इतना दबाव क्यों? – गीता वाधवानी

एक छोटे से शहर गाजियाबाद में रहने वाली दिव्या ने दसवीं कक्षा में टॉप किया था। पूरे विद्यालय में उसका नाम गूंज रहा था। उसकी मां आशा और पिता राजेश बहुत खुश थे। वह अपने माता पिता की इकलौती संतान थी। दसवीं कक्षा पूरी होते ही दिव्या की मां ने पहले 11वीं और फिर 12वीं कक्षा की पढ़ाई को लेकर दिव्या पर अत्यधिक दबाव डालना शुरू कर दिया। 

उन्होंने दिव्या से कहा-“तुम्हें गणित और बाकी विषयों में बोर्ड की परीक्षा में पूरे जिले में टॉप करके दिखाना है। दिव्या को पढ़ाई से बहुत लगाव था और वह बहुत ही होशियार थी लेकिन फिर भी पूरे जिले में टॉप करके दिखाना है इस बात से बहुत तनावग्रस्त हो गई थी। 

11वीं कक्षा में वह प्रथम आई थी। किंतु बोर्ड की परीक्षा कि उसे इतनी अधिक चिंता हो गई थी कि उसे कुछ भी पढ़ा हुआ याद ही नहीं रहता था। वह यही सोचती रहती थी कि अगर वह टॉप नहीं कर पाई तो? 

हर पल उसके सामने, उसकी मां की बनाई हुई समय सारणी घूमती रहती थी। उसकी मां ने उसे सारणी के अनुसार पढ़ाई करने के सख्त निर्देश दिए थे। दूसरी लड़कियों की तरह वह बाहर घूम भी नहीं सकती थी। सिर्फ स्कूल जाना और फिर वापस आकर पढ़ाई करना यही उसकी दिनचर्या बन गई थी। दिव्या की नींद भी पूरी नहीं हो पाती थी और ना ही वह ढंग से कुछ खा पी सकती थी। 

दिव्या के पापा ने उसकी मम्मी को कई बार समझाया था कि”दिव्या पर इतना दबाव मत डालो। हमारी इकलौती औलाद है कहीं कोई ऊंच-नीच ना हो जाए। वैसे भी हर बच्चे की अपनी अपनी क्षमता और गुण होते हैं। हमारी दिव्या तो पढ़ाई में बहुत अच्छी है। वह अपने आप मेहनत करती रहती है। पूरे जिले में प्रथम आने का दबाव उस पर डालना ठीक नहीं।” 




लेकिन आशा किसी की नहीं सुनती थी। उसे तो अपनी सहेलियों में अपनी नाक ऊंची करनी थी और अपनी इच्छा दिव्या से पूरी करवाना चाहती थी। 

धीरे-धीरे प्री बोर्ड की परीक्षा का समय आया। उसमें दिव्या के 80% अंक आए। जिन्हें देखते ही आशा भड़क गई और उसने दिव्या को बहुत डांटा और कहा कि”80% अंक लेकर तुम कैसे प्रथम आओगी? क्या इस तरह तुम मेरा सपना पूरा करोगी। अब तुम्हारी यही सजा है कि तुम आज का दिन बिना सोए और बिना कुछ खाए पूरा दिन पढ़ाई करोगी।” और फिर सचमुच उसने दिव्या को ना कुछ खाने को दिया और ना ही उसे सोने दिया। 

दिव्या बहुत उदास थी और अपनी मां का सपना भी पूरा करना चाहती थी, पर तनाव के कारण कुछ नहीं कर पा रही थी। बोर्ड की परीक्षा आरंभ हुई। दिव्या के पहले पहले दो पेपर बहुत ही बढ़िया हुए और तीसरे पेपर वाले दिन वह शाम तक घर नहीं लौटी। 

उसके मम्मी पापा उसे ढूंढते हुए परीक्षा केंद्र तक पहुंच गए। उन्होंने देखा कि एक बैग दीवार के सहारे लावारिस पड़ा है। उसे देखकर दिव्या की मां ने पहचान लिया कि यह बैग दिव्या का है। 

उन्होंने बैग को टटोला तो देखा कि उसमें एक कागज रखा है। 

एक अनजान भय से कांपते हुए उन्होंने वह कागज खोला। यह एक पत्र था, दिव्या का पत्र। 

“मेरी प्यारी मम्मी, मेरे पहले दो पेपर बहुत ही बढ़िया हुए थे और आज का पेपर ठीक ठीक हुआ। अंक ठीक आ जाएंगे। मैं प्रथम तो आ जाऊंगी लेकिन आपके कहे अनुसार पूरे जिले में टॉप नहीं कर पाऊंगी। मैं सिर्फ अपने विद्यालय में प्रथम आ पाऊंगी। मुझे अफसोस है कि मैं आपका सपना पूरा नहीं कर सकी इसीलिए मैं अपना जीवन समाप्त करने जा रही हूं। 




                 आपकी नाकामयाब बेटी दिव्या। 

दिव्या के माता-पिता को सहसा पास से गुजरने वाली रेल की पटरी का ध्यान आया और वह उसी और भागे, लेकिन उन्हें देर हो चुकी थी। दिव्या की तितर बितर कटी हुई लाश उन्हें पटरी पर मिली। 

यह देखते ही दिव्या के पापा आशा पर फट पड़े।” और दबाव डालो, सख्ती करो। मैंने तुम्हें कितनी बार समझाया था पर तुम्हारे कान पर जूं तक नहीं रेंगी। जिन लोगों के पास औलाद नहीं होती उनसे जाकर औलाद का महत्व सीखो। अपनी नाक ऊंची करने के लिए तुमने दिव्या को मार डाला। मेरी बेटी की हत्यारिन तुम्ही हो ।”

आशा, अपनी बेटी से क्षमा मांग रही थी और दहाड़े मार-मार कर रो रही थी। 

(मेरे विचार से बच्चों पर पढ़ाई के मामले में इतना दबाव नहीं डालना चाहिए कि वह तनाव में आकर गलत कदम उठा ले क्योंकि हर बच्चे की अपनी अपनी रूचि, क्षमता और दिमाग होता है लेकिन आजकल का कंपटीशन देखकर माता-पिता अनजाने में ही बच्चों पर दबाव डाल देते हैं।) 

स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

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