नन्ही रोशनी – विजया डालमिया

यूँ तो सुबह रोज होती है, पर वह सुबह मेरी जिंदगी की सबसे ज्यादा प्यारी और अनमोल सुबह बन गई। मैं बालकनी में बैठा चाय के साथ अखबार का मजा ले रहा था। तभी किसी की आवाज कानों में पड़ी….. मम्मी लगी तो नहीं आपको? उठो ना। मैंने देखा 8  से 9 साल की एक बच्ची अपनी माँ को नन्हे नन्हे हाथों से सहारा देकर उठाने की कोशिश कर रही थी। बगल में एक ट्रक खड़ा था । मैंने देखा ट्रक में ज्यादा सामान नहीं था। पर ट्रक वाले ने सामान उतारने से मना कर दिया। वे दोनों परेशान दिख रही थी ।मैंने सोचा… मुझे क्या? पर तभी बच्ची ने  ट्रक वाले से कहा…. “भैया जी आप सामान उतार दीजिए ना।” और इतना सुनते ही ट्रक वाला जोर से बोला… 

ए छोकरी यह हमारा काम नहीं है। मैंने देखा, सुना और अंदर से एक उबाल आया। मैं गेट खोलकर बाहर गया और सख्त स्वर में कहा….” सामान तो आप ही को उतारना होगा”। मेरी आवाज की सख्ती  से वह घबरा गया। कहने लगा…” बाबू जी, जरा आप भी मदद करवा देते तो …”मैंने कुछ कहा नहीं, पर मेरी आँखों से वो  समझ गया ।तुरंत सामान उतारने लगा ।तभी वह बच्ची मेरे पास आई और कहा…. “थैंक्यू अंकल ।मैं नन्ही ,और आप?

 “मैंने कहा….. “मैं …मैं ..अंकल”। वह हँस पड़ी ।तुरंत मेरा हाथ पकड़ा और कहने लगी….” मम्मी यह अंकल बहुत अच्छे हैं ।एकदम अपने से लगते हैं”। जैसे ही उसने यह कहा मेरी आँखें भीग गई और जब नजर उठाकर देखा तो मेरे सामने एक सौम्यता व सादगी की मूर्ति हाथ जोड़े खड़ी थी।..”नमस्ते…. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद “।मैंने कहा… “कोई बात नहीं” फिर मैने मुस्कुराते हुए कहा ….”अभी ये सामान भीतर भी तो रखना होगा”। सुनते ही वह नन्ही उछल पड़ी ।आदेशात्मक लहजे में उसने कहा ….”जी अंकल। चलिए ।आप भी हमारी हेल्प करवाइए”। अपनी गोल-गोल आंखों को मटका कर कुछ इस अंदाज में उसने अपनी बात मुझसे कही कि मैं ना चाहते हुए भी मुस्कुरा उठा और कहा… चलो। यह थी नन्ही से मेरी पहली मुलाकात।

दूसरे दिन सुबह सुबह दरवाजे पर दस्तक। मैं गहरी नींद में था। तभी… अंकल-अंकल ।मैं हड़बड़ा कर उठा ।दरवाजा खोला तो सामने मुस्कुराती हुई नन्ही खड़ी थी। “गुड मॉर्निंग अंकल”



। “वेरी गुड मॉर्निंग बेटा”.. क्या बात है? पर उसका ध्यान कहीं और था। मैंने देखा वह आश्चर्यचकित मेरे अस्त-व्यस्त घर को निहार रही थी ।फिर कहा… “अंकल, बाकी लोग कहाँ  हैं”?उसके इस सवाल का मेरे पास उस वक्त कोई जवाब नहीं था। मैंने उससे कहा …”अरे तुम बैठो तो सही”। तो वह कहने लगी …”आप इतना लेट उठते हो” ?मैंने कहा.. हूं।.

