेरहवीं बहुत ही अच्छी तरह संपन्न कराई, सब इस नए परिवार की मिसाल दे कर तारीफ कर रहे थे, 

सुमन का ना कोई खून का रिश्ता,ना ही उसके प्रदेश के,

पर उसके प्रिय छात्र दीपक और रवि तथा उसके दोस्तों ने, पिता और भाभी सबने मिलकर एक अनोखा परिवार बनाया,उसकी अपने परिवार वालों से ज्यादा ही सहायता की।, सुमन ये सोचकर ही कांप जाती है कि ये लोग ना होते तो वो अकेले क्या करती,

दोस्तों,जिसका कोई नहीं होता,उसका भगवान् होता है, वो एक दरवाजा बंद कर देता है तो कई दरवाजे खोल देता है,,

,,इस नए परिवार ने हमेशा ही कठिन परिस्थितियों में उसकी मदद की है,उनका एहसान सुमन जिंदगी भर नहीं भूल सकती, इसके बदले उसने उन्हें अपना तीन कमरों का मकान बिना किराये का दे दिया।।

#परिवार

सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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