निर्मल बालमन – पुष्पा जोशी

रुक जाओ कमली…। मगर कमली नहीं रुकी। उसने निर्णय कर लिया था, कि वह इस घर में तो क्या, इस शहर मैं भी नहीं रहेगी। कमली गरीब थी, मगर उसका भी आत्म सम्मान था। वह मेहनती और ईमानदार थी। इतना अपमान, इतनी जिल्लत, उसने पहले कभी सहन नहीं की थी। उसने अपने तीनों बच्चों को आगे किया और चलती ही गई। शोभना ने फिर आवाज लगाई – ‘रुक जाओ कमली….., तुम्हें आद्या का वास्ता।’ तेज गति मैं जैसे ब्रेक लग गया, उसके पैर जड़ हो गए। 

 आँखे आँसुओं से लबरेज थी, उसने पीछे मुड़कर देखा, आवाज को संयत करते हुए बोली – ‘यह क्या कह दिया मेम साहब आपने? आध्या बेबी हमारी जान है, उसका वास्ता ना दे।’

‘फिर क्या करूं ? तू रुकने का नाम ही नहीं ले रही। मुझे माफ कर दे,और जल्दी से घर चल, उसने कल से कुछ भी नहीं खाया है, वह बीमार है और बस तुम सबको याद कर रही है।’ बच्चे खुश हो गए, बोले – ‘क्या हम यही रहेंगे माँ?’

कमली कुछ नहीं बोली, उसके पैर पीछे की ओर तेजी से बढ़ने लगे। उसकी खोली जैसी छोड़ी थी वैसी ही थी ।  वृद्ध मकान मालिक मायूस होकर बाहर बैठे थे । कमली और बच्चों को देखकर प्रसन्न हो गए कमली ने कहा – ‘बाबा क्या आप चाबी फिर मुझे देंगे?’ बाबा बोले ‘बेटी यह घर तुम्हारे बिना, सूना हो गया था मेरा तुम्हारे सिवा है कौन ?’ खोली एक कमरे की थी बाहर एक ओटला था, तीन तरफ दीवार और ऊपर छत थी, सड़क वाला भाग खुला था एक दरवाजा कमरे की ओर खुलता था ।

ओटले पर १०- १२ लोग बैठ सकते थे। ओटले पर एक चूल्हा बना था, खाना वहीं बनता था, रात को सारा सामान कमरे में रख कर, माँ और बच्चे सो जाते। दिन भर ओटले पर खाते खेलते और कभी-कभी सो जाते। कमली मजदूरी करके,अपने बच्चों का लालन – पालन कर रही थी। पति का देहान्त हो गया था। मकान का किराया नाम मात्र का था।  मकान मालिक बाबा, अकेले थे उनके परिवार में और कोई भी नहीं था। कमली काम पर जाते समय बाबा से कहती, बाबा बच्चों का ध्यान रखना ।बाबा बच्चों के साथ खेलते, बातें करते इस तरह आपसी सहयोग से, जीवन चल रहा था।




घर के सामने मल्टियां बनी थी, सामने की मल्टी में, दूसरी मंजिल पर, दो महीने पहले शोभना और समीर का परिवार रहने आया था। उनकी एक फूल सी प्यारी बच्ची थी ।५ साल की होगी आद्या। फ्लैट के एक कमरे की खिड़की से कमली की खोली दिखती थी । वहाँ बच्चों को हँसते खेलते देखती, तो आध्या की इच्छा होती कि वह भी बच्चों के साथ खेले। वह अकेलेपन से घबरा गई थी। पहले वह कॉलोनी में रहती थी, वहाँ उसकी उम्र के बहुत सारे बच्चे‌ थे। अभी स्कूल में भी गर्मी की छुट्टी पड़ गई थी। 

समीर ने यह फ्लेट खरीदा और यहाँ रहने आ ग‌ए। आद्या के मम्मी – पापा नौकरी पर चले जाते,और घर में रह जाती आद्या और उसकी आया सूजी ।