.. “हूं क्या …?आपकी मम्मी आपको डांटती  नहीं क्या “?और मुझे एकटक देखने लगी ।तभी उस बच्ची ने ना जाने क्या समझा बोल उठी…” मैं अभी आती हूँ। आप  गेट मत बँद करना “और कुछ ही देर में वह गरमा-गरम पोहे लेकर मेरे सामने खड़ी थी। साथ ही लाई थी प्लेट व चम्मच।” चलो अंकल, हम आज पोहे साथ साथ खाएँगे “और मैं कुछ कहता उसके पहले वह पोहे अपने हाथों से मुझे खिला चुकी थी। क्या बताऊं दिल में जो खुशी थी वह फिर आँखों में आँसू  बन समा गई ।इतने टेस्टी पोहे मैंने कभी नहीं खाए थे। शायद  नन्ही  के हाथों का जादू था ।

अब तो यह रोज-रोज होने लगा। उसने मुझे और मेरी दिनचर्या को समझ लिया। उसी हिसाब से वह मेरे पास आना जाना करने लगी। सच कहूँ तो मेरे एकाकी जीवन में नन्ही खुशी का एक झोंका बन कर आई थी,जिसके आने से मेरी तन्हाइयाँ सज उठी थी ।मेरा घर जिसमें सिर्फ दीवारें थी, अब घर सा लगने लगा था ।उन दीवारों में नन्ही की हँसी और चंचल बातों का रँग भरने लगा था ।पहले पहले तो वह आते से ही मेरे बिखरे घर को अपने छोटे-छोटे हाथों से ठीक करने की कोशिश करती थी। फिर मुझे ही अटपटा लगने लगा और मैंने घर को व्यवस्थित रखना शुरू कर दिया ,ताकि उसे ना करना पड़े। छोटी सी बच्ची बिना कुछ कहे मुझे व्यवस्थित रहना सिखा रही थी और मैं उस आनंद की अनुभूति में डूबता चला जा रहा था ।उस नन्हीं सी बच्ची में मुझे सारे रिश्ते नजर आने लगे थे। कभी वह माँ की तरह समझाती और कभी बच्ची बन इठलाती और   कभी दोस्त की तरह हँसी की फुहारें लाती ।उसके साथ मैं जीने लगा था ।एक रोज जब वह आई तो उसके चेहरे पर उदासी थी। पूछने पर कहा… “मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है “इतना कहकर वह मुझे देखने लगी। 



मैंने उसका हाथ पकड़ कर कहा ….”चलो ,आज तुम्हारे घर चलते हैं”। जैसे ही हम घर में दाखिल हुए अगरबत्ती की भीनी भीनी खुशबू से तन और मन खुश हो गया ।ओम की धुन धीरे-धीरे बज रही थी। नन्ही ने कहा…. “मम्मी आप कहाँ हो? देखो, हम किसे  लेकर आए हैं “?कुछ ही देर में वही सौम्यता की मूरत मेरे सामने हाथ जोड़े खड़ी थी।…” बैठिए ।यह तो पूरे समय आप ही की बातें करते रहती है”। ..जी …”आपकी तबीयत  …..?”…”ठीक है। यह बच्ची है ना, जल्दी घबरा जाती है। चलिए.. इसी बहाने आप हमारे घर तो आए “।तभी नन्ही बोल पड़ी  कि …”अंकल मैं चाय बनाऊँ आपके लिए?”मेरे इंकार करते ही वह बोल उठी….” आप पहली बार आए हैं।

 ऐसा नहीं चलेगा “तभी मैं कह उठा …”मैं तो रोज ही आपके हाथों का बना जायकेदार खाने का लुत्फ उठाता हूँ “।सुनते से ही वो शर्मा गई ।मैं अभी चाय बनाकर लाती हूँ ।चाय पीते पीते उसने कहा… “नन्ही पूरे समय आपकी हर बात बताते रहती है । बहुत मानती है आपको” ।मैंने देखा नन्हीं अपनी मम्मी के गले में बाँहों  के हार डाले शरारत और संतुष्टि के भाव लिए मुस्कुरा रही थी ।मैं इतना तो समझ ही चुका था कि यह दोनों भी मेरी ही तरह अकेली हैं । हालाँकि दो लोग अकेले कैसे हो सकते हैं? अकेला तो मैं था। खैर ….मैं नमस्ते कहकर और नन्ही  से इजाजत लेकर घर आ गया।

