कुणाल को कुत्ते बिल्ली बहुत पसंद थे ।पर उसके माता-पिता किसी भी कीमत पर न कुत्ता न बिल्ली ही पालने को तैयार थे।
एक दिन वह अड़ गया कि मुझे पप्पी चाहिए ही चाहिए नहीं तो मैं खाना ही नहीं खाऊंगा ।
लेकिन उसकी इस धमकी का भी उन पर कोई असर नहीं हुआ ।
वह जब तब कुत्ता पालने की जिद करता पर उसे बहला लिया जाता ।
थोड़ा बड़ा होते होते उसे ये समझ आ गया कि उसकी हर छोटी-बड़ी डिमांड तो पूरी हो सकती है लेकिन घर में पालतू जानवर किसी भी कीमत पर नहीं रखा जाएगा ।
यह बात उसे अक्सर ही उदास कर देती वो दूसरों के पास जब उनके पालतू देखता तो उदास हो जाता।
एक दिन कुणाल शाम के समय दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलकर घर आ रहा था कि एक छोटा पप्पी कूं कूं.. करके उसके पीछे-पीछे चलने लगा।
ओ कुणाल, कुणाल देख तो तेरे पीछे कौन आ रहा है? माधव हंसते हुए चिल्लाया।
इसके साथ ही और दोस्त भी हो हो हो… करके हंसने लगे।
कुणाल ने पीछे मुड़कर देखा एक गोल मटोल मटमैले रंग का झबुआ सा पप्पी उसके पीछे चला आ रहा था।
वह उसे ले ले ले…. करके खिलाने लगा तो वह उछल उछल कर उस पर चढ़ने की कोशिश करने लगा।
दोस्त हंसने लगे देखो कुणाल का नया दोस्त कुणाल का नया दोस्त।
हां, हां ये मेरा नया दोस्त ही है कहकर उसने उसे गोद में उठा लिया।
वह मन ही मन प्लान बना रहा था कि कैसे मम्मी को समझाएगा इसे घर में रख लेने के लिए लेकिन वह यह भी समझ रहा था कि यह संभव नहीं है।
उधर वह पप्पी कुणाल की गोद में सहमकर बैठ गया, ऐसा लग रहा था कि वह अपनी मां से बिछुड़ गया था और अब वह कुणाल की गोद में स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहा था।
कुणाल धीरे धीरे कदम बढ़ा कर आगे बढ़ रहा था और मन मन ही हां न, हां न की पहेली हल कर रहा था ।
अचानक उसे एक आइडिया सूझा और अब उसके कदम तेजी से आगे बढ़ रहे थे ।
वह घर पहुंचा दरवाजा खोला और उस पप्पी को दरवाजे के पास बैठाकर उसे वहीं रुकने का इशारा किया और तेजी से अंदर गया।
कौन कुणाल? आ गया ,आज लेट कैसे हो गया बेटा? कहती हुई नंदनी बाहर आईं तो कुणाल ने उंगली से चुप रहने का इशारा किया ।
क्या ???नंदनी ने भी आंखों और हाथों के इशारे से पूछा।
वह अंदर से एक कंबल ले आया और उसे फोल्ड कर बाहर बिछा कर उस पर पप्पी को बिठा दिया फिर उसके लिए दूध -बिस्कुट ले कर आया जिसे पप्पी ने तुरंत ही खाना शुरू कर दिया , ऐसा लग रहा था उसने सुबह से कुछ नहीं खाया था।
नंदनी ठोड़ी पर हाथ रखे इस कौतुक को कौतूहूल से देख रही थी।
जब पप्पी का पेट भर गया तो वह पैर फैलाकर लेट गया जैसे आश्वस्त हो कि अब उसे फिक्र करने की जरुरत नहीं ।
अब कुणाल नंदनी की तरफ़ मुखातिब हुआ और सारी घटना बताते हुए बोला, मम्मा देखो मैं इसे लेकर नहीं आया ये खुद चलकर मेरे पास आया है इसका अर्थ है कि जय मां ( भगवान) चाहती हैं कि मैं इसकी रक्षा करुं।
ठीक है न?