आद्या को नए – नए खिलौने, कपड़े, तरह-तरह का भोजन भी रिझा नहीं पा रहा था। वह उदास  रहने लगी। कुछ खा नहीं पा रही थी, बस उस खिड़की से बाहर देखती रहती,और सोचती कि मैं भी इन बच्चों के साथ खेलूँ वह बिमार हो गई ।मेहंगी से मेहंगी दवाई भी असर नहीं कर रही थी। डॉक्टर भी हैरान थे। एक दिन समीर और शोभना नौकरी पर गए थे। सूजी किसी  काम में व्यस्त थी। आद्या धीरे- धीरे नीचे उतरी। प्यारी फूल सीआद्या, घेरदार गुलाबी फ्राक पहने, बालों पर मोती का क्लिप लगाए, परी सी दिख रही थी। वह उन बच्चों के पास चली गई। बच्चे भी उसको देखकर बहुत खुश हुए, चारों प्रेम से खेलने लगे। आद्या भी ताली बजा-बजाकर हँस रही थी। सूजी ने देखा कि आद्या बच्चों के साथ खेल रही है। पहले तो वह डरी कि मेम साहब नाराज होगी। फिर सोचा, अभी मेमसाहब के आने में देर है, उनके आने से पहले आद्या बेबी को ले आऊँगी। मैं भी आराम करलूं। आद्या को सम्हालते – सम्हालते वह भी थक गई थी। 




दोपहर को कमली घर पर आई।आद्या को वहाँ देखकर हैरान रह ग‌ई बोली – ‘बेबी रानी आपकी मम्मी नाराज होगी.’ ‘नहीं होगी आन्टी मम्मा घर पर नहीं है।’ कमली ने तीनों बच्चों को खाना रखा, तो आद्या बोली – ‘आन्टी मुझे नहीं खिलाओगी, मुझे भी खाना है।’

‘बेटा ये सूखी रोटी और भाजी तुम कैसे खाओगी?’

‘खा लूंगी आण्टी।’ कमली मना कैसे करती, उसने उसे भी खाना रखा। आद्या ने बच्चों के साथ भरपेट खाना खाया। शोभना के आने से पहले सूजी आद्या को ऊपर ले ग‌ई‌, और उसके कपड़े बदल दिए। आद्या भी खुश और सूजी  भी। आद्या के स्वास्थ में सुधार आने लगा था। चुन्नी, मुन्नी, गुल्लू उसके दोस्त बन गए थे। शोभना को लगता कि यह सूजी की देखभाल का नतीजा है। यह क्रम ६-७ दिन तक चलता रहा। एक दिन शोभना ऑफिस से जल्दी घर आ गई। 

उसने देखा कि आद्या बच्चों के साथ खाना खा रही है। वह आद्या को ऊपर ले ग‌ई, और उसे खूब डाटा।सूजी पर बहुत नाराज हुई। कमली को भी बुरा भला कहा, नीच जाति की, गरीब, लालची, चोर और कई बातें बिना सोचे समझे कहती चली गई। कमली कुछ नहीं कह पाई, बस आँखों से आँसू बहते रहै। बच्चे सहमें से एक कोने में दुबक गए। कमली ने निर्णय ले लिया था, कि अब वह यहां नहीं रहेगी।

शोभना ने आद्या का वास्ता देकर उसे रोक लिया। कमली ने बाबा से चाबी ली और ताला खोलने लगी, तो शोभना ने कहा – ‘कमली पहले मेरे साथ चलकर आद्या से मिल लें, बच्चों को भी साथ में लेले।’  बच्चे पहली बार आद्या के घर जा रहै थे। उन्होंने बस वह खिड़की देखी थी, जहाँ से आद्या नजर आती थी, वे बहुत खुश थे। आद्या सोई थी, शरीर बुखार से तप रहा था और चेहरा लाल हो गया था। 




शोभना ने कहॉ – ‘देखो बेटा तुम्हारी आन्टी आई है, साथ में चुन्नी, मुन्नी और गुल्लू भी हैं।’ आद्या ने आँखे खोली, उसने कमली की हथेलियों को कसकर पकड़ लिया और कहॉ – ‘आन्टी आप कहाँ चले ग‌ए थे, मुझे छोड़कर कहीं मत जाना।’  कमली की आँख से आँसू बह रहे थे, उसने कहॉ – ‘बेबी रानी आप जल्दी से अच्छी हो जाएं, हम कहीं नहीं जाऐंगे।’ 

आद्या उठ कर बैठ गई, उसने दोस्तों को पास में बुलाया, तब तक शोभना नाश्ता लेकर आ गई थी। बच्चे डरे हुए थे,शोभना ने कहॉ – ‘बेटा, आध्या को अपने साथ खिलाया करो,तुम लोग अब कहीं नहीं जाओगे।’ सबने साथ में नाश्ता किया, सब खुश थे। शोभना ने आद्या को दवाई दी, उसका बुखार उतरने से उसे नींद आ गई। कमली और बच्चे उनकी खोली में चले गए। बालक मन प्रेम की भाषा जानता है वह नहीं जानता ऊँच-नीच, गरीबी – अमीरी। वह सहज स्वाभाविक खुशी चाहता है। शोभना भी इस तथ्य को जान ग‌ई थी। 

#5वां_जन्मोत्सव  

प्रेषक

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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