अनजान मंजिल – बालेश्वर गुप्ता

 अरे रमा तुझे क्या हुआ ,सुबह तक तो ठीक थी?

     कुछ नही ललिया, हॉस्पिटल तक गयी थी,सब ठीक हो गया है।

    क्या ठीक हो गया है?

मुझे वो ही हो गया है, जो झुमरी को हुआ है, मुझे भी एक ग्राहक मिल गया है, ललिया, डॉक्टर साहब  पूरे दो लाख रुपये दिला देंगे,और नौ महीने का सब खर्च पानी भी उन्ही के जिम्मे।

        उस बस्ती में ऐसी कई महिला थी,जो किसी संतानहीन दंपती के लिये सेरोगेट मदर बनने जा रही थी।उन्हें कमाई का ये शानदार तरीका लगता था।लाखो रुपये एक झटके में मिल जाते थे,फिर कुछ करने की जरूरत नही रहती थी,और पैदा किया बच्चा भी पास में नही रहता।बस अपनी कोख ही तो नौ महीने को किराये पर देनी पड़ती थी,फिर उन्हें इसके लिये कौनसा किसी से संबंध बनाना पड़ता था।

       ऐसे ही एक डॉक्टर ने आज रमा को भी एक निःसंतान दंपति के लिये उसे सरोगेट मदर बनने के लिये दो लाख में सौदा करा दिया।रमा जबसे अपने पेट मे उस दंपति  का बीज स्थापित कराकर आयी बस उसके सामने दो लाख रुपये घूम रहे थे ,वो तो उनसे क्या करेगी उसकी योजनाये बनाने में व्यस्त हो गयी थी।

        रमा की कोख में धीरे धीरे एक जान पनपने लगी थी,समय के अनुसार उसकी हलचल उसे महसूस भी होने लगी थी। फिर एक झटके से रमा अपना सिर झटक देती, हुँह ये कोई मेरा बच्चा थोड़े ही है।इधर मैं जन्म दूंगी और उधर वो दो महीने बाद आकर अपने बच्चे को ले जायेंगे।झुमरी के साथ भी ये ही हुआ था,साल भर का झंझट फिर अपनी मर्जी की आजाद जिंदगी।

रमा भी सोचती बस ये समय जल्दी बीत जाये, ढेर सारे पैसे आये और किस्सा खत्म।




     अब समय तो अपने हिसाब से ही व्यतीत होता है।हर पंद्रह दिनों के अंतराल में वो निःसंतान दंपति रमा से अवश्य ही मिलने आते।रमा से क्या वो तो अपने बच्चे को अपनी कोख में पालने वाली से मिलने आते थे,जिससे जन्म होने तक उनका बच्चा रमा के पेट मे स्वस्थ रहे,सुरक्षित रहे।इसके लिये वो रमा को हर सुविधा उपलब्ध कराते थे।

      एक दिन रमा को चक्कर आ गया और वो गिर गयी।कोई और समय होता तो ये कोई बड़ी बात नही थी,पर आज अचानक रमा अत्याधिक परेशान हो अपनी बस्ती के डॉक्टर के पास दौड़ ली,कही पेट मे पलने वाले बच्चे को कुछ हो तो नही गया।जब डॉक्टर ने कह दिया कि सब ठीक है तब रमा ने राहत की सांस ली।

     अब रमा अपना खूब ध्यान रखने लगी थी,पेट मे बच्चे की हलचल से वो रोमांचित हो जाती।फिर तो कभी ललिया से तो कभी झुमरी से अपने रोमांच का बखान करती,उन्हें पेट मे करवट बदलते बच्चे को दिखाती।झुमरी कहती भी अरे ये तो चला जायेगा,तू क्यों इतना खुश हो रही है,भले ही तेरे पेट मे ये हो,पर इससे तेरा कोई रिश्ता थोड़े ही है?

      हकीकत सुन रमा को अब अजीब सा लगने लगता,पर बात तो झुमरी सही कह रही थी।धीरे धीरे वो समय भी आ ही गया,आज रमा को हॉस्पिटल में दाखिल कर लिया गया,रात्रि में ही उसने एक बच्चे को जन्म दे दिया। निःसंतान दंपती अब निःसंतान नही रह गये थे,रमा की मार्फ़त वो आज उन्हें बेटा प्राप्त हो गया था।बस दो ढाई माह की बात थी,जब वो रमा से अपने बेटे को लेकर घर चले जायेंगे।उन्होंने रमा को खूब धन्यवाद दिया और कहा कि हमने तुम्हे दिये जाने वाली समस्त धनराशि डॉक्टर साहब को दे दी है, वो तुम्हे दे देंगे।रमा बस हाथ जोड़कर रह गयी।उसे अपने अंदर कुछ टूटता सा लग रहा था।दो लाख रुपयों के साथ देखे सपनों में उसे अब रुचि नही लग रही थी।




     तीन दिन बाद वो मुन्ना को ले अपने घर आ गयी।उसके बाद तो उसका जीवन ही बदल गया,रात दिन वो मुन्ना की देखभाल में ही लगी रहने लगी।एक मिनट को भी मुन्ना को आँखों से औझल नही होने देती।

        आज ही डॉक्टर साहब का संदेश आया कि रमा अगले सप्ताह रविवार को वो अपना बच्चा ले जायेंगे, तुम हॉस्पिटल आकर अपने पैसे ले जाना।रमा तो धक से रह गयी,क्या मुन्ना उससे छिन जायेगा?कैसे उसके बिना जी पाऊंगी?बावली सी हो गयी रमा।बड़बड़ा रही थी,मुझे नही चाहिये उनके पैसे,मैं अपना मुन्ना नही दूंगी।झुमरी आयी थी रमा से मिलने, सुन बोली,रमा बच्चा तो उन्ही का है,सौदा तय हुआ था,अब तेरा विलाप गलत है।बच्चे में अंश तो उन्ही दोनो का है,तेरा क्या है इसमें?

       चिल्लाते हुए बोली रमा इस बच्चे के शरीर मे खून है मेरा,मुन्ना ने दूध मेरा पिया है, इसके कारण ही तो मेरी छाती में दूध उतरा है,पैसे के बल पर मुन्ना से रिश्ता बनाने चले है,मां का दूध बच्चे से छीनकर।नही दूंगी अपने मुन्ना को,मुझे नही चाहिए उनके पैसे।मुझे मुन्ना चाहिये।

       उसी दिन रात में ही रमा अपने मुन्ना को छाती से चिपकाये ट्रैन में बैठी जा रही थी, अनजान मंजिल की ओर—!

#एक_रिश्ता

        बालेश्वर गुप्ता,पुणे

स्वरचित, अप्रकाशित।

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