जंग भले करो पर परिवार मत तोड़ो – संगीता अग्रवाल

बालकनी मे बैठी निशा फूलो पर मंडराते भवरों को देख रही थी । कैसे दो पल को ऊपर उड़ जाते फिर वापिस अपने पसंदीदा फूल पर आ बैठते। ये प्यार है या जरूरत। नही नही प्यार नही क्योकि भवरे कहाँ एक फूल पर बैठते है। अचानक उसका मन कसैला सा हो गया। ” पुरुष भी तो भंवरे होते है जो कभी भी कोई हसीन फूल देख उसपर मंडराने लगते है ” उसने मन ही मन सोचा। 

अचानक बादल गर्जने लगे और बारिश की हल्की फुहार शुरु हो गई जैसे ही कुछ बूँदे निशा के चेहरे पर पड़ी लगा जैसे सूखी मिट्टी गीली हो मुलायम हो गई । उसे याद आने लगी उसी पुरुष की जो उसका पति है जिसे वो छोड़ आई थी आज से दो महीने पहले क्योकि उसने रेस्टोरेंट की मेज पर उसे किसी और लड़की के साथ बैठे देख लिया था। पर क्या सच मे किसी का किसी के साथ बैठ कर खाना पीना उसे चरित्रहीन बना देता है …कितना समझाया था आदर्श ने उसे तब ।

” निशा समझो यार मेरी नौकरी ऐसी है की मुझे क्लाइंट साथ मीटिंग करनी पड़ती है और जगह भी क्लाइंट की सुविधा अनुसार होती है अब रेस्टोरेंट मे मिले है तो थोड़ा बहुत खाये पिएंगे भी इसका मतलब ये तो नही उससे अफेयर चल रहा मेरा ।” 

” मुझे कुछ नही सुनना आदर्श तुम्हारी अय्याशी  के चर्चे सुनती तो पहले भी थी आज देख भी लगा अब मैं यहाँ नही रुकूंगी। मैं अपने बेटे को लेकर जा रही हूँ समझे तुम अब ले आओ उसे घर मे ही! ” गुस्से से धड़कती निशा बोली । 

” यार निशा क्या बोल रही हो तुम ऐसा कुछ भी नही है क्यो हमारे घर संसार मे शक के बीज से आग लगा रही हो !” आदर्श बेबसी से बोला। किन्तु निशा ने एक नही सुनी और सात साल के यश को ले आ गई अपने मायके। कई बार क्रोध मे इंसान वो कर बैठता है जो उसे नही करना चाहिए । वैसे भी क्रोध इंसान का वो शत्रु है जो उसकी बुद्धि हर लेता है और इस क्रोध के कारण अच्छा खासा हँसता खेलता परिवार तबाह हो जाता है। 




निशा के जाने पर कुछ दिन आदर्श ने उसे फोन पर मनाने की कोशिश की किन्तु वो कुछ सुनने को तैयार नही थी। वो उससे मिलने गया तो निशा के घर वालों ने मिलने ना दिया  आदर्श ने भी तंग आ फोन करना बंद कर दिया वैसे भी इंसान अपनी सफाई भी एक हद तक देता है। जब सामने वाला खुद अपना परिवार तोड़ना चाहे तो कोई क्या कर सकता है यहाँ भी यही हुआ । एक महीने बाद आदर्श को तलाक का नोटिस भी मिल गया। उसकी तो मानो दुनिया तबाह हो गई । वो निशा के लिए अपने बेटे के लिए तड़पता था पर उसे उस गलती की सजा दी जा रही थी जो उसने की ही नही । 

” निशा बेटा कोर्ट का समय हो रहा है तैयार हो जाओ !” बारिश की बूंदो से भीगती निशा को उसकी मम्मी की इस आवाज़ ने सोच से बाहर लाया। वो बालकनी से उठकर अपने कमरे मे आ गई। अचानक उसे अपने बेटे का ध्यान आया ! ” मम्मी यश कहाँ है ?” उसने अपने मम्मी मधु जी से बाहर आ पूछा।।

