नई कार – चांदनी खटवानी : Moral Stories in Hindi

क्या बात है आदि.. पिछले कई दिनों से मानवी नहीं आई अपने घर!

मुझे क्या पता.. कहीं बाहर वाहर गई होगी.. अच्छा! पर तुम्हें बिना बताए.. मैंने तुरंत दूसरा सवाल दागा!

अब थोड़ा वह झल्ला गया.. मैं क्या उसका सेक्रेटरी हूं.. जो उसके एक एक दिन का हिसाब किताब रखता फिरुं!

यह कैसी बेवकूफी भरी बातें कर रहे हो.. दोस्त है वह तुम्हारी.. हर दो दिन में चक्कर लगाने वाली  लड़की.. पिछले दस-बारह दिनों से अपने घर नहीं आई है.. तुमसे नहीं तो और किससे पूछूंगी!

अगर कुछ हुआ है.. तुम दोनों के बीच.. तो खुल कर बताओ न!

जाकर उसी से पूछिए.. उसके ऐसे तेवर से सब तो अंडरस्टूड था.. किसी से कुछ पूछने की जरूरत कहां थी!

मानवी और आदित्य की दोस्ती.. ग्यारह साल से भी ज्यादा पुरानी थी.. स्कूल से जो शुरू हुई.. तो बिना किसी रूकावट के निभती चली आ रही थी!

अब तो दोस्ती से कुछ ऊपर ही था.. हम दोनों परिवार तो जैसे तैयार ही बैठे थे.. अपनी जिम्मेदारियों का बोझ सिर से उतारने के लिए!

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सिर्फ इंतजार था तो.. उनके अपने पांव पर खड़े होने का!

फिर अचानक से क्या हो गया..  समझने के लिए मैंने मानवी की मां को कॉल किया.. पर वह भी  मेरी तरह अनजान ही थी!

पहले तो कभी दो चार दिन भी इनका झगड़ा ना चला.. इस बार ऐसा क्या हुआ कि दो महीने से  ऊपर हो गए.. झुकने को कोई तैयार न था!

यह तो अच्छा हुआ.. आदि की जॉब लग गई.. कम से कम बधाई देने के बहाने.. मानवी एक दो बार घर तो आई.. पर आदि के रूखे व्यवहार के कारण पहले जैसी बात ना बन पाई!

खैर! मुझे इसका कारण भी बखूबी समझ में आ रहा था.. कुछ ही दिनों में आदि की काशवी नाम की लड़की से गहरी दोस्ती हो गई थी.. ऑफिस में!

घर आने पर भी.. घंटों अब उसी से बातें होतीं!

सोचती.. एक जिंदगी से कुछ दिनों के लिए गई क्या.. इतनी जल्दी दूसरी से उसकी भरपाई हो गई.. दूसरों के बारे में तो हमेशा ऐसा सुनती थी.. पर अब अपना ही बेटा!

घोर कलयुग आ गया है.. इमोशंस तो थोड़े भी बचे ही नहीं है.. आजकल की जनरेशन के अंदर!

 शाम को चाय पीते-पीते.. मैं आदि के पापा के साथ.. उसकी ही बातें शेयर कर रही थी.. कि इतने में आदि भी आ गया ऑफिस से!

पापा दिवाली आ रही है.. क्यों ना इस मौके पर एक नई कार बुक कर दें.. अब तो मेरी भी जॉब लग गई है.. उसने अपने मन की कई दिनों से दबी हुई इच्छा व्यक्त की!

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हां ठीक है.. कोई ऐसी स्कीम देख लो.. जिसमें पुरानी कार देकर.. नई तुम्हारी मनपसंद आ जाए!

पर पापा.. मैं आपको नई कार खरीदने के लिए कह रहा हूं.. पुरानी बचने के लिए नहीं!  

कार चलाना तो मैंने इसी में सीखा.. ना जाने कितनी यादें जुड़ी हुई है.. मेरी इसके साथ!

मैं उससे कितना अटैच्ड हूं.. आपको तो यह अच्छे से मालूम है!

हां बेटा.. सो तो है.. पर जब तुम्हें ग्यारह साल पुरानी हाड़ मांस की दोस्ती को भूलाने में दो महीने का समय भी ना लगा.. नई लड़की के मिलने पर!

फिर तो इस बेजुबान के लिए भी ज्यादा दर्द ना होगा.. नई कार के आ जाने पर!

 

स्वरचित एवं मौलिक

चांदनी खटवानी

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