पर आप इसे अंदर नहीं रखने दोगी तो ये अब से यहीं गेट के बाहर रहेगा। यदि कहीं और जाना चाहेगा तो चला जाएगा नहीं तो मैं इसकी देखभाल खाना- पानी सब करूंगा और आप इसके लिए मना नहीं करोगी ?
हुंह!.
हुंह क्या मम्मी??
साफ़ साफ़ बताओ , ये हुंह का क्या मतलब है?
ठीक है ,इसे बाहर रखने से मुझे कोई समस्या नहीं, पर पापा का मैं नहीं कह सकती।
पापा को मैं मना लूंगा ,बस और कुणाल अब हवा में मुठ्ठी लहराते हुए नाच रहा था ।
मम्मी इसका नाम है पिंकू!
पिंकू तुम्हारा ये नाम ठीक है ना?
कुणाल के ये कहते ही पिल्ले ने कूं कूं कूं…की आवाज निकाली जैसे कह रहा हो कि उसे भी ये नाम पसंद है।
और बस अब पिंकू और कुणाल की दोस्ती पक्की हो गई।
सुबह, शाम, दोपहर हर वक्त कुणाल स्वयं भी ध्यान रखता और नंदनी भी यथासंभव ध्यान रखती।
पिंकू ने भी कभी अंदर आने की जिद नहीं की और बाहर रखकर पिंकू की देखभाल में किसी तरह की कमी कुणाल ने नहीं रखी ।
ऐसे ही दो साल गुजर गए।
एक दिन अचानक कुणाल के मम्मी पापा को इमरजेंसी में बाहर जाना पड़ा और घर पर कुणाल अकेला था ।
उसे डर लग रहा था पर वह कुछ भी नहीं कर सकता था ।
वह गेट पर आता फिर अंदर चला जाता ।
मम्मी को फोन लगाया तो वह बोली कि बेटा यहां समय लगेगा तुम ताला लगा कर अंदर बैठ जाओ और डरना नहीं ।
पर कुणाल तो पहले ही डरा हुआ था। वह डरते डरते बोला मम्मी मैं पिंकू को घर के अंदर बुला लूं क्या? मुझे फिर डर नहीं लगेगा।
नंदनी एकदम से सोच में पड़ गई लेकिन इस समय उसे भी कुणाल की बहुत फिक्र हो रही थी तो कुछ सोचकर बोली ठीक है उसे अपने साथ रखो लेकिन ध्यान से रहना । ठीक है मम्मी कहते हुए इस डर के पल में भी खुशी से झूम उठा।
उसने पिंकू को गेट के अंदर लिया और उससे बोला पिंकू मुझे बहुत डर लग रहा था पर अब तुम मेरे साथ हो तो मुझे बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा।
पिंकू ने भी गर्दन ऊंची की और अपना अगला पंजा उसके ऊपर रखते हुए उसे आश्वस्त किया कि डरने की कोई बात नहीं है।
कुणाल बेफिक्र होकर सो गया आधी रात के बाद गाड़ी के हॉर्न की आवाज आई तो पिंकू भौंका और कुणाल ने उठकर दरवाजा खोल दिया , मम्मी पापा घर आ चुके थे ।
पिंकू उन्हें देखकर गेट से बाहर निकलने लगा आखिर जानवर भी इंसान की मंशा को जानते हैं।
कुणाल भी चुपचाप उदास मुंह से उसे देख रहा था कि अचानक पापा बोले अरे पिंकू कहां चले ?तुमने तो नमक का हक अदा कर दिया आज से तुम भी घर के अंदर ही रहोगे,बाहर रहने की आवश्यकता नहीं। जरूरत के समय जो साथ खड़ा हो वही सच्चा हितैषी है और तुमने यह सिद्ध कर दिया है।
यह सुनकर कुणाल की खुशी का ठिकाना न रहा।
जो काम वह प्यार और धमकी दोनों से ही न करा सका था वही काम पिंकू की वफादारी ने चुपचाप करा लिया था ।
सही ही कहा गया है बड़े परिवर्तन बिना शोर के भी होते हैं।
पूनम सारस्वत