” बेटा यही कही खेल रहा होगा !” मधु जी बोली।

” नही वो यहाँ नही है मेरे कमरे मे भी नही है गया कहा ये लड़का !” वो उसे ढूंढते हुए बड़बड़ाने लगी। अचानक निशा को सिसकियों की आवाज़ आई बाहर को जाते उसके कदम उन सिसकियों से रुक गये पूजाघर से आ रही थी ये आवाज़। वो पूजा घर के गेट पर आई।

” भगवान जी प्लीज मेरी मम्मी ओर पापा मे पहले जैसी बट्टी करवा दो पहले वो कितने हँसते थे जब साथ रहते थे अब तो ना मम्मी हंसती है ना मेरा हँसने का मन करता है पापा के बिना। भगवान जी मुझे मम्मी पापा के साथ रहना है यहां नानी नाना पास नही प्लीज भगवान जी और अगर ऐसा नही हो सकता तो आप मुझे अपने पास बुला लो क्योकि मैं किसी एक के साथ नही रहना चाहता प्लीज भगवान जी !” रोता हुआ यश भगवान की मूर्ति के सामने बैठ बोल रहा था।




” नही …नही मेरे बच्चे तू मेरा बेटा है मेरी जान ऐसे कैसे तू भगवान जी के पास…नही नही मैं तुझे कही नही जाने दूंगी कही नही !” निशा भागकर यश की सीने से लगा कर रोते हुए बोली।

” मम्मी मैं जान तो पापा की भी हूँ ना आप उनसे कट्टी हो तो मैं क्यो उनसे दूर रहूँ । मम्मी मुझे पापा की अपने घर की बहुत याद आती है मुझे वहाँ जाना है प्लीज !” यश रोते हुए बोला ।

निशा उसे सीने से लगाए रोये जा रही थी तभी मधु जी ने उसे याद दिलाया कि कोर्ट जाना है क्योकि आज यश को भी जज के सामने प्रस्तुत होना था तो निशा ने उसे किसी तरह चुप करवाया और सब तैयार हो कोर्ट के लिए निकले। 

वो अभी बाहर ही आये थे कि एक कार आकर रुकी वहाँ जिसे देख उदास यश की आँखे चमक उठी ।

” पापा !” वो भागता हुआ गाडी के पास पहुंचा।

” मेरा चैम्प !” गाडी से निकल आदर्श ने बेटे को गोद मे उठा भींच लिया खुद से । निशा खड़ी खड़ी बाप बेटे के मिलन को देख रही थी उसकी आँखे भी नम थी। अचानक उसने आदर्श के चेहरे की तरह देखा उसकी आँखों से झर झर आँसू बह रहे थे रो तो यश भी रहा था । उनको इस तरह लिपट के रोता देख निशा के साथ साथ बाकी सबकी भी आँख नम हो गई। 




” निशा क्या कर रही है तू अगर तू यश की माँ है तो आदर्श भी तो पिता है फिर क्यो इतने वक़्त तक दोनो को दूर रखा तूने। तू एक पति से खफा थी पर इसमे एक पिता की तो कोई गलती नही ना । आदर्श ने पिता का कौन सा फर्ज नही निभाया आखिर । और पति का …उसका भी कौन सा फर्ज निभाने से चूका है वो जो तू एक गलती के लिए अपने घर संसार् को आग लगा रही है । पर क्या सच मे आदर्श की गलती थी? क्या ये टूटा हुआ आदर्श लगता है ऐसी गलती करेगा? फिर क्यो गलतफहमी मे ये सब कर बैठी तू । क्यो अपने प्यार से सजाये परिवार को तोड़ रही है। क्या इतना कमजोर होता है पति पत्नी का रिश्ता जो यूँही तोड़ दिया जाये। आदर्श से शिकायत थी तो लड़ती झगड़ती पर प्यार और विश्वास को खत्म तो ना करती यूँ एक बेटे को पिता से अलग तो ना करती !” निशा मन ही मन सोच रही थी कि तभी आदर्श का स्वर सुनाई दिया।

” निशा क्या मैं यश को अपनी गाडी मे ले जाऊं कोर्ट प्लीज देखो ये मुझे छोड़ ही नही रहा !” आदर्श उसके पास खड़ा बोल रहा था।

