क्या बताऊं कृति…. ये गर्मी आते ही ना एक नया टेंशन शुरू…. एक तो गर्मी की छुट्टियों में बच्चे वैसे भी घर में धमा चौकड़ी मचाए रहते हैं….ऊपर से नंद रानी भी अपने बच्चों को लेकर आ जाती है….!
वो क्या है ना कृति ….तु जितना अपनी नन्द को करती है ना उतना तो कोई भी नहीं करता …..मैं भी नहीं…..चाय की प्याली रखते ही अपने शब्दों में जोर डालते हुए अनु ने कृति से कहा और कहते कहते वेग में शिकायत भरे लहजे में ये तक कह डाला कि….
” हमारे लिए तो तूने और भी मुश्किलें खड़ी कर दी है …जब देखो तुलना तुमसे ही की जाती है “…
अनु को यकीन था ये सब सुनकर कृति बहुत खुश होगी… जाने अंजाने उसकी तारीफ जो हो रही है…..पर ये क्या… कृति के चहरे पर विस्मय,आश्चर्य का मिला जुला स्वरूप…हल्की सी मुस्कराहट लिये कृति न जाने कौन से दिन में लौट गई…….
तीन भाई बहनों में मम्मी पापा की सबसे छोटी और लाड़ली बेटी कृति…शादी के बाद एक दुर्घटना में मम्मी पापा की मौत हो गई… दोनों भाइयों की शादी हो चुकी थी …!
शुरू शुरू में तो सब ठीक ठाक ही था…. मायका ससुराल आना जाना लगा रहता था ,कभी भी उसे अचानक मायके जाने में हिचक नहीं हुई …पर धीरे धीरे उसे एहसास होने लगा कि अब मायके में उसकी उतनी जरूरत नहीं है जितनी उसको मायके की है….कहते हैं ना….
लड़कियां खुद ही कब पराई हो जाती हैं पता ही नहीं चलता….अरे वो चाहती क्या थी……कुछ दिन ..कुछ पल अपनों के साथ ,अपने घर मे जहां उसका जन्म हुआ , बचपन बीता… उनके साथ समय बिताना……खैर…..
समय बीतता गया….जिंदगी के कुछ इन्हीं कटु अनुभवों के चलते कृति ने एक अहम निर्णय लिया कि ….
ससुराल में अपनी नंद को हर वर्ष उसी समय बुलाएगी जब उसकी बेटियाँ अपने ससुराल से आती हैं… इससे बुआ भतीजी के रिश्तों में और प्रगाढ़ता आएगी और कुछ रीति रिवाज जो समाप्त होने के कगार पर है….और कुछ रिश्ते जो मृतप्राय हो चुके हैं …उन्हें एक नई जिंदगी मिलेगी और बस क्या था उसी दिन से……..
आज भी उस रिवाज परंपरा को कृति बखूबी निभा रही है…..
अरे कृति कहा खो गई …? अनु ने कृति को अतीत की स्मृतियों से बाहर निकाला…..अरे नहीं यार अनु …. ऐसा नहीं है…. कहते हुए कृति ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा…
….. ” मेरे और तुम्हारे में फर्क़ है तो बस नजरिए का “…..
तुम वही करती हो जो तुम्हारे साथ हो रहा है …और जो तुम अपने मायके से पा रहीं हो …वही अपनी नंद को दे रहीं हो…. चाहे वो सम्मान ही क्यों ना हो…!
और मैं ….जो मुझे मायके में नहीं मिलता और जिसकी मुझे अभिलाषा होती है… वही देने की कोशिश करती हूं…. जो हर लड़की चाहती है …सिर्फ अपनापन , प्यार…. वो घर जिसे वो भी अपना घर कह सके……कृति के चेहरे में एक सुखद आत्मविश्वास का भाव साफ़ दिखाई दे रहा था….कृति की बातों ने अनु को पूरी तरह झकझोर दिया …!
कृति ने आगे कहा….जानती है अनु… मेरी ननद से मेरा रिश्ता बिल्कुल याराना है …जब वो आती हैं …हम लोग देर रात तक गप्पे मारते हैं …अपने दिल की बात जो मैं ससुराल में किसी से नहीं कह पाती वो अपनी ननद से बेझिझक कह लेती हूं ….!
एक वही तो हैं ….जिनसे मैं अपने घर यानी उन्हीं के मायके के बारे में अपने मन के सारे कशमकश खोल कर रख देती हूं….और नंद भी मुझे दोस्त मानती हैं… मेरी हर समस्या को बड़े ध्यान से सुनती है… बुरा मानने की बजाय यथा संभव मदद करने की कोशिश भी करती हैं..!
अनु जो बड़े ध्यान से कीर्ति की बातें सुन रही थी सोचने पर मजबूर हो गई…
सच ही तो कहा कृति ने….मैं तो हमेशा ही यही सोचती थी… मुझे कितना सम्मान मिल रहा मायके में ….जो मैं अपनी नंद को दूँ….पर पहली बार एहसास हुआ अनु को… फर्क़ है तो सिर्फ नजरिए का…सिर्फ नजरिये का…….!!
अरे क्या हुआ अनु…. किस सोच में डूब गई…. मैने कुछ गलत कह दिया क्या…?
नहीं कृति…. तुमने गलत नहीं बल्कि मुझे सही राह दिखाया…. मैं अपनी सोच पर खुद ही शर्मिंदा हूं…. पर खुश हूं कि मेरी आंखें खुल गई… मुझे अपनी सोच पर प्रायश्चित करने का मौका मिल गया…. सिर्फ एक सोच और नज़रिया बदलने से कितना सुखद सकारात्मक बदलाव होता है…!
अरे कहां चली अनु…? अनु को कुर्सी से उठते हुए देख कृति ने पूछा….
अब देर किस बात की …चलती हूं फोन करने ….नंद रानी को बुलाना जो है….!
हंसते हुए अनु ने जवाब दिया….!
सच में कृति ….” आज मैं उस पल के एहसास को महसूस कर पा रही हूं कि…. मेरे एक फोन जाने से वो कितनी खुश होगी….. इस कल्पना मात्र से ही उनकी तो छोड़…. मुझे बहुत खुशी हो रही है…!
वाकई अनु…अब तेरी सोच और नजरिया बदल गया है….देखना अब तेरी भी तारीफ मुझसे भी ज्यादा होगी… इस बात पर दोनों सहेलियां हंस पड़ी…।
(स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित रचना )
साप्ताहिक विषय : # प्रायश्चित
संध्या त्रिपाठी