परिवार का हर सदस्य एक कड़ी जैसा होता है। – सविता गोयल

देखो दीदी, आप रोज रोज माँ जी के धोने के कपड़े मेरी तरफ मत सरकाया करो। मेरे तो पहले ही बहुत से कपड़े हो जाते हैं… नन्नू हीं दिन में तीन- चार जोड़ी कपड़े गंदे कर लेता है। और ये कचरा भी आप अपने कमरे से निकालकर मेरे कमरे के सामने फैला देती हैं। रीना तुनकते हुए बोली।

“छोटी, तो क्या मैं अपने कमरे में झाड़ू भी ना निकालूं?? और तुम तो ऐसे बोल रही हो जैसे मैं तो कपड़े धोती हीं नहीं हूँ। तेरे आने से पहले तो मैं हीं सभी के कपड़े धोती थी.. यहाँ तक की देवर जी के भी कपड़े मैं हीं धोती थी।    लेकिन यहाँ तो किसी को मेरा किया दिखता ही नहीं है।   ,, रीना की बात सुनकर खीझते हुए मीना भी बोल उठी।

“दीदी, ये रोज- रोज एहसास मत दिखाया करो ।… पहले का तो मुझे पता नहीं आप क्या करती थीं और क्या नहीं … लेकिन मेरी शादी के बाद तो आपने कभी इनके लिए एक कप चाय भी नहीं बनाई होगी….। आपके तो बच्चे भी बड़े हो चुके हैं लेकिन मेरा बेटा तो अभी छोटा है.. फिर भी मैं आपसे ज्यादा ही काम करती हूँ… । ,,

” हुंह, और जो मैंने इतने साल इस परिवार की सेवा की उसका क्या?? माँ जी खाती पीती मेरा हैं और पक्ष तेरा लेती हैं । ,,

” तो क्या हुआ, बातों से किसी का पेट नहीं भरता…  माँ जी का सबकुछ ( गहने) दबा भी तो आपने हीं रखा है  …। ,,

इस तूं- तूं मैं- मैं में दोनों देवरानी जेठानी की आवाज इतनी तेज हो गई कि पड़ोस में रहने वाली कमला काकी और सुमन भाभी  अपनी अपनी बालकनी से झांकने लगी   ..।

उधर बाजार से आते हुए जब आरती जी ने पड़ोसनों को अपने घर में झांकते हुए देखा तो समझ गईं कि आज फिर घर में दोनों बहुओं की खटर- पटर चालू हो गई है । जब कमला काकी ने आरती जी को आते देखा तो व्यंग्य से मुस्कुराते हुए सुमन भाभी से बोलीं , “भई हमारे पड़ोस में तो हमेशा चहल पहल रहती है… मुफ्त की फिल्म देखने को मिल जाती है रोज-रोज।   ,,




उनका हंसना आरती जी को तीर की तरह चुभ रहा था। कहाँ कुछ सालों पहले वो गर्व से छाती चौड़ी करके सारी पड़ोसनों के सामने कहती थीं, ” तुमलोगों को तो बहुएं रखनी आती हीं नहीं हैं। देखना मैं अपने बेटों के लिए ऐसी बहुएं लाऊंगी कि सारा मौहल्ला देखेगा । ,,

सचमुच आज सारा मौहल्ला हीं उनकी बहुओं का तमाशा आए दिन देखता था और उपहास का पात्र बनती थीं आरती जी ।

आरती जी के घर में कदम रखते हीं दोनों बहुएं मुंह फेरकर अपने अपने कमरे की ओर चल दीं ।

आरती जी की बर्दाश्त करने की क्षमता अब खत्म होती जा रही थी।   उन्होंने तय कर लिया कि अब वो सबके उपहास का पात्र नहीं बनेंगी। अगले दिन से वो अपने सारे काम खुद हीं करने लगीं।   लेकिन बाहर का कोई भी काम जैसे सब्जियां लाना , घर का सामान लाना, बच्चों को स्कूल छोड़ना आदि कुछ भी नहीं करती थीं ।

 जब रीना सब्जी लेने जाती तो पड़ोस की औरतें हंसते हुए कहतीं, ” क्यूँ रीना , आज तेरी सास के लिए खाना तुम बनाओगी या तुम्हारी जेठानी।   ,, जब औरतें उसपर हंसतीं तो रीना की गर्दन झुक जाती ।

वैसे ही जब मीना बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती तो दूसरे बच्चों की माएँ भी पूछती, ” मीना , आज क्या तुम्हारा सास के साथ झगड़ा हो गया जो वो बच्चों को छोड़ने नहीं आई  ??  ,,

पहले जहाँ लोगों की हंसी का पात्र आरती जी बनती थीं अब वे तंज रीना और मीना को सुनने पड़ते थे। तंग आकर रीना और मीना आरती जी के पास गईं और बोलीं, ” माँ जी, बाहर के काम आप हीं किया करो हमें तो बाहर जाते शर्म आती है। ,,

आरती जी बोलीं, ” क्यों बहुओं? तुम्हें शर्म आती है और जो तुम दोनों के कारण मुझे सबके सामने शर्मिंदा होना पड़ता है उसका क्या??  आपस में तुम दोनों झगड़ती हो और तमाशा देखकर मजे सारा पड़ोस लेता है… कितना गर्व था मुझे अपने परिवार पर कि मैंने अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दिए हैं। लेकिन तुम दोनों ने तो मेरे सारे अरमान तोड़ दिए ।




परिवार किसे कहते हैं शायद तुम्हें पता ही नहीं है ।… परिवार का हर सदस्य एक कड़ी की तरह होता है। जब तक वो जुड़े रहते हैं तब तक उनकी मजबूती बनी रहती है । अगर वो कड़ियाँ एक दूसरे को हीं काटने लगेंगी तो उनका कोई वजूद नहीं रह जाएगा… । सुख दुःख में अपने हीं काम आते हैं ये दुनिया नहीं। आपस में झगड़ोगी तो लोग मजाक तो उड़ाएंगे हीं साथ- साथ तुम्हारी आपसी फूट का फायदा भी उठाएंगे  …. । मैं तो कुछ सालों तक ही रहूंगी और भगवान से हमेशा यही प्रार्थना करती हूँ कि किसी पर बोझ बनकर ना रहूं।

मानती हूँ घर में दो बर्तन होंगे तो आपस में खड़केंगे.. लेकिन खाना बनाते और खाते समय वही बर्तन एक दूसरे के पूरक भी बन जाते हैं  … । ,, दोनों बहुओं की आंखे झुक गईं थी।

आरती जी की इन बातों का रीना और मीना पर कुछ तो असर हुआ जिसके कारण दोनों बहुएं अब धीरे – धीरे कम झगड़ने लगीं थीं।  घर में शांति रहने लगी थी और लोगों का मुंह भी बंद हो गया था ।

#परिवार

सविता गोयल

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