” तो तुम भी मत छोड़ो ना !” निशा एकदम बोल पड़ी।

” क्या…!” असमंजस मे आदर्श बोला।

” मत छोड़ो यश को ओर मुझे भी ..मत तोड़ो हमारा प्यार से सींचा आशियाना !” निशा भावना मे बह जाने कैसे बोल गई। असल मे अपना घर छोड़ने के बाद आज आदर्श पहली बार उससे ऐसे मिला है वरना पिछली बार तो कोर्ट मे मुलाक़ात हुई थी। तब उसने गुस्से मे आदर्श की तरफ देखना भी गँवारा नही किया था । आज जब गौर से देखा तो वो उसे एक टूटा इंसान नज़र आया जो अपने बेटे के बिना तड़प रहा है और शायद उसके बिना भी। वैसे भी माँ बनने के बाद औरत को अपने साथ साथ अपने औलाद की खुशी भी देखनी होती है। कहने की तलाक एक बहुत छोटा शब्द लगता है पर ये सिर्फ रिश्ते नही तोड़ता कुछ इंसानो को भी तोड़ देता है। 




” मैं कहाँ छोड़ रहा तुम्हे छोड़ना तो तुम चाहती हो मुझे उस गलती के लिए जो मेरी थी ही नही …!” आदर्श मायूसी से बोला । फिर अचानक उसने निशा का हाथ पकड़ लिया और रोने लगा ” प्लीज निशा मुझे खुद से मेरे बेटे से अलग मत करो मै वो नौकरी ही छोड़ दूंगा जो तुम्हारे मन मे शक के बीज बोये।”

दरक सा गया निशा के भीतर कुछ ” नही ये इंसान गलत हो ही नही सकता !” उसके मन ने कहा। ” नही तुम्हे कुछ छोड़ने की जरूरत नही ना नौकरी ना अपना परिवार !” निशा बोल पड़ी।

” सच मे निशा तुम वापिस चलने को तैयार हो !” खुशी के मारे आदर्श अपने आंसू पोंछ निशा के गले लग गया । 

” ये….!” खुशी से चिल्लाता यश भी माता पिता से चिपक गया। इस भावुक क्षण मे निशा के माता पिता का दम्भ भी चूर चूर हो गया वैसे भी कोई माता पिता नही चाहते उनकी संतान का घर टूटे । 

” जा बेटी अपने घर जा अब किसी कोर्ट कचहरी की जरूरत नही जब दिल की अदालत मे आदर्श ने अपनी बेगुनाही साबित कर दी जा तू अपने परिवार के साथ लौट जा !” निशा के पिता दोनो के सिर पर हाथ फेरते बोले।

” कोर्ट तो इन्हे जाना ही होगा !” अचानक निशा की माँ बोली।

” मम्मी  क्या कह रही हो आप क्या आप नही चाहती मैं अपने घर लौट जाऊं ?” निशा हैरान हो बोली।

” नही !” माँ एक दम से बोली तो यश सहम गया ” मैं चाहती हूँ पहले तुम कोर्ट जा समझौते की एप्लिकेशन फाइल करो और एक दूसरे से वादा करो अब कभी अलग नही होंगे !” फिर वो अचानक से हँसते हुए बोली।

” ओह मम्मी आपने तो मुझे डरा दिया था ।” ये बोल निशा माँ के गले लग गई ।

माता पिता से विदा ले निशा आदर्श और यश के साथ कोर्ट के लिए निकल गई। यश दोनो का हाथ थामे था क्योकि वो ही तो इनके रिश्ते का मजबूत स्तम्भ था।

दोस्तों कभी कभी पति पत्नी के रिश्ते मे गलतफहमियाँ आ जाती है ऐसे मे दोनो को सोच विचार कर कोई फैसला करना चाहिए गुस्से मे अपना परिवार तोड़ लेना समझदारी नही खासकर जब आप माता पिता बन चुके हो तब तो बहुत सम्भल कर फैसला लेना चाहिए क्योकि उनके फैसले का बच्चे पर असर पड़ता है । एक दूसरे की गलती या गलतफहमी पर जंग भले कितनी करो लेकिन प्यार को मत खोने दो अगर रिश्ता सम्भल सके तो जरूर संभालो परिवार को टूटने मत दो। 

#परिवार 

आपकी दोस्त

संगीता ( स्वरचित)

साहित्य जो दिल को छू जाये के लिए

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