नया सवेरा – संस्कृति सिंह

इस सम्मान की हकदार मैं नहीं बल्कि मेरे माता पिता हैं। जब पूरे समाज ने मेरा बहिष्कार किया तब उस  हालात में भी उन्होंने पूरी दृढ़ता के साथ मुझे सम्भाला और आज मैं जो कुछ भी हूं उनके साथ कई बदौलत ही हूं।

नव्या मेहता…… जिन्हें १०० बच्चों को गोद लेने और एक परिवार की तरह मान सम्मान के साथ उनकी बेहतरीन परवरिश के लिए आज मुख्यमंत्री के समक्ष सम्मानित किया जा रहा था। परंतु नव्या ने इसका पूरा श्रेय अपने माता पिता को दिया।

बड़े नाजों से पाला था रमा जी और आलोक जी ने नव्या को आखिर इकलौती जो थी वह अपने परिवार की। एक मध्यमवर्गीय आधुनिक विचारधारा वाले मगर अपनी परंपरा और संस्कारों से जुड़ा हुआ परिवार था उनका। नव्या बचपन से ही काफी होशियार थी। हर क्षेत्र में वह अव्वल थी। बारहवीं तक की शिक्षा उसने अपने गांव से ही पूरी की । 

अब आगे वह इंजीनियरिंग करना चाहती थी। जल्द ही उसने इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा भी पास कर लिया। इंजीनियरिंग कॉलेज की सुविधा पास में उपलब्ध न होने के कारण अब उसे शहर जाना था। माता पिता रह रह कर चिंतित हुए जा रहे थे। गांव में पली बढ़ी लड़की इतने बड़े शहर में सामंजस्य बिठा पायेगी या नहीं। धीरे धीरे उसके दाखिले की तारीख भी आ गई। नव्या को कालेज छोड़ उसके माता पिता वापस गांव आ गये। कालेज के शुरुआती दिन नव्या के लिए थोड़ा चुनौती पूर्ण रहा।

 अपने साथ के  छात्र-छात्राओं के व्यंग्य भरी नजरों से वह थोड़ी असहज हो जाती। लेकिन उसने हार  नहीं मानी। अपने प्रथम सेमेस्टर में उसने टाॅप किया। धीरे धीरे अब वह अपने साथियों के साथ घुल-मिल गयी। परंतु इस दौरान वह कुछ ग़लत संगति में फंस गई। आये दिन पार्टी का चस्का अब उसे लग चुका था। अपने गांव की प्रतिभाशाली छात्रा अब एक औसत छात्रा बनकर रह गई थी। 




ख़ैर किसी तरह उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक ठीक ठाक ही नौकरी भी कर ली। एक दिन उसकी मुलाकात उसकी ही एक दोस्त ने सौरभ नाम के एक लड़के से करवाया। जान पहचान बढ़ने के साथ साथ अब उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई। दोनों अब एक साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने लगे। एक दिन  सौरभ ने उसे सिगरेट ऑफर किया और धीरे धीरे कब नव्या ड्र्ग्स की शिकार हो गयी उसे पता भी न चला। 

वो कहते है न विनाशकाले विपरीत बुद्धि माता पिता के लाख समझाने के बाद भी उस पर कोई असर न हुआ। पिछले करीब छः महीने से उसने अपने माता पिता से बात चीत बंद कर दी थी। अब नव्या की सेहत दिनों दिन खराब होती जा रही थी। पिछले दो महीने नव्या आफिस में भी अनुपस्थित रही। इसी बीच नव्या गर्भ से रह गई। नव्या ने सौरभ के सामने अपनी बात रखी तो सौरभ ने तुरंत ही अपना पल्ला झाड़ लिया और नव्या के साथ संबंध भी तोड़ लिया। 

अब नव्या पूरी तरह बर्बाद हो चुकी थी। उसे अब आत्महत्या  के सिवा कोई विकल्प न सूझ रहा था। उसे अपने माता पिता की बहुत याद सता रही थी मगर अफसोस काफी देर हो चुकी थी और वापस लौटती भी तो किस मुंह से। जैसे ही नव्या ने फंदा गले से लगाया तभी किसी ने उसे वापस खींच लिया और एक जोरदार तमाचा उसकी गालों पर जड़ दिया।  दरअसल नव्या का फोन नंबर न मिल पाने के कारण उसकी ही एक सहकर्मी ने उसके घर फोन किया था और एन वक्त पर उसके माता पिता ने आकर उसे बचा लिया। धीरे धीरे नव्या का इलाज करवाया गया। नव्या ने   भी बड़ी दृढ़ता पूर्वक अपने ड्र्ग्स की आदत से छुटकारा पा लिया। 

अब वह पूरी तरह स्वस्थ थी लेकिन असल इम्तिहान तो अभी बाकी था बिनब्याही गर्भ से होने के कारण समाज ने उनसे किनारा कर लिया। अपने माता पिता का साथ पाकर और जीवन के इस घिनौने रूप को देखकर अब वह सम्भल चुकी थी , उसे अपनी गलतियों से सबक मिल चुका था। अपने पिछले बुरे वक्त को पीछे छोड़ अब वह एक नई शुरुआत करने की ठान चुकी थी। उसने अपने बच्चे को जन्म देने और उसे अच्छी परवरिश देने का निश्चय किया। उसके इस फैसले में उसके माता पिता ने उसका साथ दिया। 




कुछ समय बाद उसने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया और मजबूती से उसके परवरिश में जुट गई। कहते हैं जड़ें अगर गहरी हो तो बाहर का तूफान कोई मायने नहीं रखता। नव्या के जीवन में भी एक भयानक तूफान आया लेकिन नव्या अब एक खुशहाल जीवन की ओर अग्रसर हो चुकी थी। समाज और देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को अब वह बखूबी समझ रही थी। नव्या अब ड्र्ग्स जैसे संवेदनशील मुद्दे पर लोगों को जागरूक कर  रही थी। इसके साथ ही उसने उन बच्चों को अपनाने की ठान ली जिन्हें मां बाप जन्म देकर छोड़ जाते हैं। नव्या ने उन बच्चों को परिवार का रूप दिया और उनकी बेहतरीन परवरिश दे रही थी।

धन्यवाद

संस्कृति सिंह

मुंगेर

बिहार

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