पछतावा – नंदिनी

गिले शिकवे सिर्फ़ सांसों के चलने तक ही होते हैं।

बाद में तो सिर्फ़ पछतावे ही रह जातें हैं।

चलिए सुनते हैं आज मालती की कहानी दो बहन और दो भाई में सबसे बड़ी थी घर में, पूरा घर उसकी मर्जी से चलता ,गांव में परिवार रहता था और कुछ सालों बाद आगे की पढ़ाई के लिए भाई उसकी मौसी के यहाँ चले जाते हैं ।

खेती बाड़ी के कामों में भी अक्सर बाबूजी को मदद करती हिसाब किताब देखती।

कुछ सालों में उसकी शादी हो जाती है ,बड़े भाई मोहन की नोकरी शहर में लग जाती है ।छोटा भाई दूर शहर में आगे की पढ़ाई के लिए होस्टल चला जाता है।

कुछ सालों में भाई ओर छोटी बहन की भी शादी हो जाती है और मोहन बाऊजी को बोला अब आप यहाँ अकेले मत रहो घर ले लिया है बड़ा ,शहर चलो पर उनका मन शहर में कहाँ लगने वाला था ,बेटे के आग्रह पर गए चले तो गए ,पर मां बाऊजी कुछ दिनों बाद गांव आ गए ।

धीरे धीरे कुछ समय बीता ओर स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मोहन अकेले नहीं रहने देता उन्हें गांव , जब मर्जी हो आ जाया करो सबसे मिलने लेकिन अब आप दोनों साथ ही रहो हमें फिक्र होती है आपके अकेले रहने पर,  मां बाऊजी को मना लेतीं हैं शहर में रहने के लिए ।

इस बीच राखी का त्योहार आता है सब भाई बहन इकट्ठे होते हैं बड़ा प्यार आदर था सबमें , 2 – 4 दिन रुक कर दोनों बहन चली जाती हैं।

कुछ महीने बीतने पर बाऊजी गांव जाने का बोलते है  4 – 5 दिन रहे आते हैं घर खेत देख आएंगे ।




मोहन गाड़ी से उन्हें गांव भेज देता है ,बाऊजी के छोटे भाई का परिवार वहीं रहता था, खाने पीने की कोई समस्या नहीं थी कि इतने दिन से बंद पड़े घर में कैसे व्यवस्था होगी दोनों भाइयों के सम्बन्ध प्रेम  भरे थे।

गांव पहुंच कर खेती का जायजा लेते हैं घर की हालत भी सूने के कारण यूहीं हो गई थी , ऐसे में छोटा भाई कहता है क्यों न भाईसाब ये घर के पास की जमीन हमें बेंच दो , अब मोहन को तो यहाँ आना नहीं शहर से और हम यहाँ  गाड़ी रखने के लिए जगह ओर दो पक्के कमरे बनवा लेंगे आपके हिस्से का भी  रंग रोगन हो जाएगा साथ में, बाऊजी को ये सुझाब अच्छा लगता है ,कम से कम घर मे रौनक सी हो जाएगी और हमारे आने जाने लायक घर तो है ही ज्यादा रखने का अब कोई मतलव नही है ।ठीक है में मोहन से बात करता हूँ बाऊजी कहते हैं, कुछ दिन रुककर चले जातें हैं शहर।

काका के प्रस्ताव के बारे में मोहन को बताते हैं मोहन भी राजी हो जाता है आखिर घर में रौनक सी हो जाएगी, आखिर वो हमारा भी कितना ख्याल रखते हैं । इस बीच मालती का आना होता है ,ये निर्णय सुन वो थोड़ी नाराज हो जाती है इतना बड़ा फैसला मुझसे बिना पूछे कैसे ले लिया, अरे दीदी जमीन का बंटवारा थोड़ी हो रहा ,ये तो महज घर के पास की जमीन है जो काका के काम आए तो अच्छा ही है, पर मालती नहीं देना चाहती घर के पास की जमीन बाऊजी भी समझाते हैं, किसी को फुर्सत नहीं जाने की वहां ,हां दीदी आप शायद इसलिए तो मना नही कर रहिं कि घर की पूरी जमीन साथ बिके बाद में ओर आपको हिस्सा मिले ,अभी जरा सा भाग उन्हें देने का क्या मतलब,तो में गांव का घर आजीवन रखूंगा निशानी है वो बाऊजी की, सुनकर मालती नाराज हो जाती है ऐसा मेरा कोई इरादा नहीं है और मुझे कोई हिस्सा नहीं चाहिए , बस  घर को ऐसे ही रखना चाहती थी , अरे भले  खण्डर सा रहे वो चलेगा आपको ,काका आज बाऊजी की आगे से कितनी मदद करते हैं खाने से लेकर खेती देखने में अगर वो जमीन उनके काम आती है तो देने में क्या हर्ज है ,जरूरी नही आप बडीं हैं तो हमेशा सही ही हों, मालती का गुस्सा ओर बढ़ जाता है ,अच्छी बात है घर तुम्हारा है जो मर्जी करो । 




शाम को ही अपने घर चली जाती है, राखी पर भी नहीं आती ,इस बीच एक रिश्तेदारी में शादी आती है पूरा परिवार इकट्ठा होता है पर मालती और मोहन की बोलचाल नही होती, मोहन आगे से गया भी बात करने पर वो उठ कर बच्चों के बहाने से चली जाती हैं।

मां ने समझाया भी पर ये बातें गुस्से में कहाँ समझ आती हैं ऐसे ही कई साल निकल गए  । 

इस बीच मोहन का छोटा ऑपरेशन हुआ , बेहोश करने की दवाई दी ऑपरेशन अच्छे से हो गया नियत समय के बाद भी होश नही आया तो  हड़कम्प मच गया साँसे जा चुकी थीं ।

जब पता चली मालती को ये बात ,तो मानो जमीन खिसक गई पैरों तले ,कुछ समझ ही नहीं आया ये क्या कैसे हो गया अच्छा भला छोटा सा ऑपरेशन  ही तो था ।

बहुत पछताई जो इतने साल उसने बिना बात के गुजार दिए , बात बस पहल की थी जो मोहन ने की भी थी पर अपने अहं के कारण इतना बड़ा दर्द ले लिया था जीवन भर के लिए,अब उसके हाथ पछतावे के अलावा कुछ रह नहीं गया था ………

रिश्तों को हमेशा अहंकार के ऊपर रखना चाहिए नहीं तो बाद में सिर्फ पछतावे के कुछ नहीं बचता…..

नंदिनी

स्वरचित

#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल

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