 यहाँ मैं यह बता दूं कि  वह बच्ची मुझ पर अपना हक जमाने लगी थी। इसलिए उसकी इजाजत के बिना अब मैं कुछ भी नहीं करता था। मेरी सुबह की पहली किरण से लेकर रात के सितारे,सब नन्ही से ही जगमगाने लगे थे। फिर एक दिन नन्ही घबराई सी आई और कहने लगी… “अंकल जल्दी चलिए। मम्मी को पता नहीं क्या हो गया है”। 

मैं तुरंत भागा। जाकर देखा तो वे बेहोश पड़ी थी। मैंने तुरंत ऑटो बुलाया और हम हॉस्पिटल भागे। उन्हें इमरजेंसी वार्ड में ले जाया  गया । डॉक्टर ने उनके सारे टेस्ट करवाये ।नन्ही  एकदम खामोश हो गई थी। उसकी गोल मटोल आँखें जैसे सिकुड़ कर छोटी हो गई थी ।सारी रिपोर्टस दो दिन बाद मिली। डॉक्टर ने जैसे ही मुझे बुलाकर कहा…” आपने इन्हें लाने में बहुत देर कर दी ।अब यह कैंसर की लास्ट स्टेज पर है ” मैं हक्का-बक्का। मुँह से आवाज ही नहीं निकली। बस हथौड़े की तरह दिमाग में डॉक्टर की ही बात बार-बार वार कर रही थी ।



जैसे ही रूम में गया उसने आँखें खोली और धीरे से कहा ….”मुझे माफ कर दीजिए। मैं पता नहीं किस हक से इतनी बड़ी जिम्मेदारी आप पर डाले जा रही हूँ ।पर क्या करूँ ? मुझे और कोई नजर नहीं आता। मैं जानती थी कि मैं थोड़े ही दिनों की मेहमान हूँ । भगवान से दिन-रात दुआओं में यही माँगती थी कि  बस मेरी नन्ही को कोई सम्भालनेे  वाला मिल जाए तो मैं निश्चिंत होकर इस दुनिया से विदा ले सकूंगी। हमारे गाँव में हमारी प्रॉपर्टी तो बहुत है।

 पर वही मेरी नन्ही सी परी की  जान की दुश्मन बन गई और इसीलिए हमें रातों-रात यहाँ आना पड़ा।”…. कहकर वह रुक गई। वह मेरी ओर आशा भरी नजरों से देखने लगी। उसकी निगाहों में इतनी बेबसी और प्रार्थना थी कि मैंने तुरंत उसके हाथों पर अपना हाथ रखा और कह उठा ….”नन्ही पहले भी मेरी थी और हमेशा  मेरी ही रहेगी । 

यह जिम्मेदारी नहीं एक तोहफा दिया है आपने मुझे। बस नन्ही से कैसे कहूँगा ….”।मैं अपनी बात पूरी करता उसके पहले ही नन्ही मुझसे आकर लिपट गई व रोते-रोते बोली…” अंकल मुझे सब पता है “।मैं हैरत से उस नन्ही सी बच्ची को देखते ही रह गया  और आज मेरे भी सब्र का बाँध टूट गया। नन्ही  को अपनी बाँहों में समेट कर मैं  फूट-फूटकर रो पड़ा, यह कहते हुए …”हे भगवान ,यह तेरी कैसी माया है ?मेरी अब तक की नादानियों को माफ कर दिया तूने, मेरी जिंदगी में रोशनी की नई किरण देकर।”

ए दोस्त बता तेरा क्या नाम रखूँ ?

सपना रखूँ…. नहीं वह अधूरा रहेगा।

दिल रखूँ….नहीं। वह टूट जाएगा ।

चल साँस ही रख देते हैं नन्हे से फरिश्ते तेरा नाम।

अब तो तू मरते दम तक साथ साथ ही रहेगा।।

विजया डालमिया

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