जीवन के कई रंग…. एक रंग भेदभाव के…!! – सीमा कृष्णा सिंह

मुझे बस पोता चाहिए और कुछ नही, एक बार कह दिया तो  कह दिया”। अनुराधा की सासु मां गायत्री अपना फ़रमान जारी करते हुए कहती है।

“पर ये क्या बात हुई…ये किसी के बस में तो है नहीं की लड़का होगा की लड़की…… और अभी अभी तो उसके आने की आहट हुई है और आप भविष्यवाणी भी करने लगी।ये क्या बात हुई। अभी सफर थोड़ा लम्बा है..”। अनुराधा अपनी सासु मां को कहती है।

“मैं ये सब नही जानती…बस मैं जो कुछ भी कहूं वहीं तुम करोगी… देखना पक्का बेटा ही होगा।”गायत्री गुस्से में अनुराधा को बोल अपने काम में लग जाती है।

“ये क्या बात हुई..जो अभी तक जन्मा नही….उसकी भविष्यवाणी की जा रही है…. और जो वर्तमान में है उसकी कद्र नही। मेरे दोबारा मां बनने की खुशी मुझसे कहीं ज्यादा आपको है….अच्छी बात है। पर ये क्या… आचनक से आपके स्वाभाव में इतना परिवर्तन क्यों????जिस पोती के बिना आपका एक पल कटता नहीं था और आज वही पोती के साथ एक पल गुजराना गंवार नहीं।ये  आपके प्यार का कौनसा सा रंग है जो उस  मासूम के प्यार रंग के आगे फीका पड़ने लगा है।ये सही नहीं है….???”अनुराधा अपनी सासु मां गायत्री से कहती हैं…

“मैंने कब इनकार किया की मैं अपनी पोती से प्यार नही करती.. पर अगर मैं एक पोते की भी इच्छा रखती हु तो इसमें क्या ग़लत है “। गायत्री अपनी मन की बात अनुराधा को कहती है।

“इसमें कुछ ग़लत नही…ये तो आम बात है..अगर आपकी पहली संतान बेटा हो या बेटी….तो दुसरी संतान हम बेटी या बेटा ही चाहेंगे।पर ये किसी के बस में तो नहीं हैं।मैं बस इतना कहना चाहती हुं….जो रिश्ता आज आपकी पोती के साथ..वहीं प्यार भरा रिश्ता हमेशा साथ रहे।वो कभी किसी के आने से बदले नही…मैं नही चाहती की वो नन्ही सी जान आगे चल कर आपसे कोई सवाल करें। दादी आपने मेरे साथ भेदभाव क्यों किया??? संतान का सुख  मिलना होगा तो किसी से भी मिल सकता है चाहे वो बेटी हो या बेटा…।अगर पोता ना हुआ पोती हुई तो क्या आप उसे मुझे छोड़ देगी??? ज़बाब दिजिए?? नही ना?? अच्छा ये सब छोड़िए एक सवाल का जबाव दिजिए आज आपके बेटे के पास आपके लिए कितना समय है??? आफिस से घर,घर से आफिस… कितने दिन हुए है एक साथ समय बिताए हुए। आपकों याद है??? अनुराधा सवाल करती है??




अनुराधा की बातों को सुनकर गायत्री जी कहती है “तुम ठीक ही कह रही हो…। मुझे तो याद भी नही है की.कब????.वो अपने काम में इतना व्यस्त रहता है की…. उससे दो पल अच्छे से बात भी नही हो पाती। एकलौती संतान होने का  यही ग़म है या खुशी पता नहीं।पर मैं तेरी बातों को अच्छी तरह से समझ रही हु..जो तुम मुझे समझाना चाहती हो… यही ना भविष्य की चिंता छोड़ वर्तमान में जिएं।जो है नहीं उसकी परवाह क्यों करें.???..जो है उससे साथ जिंदगी जीने का मजा ले। पोता हो या पोती….मै खुले दिल से स्वागत करूंगी। मेरे प्यार का रंग  एक ही..सब के लिए वो भी बिना किसी भेदभाव के।

बस अब तुम अपना और अपने आने वाले बच्चे का ध्यान रखो..बाकी सब के लिए मै हु ना।मैं अपनी नन्ही परी से बहुत प्यार करती हूं..एक पल के लिए मन भटक गया था..। कैसे भुल सकती हु मै उसके आने से ही मेरी सुखी सी जिंदगी में सावान की बरसात हुई है।माफ़ कर दो बेटा।”गायत्री अनुराधा से माफी मांगते हुए कहती है….

“क्या मां आप भी कोई मां अपनी बेटी से मांगती है।भाले ही हमारा रिश्ता सास बहू का है…पर दिल से हम लोगों का रिश्ता मां बेटी का  है… तभी तो बिना डरे मन की बात आप से कह पाई।”अनुराधा गायत्री जी कहती है…. तभी “क्या बात है आज सास बहू की जोड़ी कौन सा धमाल मचाने जा रही है “। अनुराधा का पति अनिल अपनी मां और पत्नी से मजाक करते हुए कहता है”।

यही धमाल मचाने की बात चल रही है की तुम फिर से पापा और मैं दादी बनने जा रही.”। गायत्री जी अपने बेटे अनिल को खुशखबरी देते हुए कहती है।

“भाई मुझे तो बेटा चाहिए..बस…जो आगे चलकर मेरा काम संभाले”। अनिल अपनी मां से कहता है।

“खबरदार ये बात फिर से कही तो…. बेटा हो या बेटी कोई फर्क नही पड़ता..बस मां और बच्चा स्वस्थ हो, समझें। तेरे करोबार को संभालने के लिए मेरी पोती ही काफी है…समझें । गायत्री जी की बातों को सुनकर अनिल कहता है “मां मैं तो मजाक कर रहा था”।,पर मैं मजाक नही कर रही थी…. गायत्री जी कहती है।ये कह कर गायत्री जी हंसने लगती है और उन्हें हंसता देख सब परिवार हंसने लगते  है।




बात में सच्चाई है…. अगर पहले से पोती है तो पोते के आने की खुशी में उसके  साथ सा थोड़ा भेदभाव करते हैं..जो की सही नहीं है।मैं ये नही कह रही  हु की सब करते हैं..पर कुछ लोग तो करते हैं….पोते के आने की खुशी में… पोती के प्रति उनके प्रेम का रंग बदल जाता है।ये जिंदगी के  सब रंगों में से एक रंग है “भेदभाव”का।

अगर आपको मेरी कहानी अच्छी लगी हो तो। कृपया कर अपने विचार जरूर शेयर करें। इंतजार रहेगा। कुछ ग़लत लिखा हो तो माफी मांगती हु

धन्यवाद

आपका अपनी

सीमा कृष्णा सिंह

हैदराबाद

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